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(News) Baba Ramdev's Patanjali Ayurved plans to invest in Bundelkhand

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(News) Baba Ramdev's Patanjali Ayurved plans to invest in Bundelkhand


Yoga guru Baba Ramdev, promoter of the Patanjali brand, wants to invest in drought-hit Bundelkhand and has approached the Samajwadi Party government in Uttar Pradesh for support. The seven districts of Bundelkhand — Banda, Jhansi, Hamirpur, Mahoba, Chitrakoot, Jalaun and Lalitpur — have been reeling under severe water-scarcity for the past six months and the rural economy there is crippled by three consecutive droughts and bouts of unseasonal hailstorm.

Ramdev’s interest in Uttar Pradesh comes days after he offered to set up units for its products in Bihar. Last week, he also announced that he would set up a food-processing park and cow research centre in Madhya Pradesh.

The guru expressed his willingness to expand his food business in Bundelkhand during a meeting with Chief Minister Akhilesh Yadav in the U.P. capital on Sunday.

According to an official spokesperson, apart from praising the work done by the SP government, Ramdev also sought its aid in allowing him to turn Bundelkhand into a flourishing belt of green vegetables, fruits, medicinal plants and herbs. “It is possible to have a good produce of herbs, aloe vera, amla and even fruits and vegetables like tomato, peas, etc. in Bundelkhand. The areas near the numerous dams in the region can be used for cultivation. The initiative will be beneficial and profitable for farmers,” Ramdev told Mr. Yadav.

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Courtesy: The Hindu


(Result) MP Board High School (10th) Exam - 2016

(Result) MP Board Higher Secondary School (12th) Exam - 2016

(News) Bundelkhand Drought Monitoring using Satellite Remote Sensing Data

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Bundelkhand Drought Monitoring using Satellite Remote Sensing Data


The Central Indian region of Bundelkhand is currently experiencing severe drought.

Once an ancient kingdom, but now straddling the states of Uttar Pradesh and Madhya Pradesh, around the city of Jhansi, the area remains relatively underdeveloped compared to other parts of India. Consequently many local people still rely on agriculture for their livelihoods. Faced with drought conditions, and with limited capacity for water storage, thousands of smallholder farmers will now face considerable hardship, or even destitution.

The current water scarcity, the most severe this century, has parched an area the size of Israel. Reviewing satellite imagery from earlier in the year, an IWMI research team has established that the likelihood of drought was emerging as early as June, when abnormally low rainfall patterns became evident. Space based technologies, often referred to as remote sensing, should be more widely used in drought prediction, say the IWMI experts, as they can identify potential problems well before the extent of ground conditions are evident.

“Looking at the aerial images you get a sense of the enormity of what is going on,” said Amarnath Giriraj who leads IWMI’s drought mapping project. “You can clearly see that paddy fields are bone dry and that much farmland has been left fallow due to lack of water. But we hope that in future we can use remote sensing to pick up drought trends before there are serious water shortages, so that relief efforts can be more timely.”

Satellite monitoring

The satellite images were generated as part of IWMI’s ongoing South Asia Drought Monitoring System (SADMS) project, developed in partnership with the World Meteorological Organization, the Global Water Partnership and with support from the CGIAR Research Program on Climate Change and Food Security. Converted into easy to read maps, the images have been sent to Bundelkhand.in, a website that brings together social activists, community groups and local policy makers in the region. This is the first time that the SADMS has been used.

“The maps have been invaluable,” said Ashish Sagar, a leading social activist in Bundelkhand region. “We have been sharing them with farmers and the local authorities so that we can better plan a response.”

IWMI has adopted an innovative approach to developing the system using remote sensing data from multiple sources. The Integrated Drought Severity Index uses the condition of vegetation, rainfall, temperature and soil moisture to determine severe drought areas. This gives a far more accurate indication of impending drought than conventional methods. This can assist drought mitigation planning and response and help improve the overall capacity of communities to be more resilient and cope with these events.

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Courtesy: IWMI

Kastoorba Gandhi Vidyalaya Vacancies Dist-Mahoba Notice (Dt.-30-4-2016)

बुन्देली भाषा का राष्ट्रीय अधिवेशन-2016 ,भोपाल (7 जून 2016)

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बुन्देली भाषा का राष्ट्रीय अधिवेशन-2016 ,भोपाल (7 जून 2016)


अपन सब जनन की अवस्य कें अवाई होवै
सबत्तर बुन्देलखण्ड खों जोरवे वारी एकई पंजीकृत राष्ट्ीय संस्था सम्पर्क-75 चित्रगुप्त नगर,कोटरा,भोपाल

पूज्ज/प्रिय भैया बिन्ना हरौ

भारत के मध्य कालीन महान स्वातं़त्र्य प्रणेता महाराजा छत्रसाल की जयन्ती पै राजधानी भोपाल में आयोजित होवे वारे बुन्देली समारोह-2016 के सबई कार्यक्रमन में आप खों सादर न्यौतौ है। अवस्य के अवाई होवै। खासम खास पॉंवनें- महामहिम लाट साब जू श्री रामनरेष यादव, श्री जयन्त मलैया जू वित मंत्री,श्री उमाषंकर गुप्ता उच्च षिक्षा मंत्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री प्रदीप आदित्य झॉंसी,श्री अलोक संजर सांसद, डॉ.रामकृष्ण कुसमरिया अध्यक्ष बुंदेलखण्ड विकास प्राधिकरण, श्री पुष्पेन्द्रनाथ पाठक विधायक एवं श्री आलोक शर्मा महापौर भोपाल

-कार्यक्रम-

प्रातः 9बजे छत्रसाल पुष्पॉंजलि छत्रसाल तिराहा,टीनषैड श्रद्धॉंजलि सभा पंजीयन, चाय, रैली,, ,,11 बजे

उद्घाटन.. राज भवन ग्रंथ लोकार्पण - वरिष्ठ साहित्यकार कैलाष मड़बैया की 24वीं पोथी ‘सात समन्दर पार’-
अलंकरणः -बुंदेलखण्ड के प्रतिष्ठा पुरस्कार छत्रसाल/भास्कर/,षिवनारायण जौहरी,एम.एल.खरे एवं सुरेन्द्र श्रीवास्तव

सम्मान-2016

  •  डॉ.कामिनी,सेंवढ़ा,षोध गं्रंथ प्रकाषनार्थ ।
  • अभिनन्दन गोइल टीकमगढ़, ‘पीर घनेरी’ बुन्देली लोक कथा संग्रह।
  •  डॉ.षिरोमणि सिंह पथ, इंदरगढ, ‘अरगनी’ बुंदेली कथा संग्रह। ,
  • लक्ष्मी शर्मा जबलपुर. बुंदेली काव्य संग्रहः‘मेला घूमन निकरी गुइंयॉं’

दुपरै 12.30 बजें, विधायक विश्राम ग्रह-2, सभा भवन

  • बुंदेली भाषा सम्मेलन, पंगत,
  • आमंत्रित विषेष बुन्देली नृत्य ,
  •  अ0भा0 बुंदेली कवि सम्मेलन,

बुंदेली आलेख-

1-‘आपके असफेर में सूकाःपुराने जल श्रोत’
2- बुंदेली सचित्र खण्ड काव्य‘जय वीर बुंदेले ज्वानन की’,सातवीं वर्ष गॉंठ पर समीक्षां और खुलौ अधिवेषन। ;बाहरी पॉंवनन के ठैरवे कौ इंतजाम विधान सभा खण्ड 2 में है द्ध

- बिन्तवार-कैलाष मड़बैया ‘गुड्डन भैया’, विधायक अध्यक्ष स्वागताध्यक्ष उपाघ्यक्ष-शंभुदयाल गुरु,कोषाघ्यक्ष -के.पी.रावत, संगठन मंत्री,देवेन्द्र कुमार जैन, संस्कृति मंत्री-डॉं.गौरीषंकर शर्मा गौरीष, सचिव ओ.पी. श्रीवास्तव, राहुल चौबे -प्रचार प्रसार। संजीव गुप्ता-सह सचिव, दिनेष गुप्ता-कला सचिव,रामकिसुन सेन-लोक गायन

अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद् भोपाल

सम्पर्क 9826015643 ,0755 2774037 मउंपस.इनदकमसांदकेंपजलंचंतपेंक/लींववण्पद

खंड - खंड होता बुंदेलखंड

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खंड - खंड होता बुंदेलखंड


आगामी 31 मई को बुंदेलखंड आने वाले योगेन्द्र यादव,राजेन्द्र सिंह राणा और मेधा पाटेकर को इसके लिए आन्दोलन करना चाहिए ! इस डिजास्टर को रोकना बुंदेलखंड जल संकट का मूल हल है !

बुंदेलखंड- चरखारी ( गौरहारी गाँव ), महोबा में गत 27 मई को दोपहर गौरा पत्थर की खदान में किये जा रहे अवैध खनन से 5 मजदूरों की दबकर मौत हो गई ! दो सौ फिट गहरी अवैध पत्थर खदान को स्थानीय ठेकेदार देवेन्द्र सिंह के नाम से पट्टा था जिसको गाँव के मूंगालाल संचालित करते थे ! पट्टे का नवीनीकरण कई साल से नही हुआ है क्योकि आवश्यकता से अधिक पत्थर खनन किया जा चूका था ! बाजजूद इसके जिला खनिज अधिकारी बीपी यादव,जिलाधिकारी की चुप्पी के यह लाल पत्थर का खूनी आतंक चरम पर है ! उत्तर प्रदेश का खनिज मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति से लेकर जिलाधिकारी वीरेश्वर सिंह तक शामिल रहते है इस अवैध खनन में जो अधिकारी महोबा आता है वो जाने का नाम नही लेता है ! यही सूरत बाँदा और चित्रकूट की है ! सूखा प्रभावित क्षेत्र में यह तस्वीर लोकतंत्र के सरकार की है ! इस हादसे के बाद आला अधिकारी गौरहारी पहुंचे और देर रात तक रेस्क्यू आपरेशन करते रहे लेकिन भारी चट्टान में दबे अन्य श्रमिक अभी तक निकाले नही जा सके है ! मुआवजे के रूप में मृतक परिवार को दो लाख रूपये देने का निर्देश मुख्यमंत्री ने खनिज अधिकारी को निलंबित करके किये है ! गौरतलब है पिछले तीन दशक से यह गाँव गौरा पत्थर के खनन से पूरी तरह खोखला हो गया है,गाँव में आंतरिक सुरंगे बन चुकी है जिसमे अब तक सैकड़ों मजदूर अपांग और मौत के मुंह में जा चुके है ! इस पत्थर से टेलकम पाउडर और मूर्तियाँ बनती है ! गाँव के लोग ही अपनी समिति बनाकर लघु उद्योग के नाम पर मानकों को धता बतलाकर यह पताल तोड़ खनन उसी तर्ज पर करते है जैसे महोबा की अन्य बड़ी पत्थर मंडी में यह खेल चलता है ! गौरहारी में गाँव ही माफिया है जबकि बाकि हिस्से में नेता,विधायक सब एक पाले में है ! मै बीते दिन महोबा की धरती से यह सब देख रहा था !

क्या है मानक-

  •  मानक के मुताबिक रेलवे ट्रैक से 500 मीटर की दूरी पर क्रेशर जैसी गतिविधि मान्य है !

  • किसी भी ऐतहासिक, पुरातत्व स्थल के 100 मी0 तक खनन् कार्य वर्जित है तथा 200 मी0 तक खनन् व निर्माण कार्य के लिये पुरातत्व विभाग से एन0ओ0सी0 लेना अनिर्वाय है जो कि नही ली जाती है।

  • खदानों में ब्लास्टिंग का समय दोपहर 2 से 12 बजे के अन्तराल है लेकिन 24 घन्टे होते है धमाके।

  • एक क्रशर उद्योग से कच्चेमाल के रूप में स्टोन बोल्डर का प्रयोग कर लगभग 10,000 सी0एफ0टी की दर से ग्रेनाइट का उत्पादन किया जाये।

  • क्रशर प्लान्ट में आकस्मिक स्वास्थ /ऐम्बुलेंस / डाक्टर की व्यवस्था हो जो कि किसी भी प्लान्ट में बुन्देलखण्ड मे नहीं है।

  • क्रशर प्लान्ट में मजदूरों को पत्थर, गिटटी तोडने, ब्लास्टिंग करते समय मास्क, हेलमेट उपलब्ध हो जो कि नहीं दिये जाते है।

  • नेशनल हाइवे, कृषि भूमि, हरित पटिट्का से 1.0 किलो मी0 दूर स्थापित हो क्रशर उद्योग, बालू खदान नदी से 500 मी0 की दूरी पर लगाई जाय मगर यहाँ लगे है नेशनल हाइवे, कृषि भूमि पद सैकड़ो प्लान्ट।

क्या होता है इस खनन के खेल में -

  • अमोनियम नाइट्रेट और जिलेट की छड़ से हैवी 6 इंच का होल करके ड्रिलिंग मशीन से ब्लास्टिंग होती है ! नेचुरल डिजास्टर की तरफ है बुंदेलखंड का यह इलाका !

  • दिन - रात अर्थ मूविंग मशीन मसलन पोकलैंड,जेसीबी लगाकर दो सौ मीटर पहाड़ों को पताल तक खोदा जाता है जब तक पानी न निकले !

  • सूखे बुंदेलखंड में पानी की तबाही का नंगा नाच समाजवादी सरकार और बसपा सरकार ने हमेशा किया है,माफिया को सरकार का संरक्षण प्राप्त है ! जब कोई बड़ा हादसा हुआ तो निलंबन से होती है खानापूर्ति ! खनिज रायल्टी एमएम 11 प्रपत्र की चोरी करके तीन घनमीटर में 100 फिट दिखलाते है जबकि यह ओवेर्लोंडिंग सैकड़ो टन में है !

By: Ashish Sagar

 बुंदेलखंड में जनता त्रस्त सरकार मस्त

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 बुंदेलखंड में जनता त्रस्त सरकार मस्त


बुंदेलखंड _ के दर्द की हरपल सुर्खिया बनती हैं देश दुनिया के समाचार माध्यमों में । सुप्रीम कोर्ट भी दर्द की दवा देने के निर्देश सरकार को देता है ,पर ना दवा मिली और ना दर्द कम हुआ ।ये हालात तब हैं जब सुप्रीम कोर्ट स्वयं जांच दल भेज कर बुंदेलखंड के हालातों पर नजर बनाये हुए है । उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में केंद्रीय जांच दल सूखे की स्थिति का जायजा लेने कई गाँवों में पहुंचा था । दल ने भी माना था की बुंदेलखंड के हालात वाकई बहुत खराब हैं ना पीने को पानी है और ना ही खाने को अनाज । मध्य प्रदेश वाले बुंदेलखंड इलाके के टीकमगढ़ जिले का जायजा लेने जब यह दल पहुंचा तो उसे यहां के हालात और भी बदत्तर मिले । मराठवाड़ा से होकर बुंदेलखंड आये स्वराज अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव अब यहां के वास्तविक हालात से सुप्रीम कोर्ट को अगस्त में होने वाली पेशी में अवगत कराएंगे । तय है की सुप्रीम कोर्ट जांच दल वा योगेन्द्र यादव की रिपोर्ट सरकार को एक बार फिर उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए कटघरे में खड़ा करेगी । पर फिलहाल सरकार तो अपने दो साल पूर्ण होने के जश्न में मस्त है , जनता रहे त्रस्त उसकी बला से ।

बदहाल बुंदेलखंड के हाल देख कर सुर्प्रीम कोर्ट से नियुक्त रिटायर्ड आई.ए.एस.हर्ष मंदर भी हैरान रह गए । वे टीकमगढ़ जिले के दो दिवसीय दौरे पर आये थे । उन्होंने अकाल ग्रस्तइस जिले में पाई संवेदन हीनता की पराकास्ठा । दल ने टीकमगढ़ जिले के जतारा विकाश खण्ड के सिमरा एवं कुंवरपुरा , निवाड़ी विकाश खण्ड के लडवारी और चंद्रपुरा गाँवों में पहुँच कर हालातों का जायजा लिया । दल ने पाया की स्कूलों में रोजाना बच्चों को खाना तो दूर नियमित तौर पर स्कूल भी नहीं खुल रहे है,। मनरेगा में लोगों काम नही मिल रहा है, मनरेगा अगर ठीक से चलता तो पलायन को रोका जा सकता था,। जिस प्रकार का काम लोगों को मिलना चहिये वह नही मिल रहा । बिजली बसूली के नाम पर ,रिकबरी अभियान चलाकर लोगों की बिजली काट दी गई है जिससे लोग पंपों से पानी नही निकाल पा रहे है जो संबेदन हीनता की पराकाष्ठा ही कही जा सकती है, । राशन वितरण प्रणाली भी भगवान भरोशे है कुंवर पूरा के आदिवासियों को चार माह से खाद्दान नहीं मिला । वहीँ इसी गाँव के आदिवासियों ने बताया की पट्टे तो उनके पास हैं पर कब्जा दबंगो का है । पानी लेने भी दूर दूर तक जाना पड़ता है ।

पिछले दिनों केंद्र सरकार का दल सूखे की स्थिति का जायजा लेने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखडं के ललितपुर ,झाँसी ,महोबा , हमीरपुर ,बांदा ,चित्रकूट जिला के कई गाँवों में पहुंचा था। केन्द्रीय जाँच दल का मकसद कम बारिश के कारण खरीफ ,और रवि फसलों , आम लोगों के जीवन, पशुपक्षी पर हुए असर का अध्ययन करना था । इसके अलावा पेयजल , जल संरक्षण सहित सरकार द्वारा चलाये गए राहत कार्यकम को किस तरह से जिला का प्रशासनिक अमला संचालित कर रहा है इसका मूल्यांकन करना रहा । दल ने ग्रामीणों से पानी , मवेशियों को बांटे गए भूसा और मनरेगा योजना , पलायन की स्थिति पर चर्चा की । दल के मुखिया ए के सिंह ने माना कि यहां के हालात बेहद गम्भीर हैं जिसकी रिपोर्ट केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री को सौंपी जायेगी।

महोबा जिले के कबरई विकास खण्ड के बरीपुरा गाँव में जाँच दल को लेकर किसानो का अपना एक अलग नजरिया देखने को मिला । यहां का किसान माधव प्रसाद कहता है कि " व्यवस्था कराए के लाने आये थे हमने सुनाईकरी की चारा देहे पानी देहें तो कुछ व्यवस्था नहीं करी और खा पीकर भाग गए । ये लोग आते हैं बात सुनते हैं पै हम ओरन को कुछ लाभ नहीं होता । हम तो कैसे भी अपनी चला लेंगे पर बेजुवान पशु के लिए ना पानी है और ना भूषा । हर रोज दो चार जानवर गाँव में मर रहे हैं । हर आने वाले के प्रति हसरत की निगाह से देखने वाले किसानो को सूखा का जायजा लेने पहुंचे केंद्रीय दल से भी आशा थी की केंद्र का दल आया है शायद कुछ भला हो जाएगा । यह कहानी सिर्फ वीरपुरा गाँव भर की नहीं है बल्कि बुंदेलखंड के जिस गाँव में भी यह दल पहुंचा उसे इसी तरह के हालात देखने को मिले ।

बुन्देलखण्ड में सूखे को लेकर एक अभियान की शुरूआत, करने वाले और देश के सामने बुंदेलखंड अकाल की विभीषिका सामने लाने वाले योगेन्द्र यादव फिर से बुंदेलखंड के दौरे पर हैं । अबकी बार उनके साथ डॉ. राजेन्द्र सिंह , डॉ सुनीलम , और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभीक साहा भी हैं । टीकमगढ जिले के आलमपुर गांव से शुरू हुई उनकी पदयात्रा महोबा उत्तर प्रदेश में पूर्ण होगी । यादव ग्रामीणों को बता रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में प्रभावितों की मदद के लिए सरकारों को जो निर्देश दिए हैं, उन्हें जन-जन तक पहुंचाने के लिए जल-हल यात्रा शुरू की गई है। इतना ही नहीं, वे वास्तविकता का ब्यौरा एक अगस्त को होने वाली पेशी में हलफनामा देकर बताएँगे 15 -20 किमी रोजाना पदयात्रा करने के दौरान उनके साथ स्थानीय ग्रामवासियों की अच्छी खासी संख्या यह बता रही थी की मानो उनके साथ चलने से उनकी विपत्ति का कुछ तो समाधान होगा । योगेन्द्र यादव यादव लोगों को बातों ही बातों में यह बताने से नहीं चूकते की इतना भयानक सूखा इतनी बड़ी त्रासदी है बुंदेलखंड में है , ऐसे में सारी मशीनरी मंत्री और सांसद विधायक को सब को सड़के नापनी चाहिए । मध्य प्रदेश सरकार ने हलफनामा देकर जो बातें कही उसकी धज्जियां उड़ती यहां देख रहे हैं । मिड डे मील नहीं मिल रहा , मनरेगा में काम नहीं मिल रहा , लोगों को राशन नहीं मिल रहा है, फसल नुक्सान का मुआवजा मिल नहीं रहा है , मिल क्या रहा है बैंकों के नोटिस । हालात बदलने के लिए पूरे देश को कदम उठाने होंगे , जब तक विकाश की नीति और धारा नहीं बदलेंगे तब तक बुंदेलखंड की अवस्था बुनियादी नहीं बदलेगी । जनता को भी संघर्स करना तो सीखना होगा क्योंकि बगैर रोये माँ भी दूध नहीं पिलाती ।

योगेन्द्र यादव की मध्य प्रदेश के प्रति सूखा ने धारणा भी बदल दी है । वे अब तक मानते रहे की एम पी बेहतर करती है किन्तु सूखा के इस दौर में मनरेगा में यू पी ने 120 फीसदी काम किया किन्तु एम पी ने एक तिहाई भी नहीं किया ।

दिखावटी योजनाएं :-बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश के जिलों में अचानक सरकार ने सक्रियता दिखाने का प्रयास किया । प्रशासन को निर्देश जारी हुए की मनरेगा से गाँव -गाँव में तालाबों का गहरी करण कराया जाए , नए तालाब खोदे जाए । इस आदेश के बाद से गाँव गाँव के सरपंच और सचिव अपने अपने गाँव के तालाबों की योजना बनाकर जनपद जिला पंचायत के चक्कर लगा रहे हैं । सरपंच और सचिव भी यह बात स्वीकारने में कोई परहेज नहीं करते की इतने विलम्ब से काम शुरू होगा , तब तक बारिश शुरू हो जायेगी , फिर काहे का गहरी करण होगा ।

बुंदेलखंड के लोग यदि सरकार की ऐसी योजनाओं से राहत की उम्मीद लगाए रहे तो कुछ होने जाने वाला नहीं है । प्रकृति के पर्यावरण चक्र के बदलते स्वरुप के कारण आने वाले समय में और परेशानियों का समाना करना पडेगा । हालात का मुकाबला करने के लिए सब को मैदान आना होगा , जल ,जंगल और जमीन का बेहतर प्रबंधन करना होगा । इसके विनाशक तत्वो को सबक सिखाना होगा ।

By:: रवीन्द्र व्यास


Banda's Ankit Kumar topped BED Exam 2016

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Banda's Ankit Kumar topped BED Exam 2016


Banda's Ankit Kumar topped the joint entrance exam for admissions to bachelor of education (BED - JEE). A BA graduate from Pandit Jawaharlal Nehru Mahavidyalaya, an affiliated college of Bundelkhand University, Ankit scored 316.67 marks out of 400. In the girl's category, the first rank was secured by Priti Pandey, a native of Faizabad. She scored 309 marks in the examinations.

Results show that Allahabad district took the top slots. Of the top 10 ranks, six are from Allahabad. From Lucknow, Ankit Tiwari bagged 15th rank. Allahabad's Luvkush Kumar and Ramkrit Chauhan bagged the second and third rank, respectively.

"I never thought I will be a topper. For me, its a big thing. But since I got through the Lekhpal appointment process, I will be joining the job soon," said Ankit.

A total of 3,03,032 candidates had registered for BEd exam. Out of this, 2,64,470 appeared for the test. Results of 2,63,199 candidates have been declared. Results of remaining 1,268 candidates was not declared as these candidates didn't appear for the second paper.

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Courtesy: Times of India

(News) According to NGO Report daily 10,000 cattle die in Bundelkhand

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(News) According to NGO Report daily 10,000 cattle die in Bundelkhand


At a time when beef and cow-related issues are hogging the limelight -- and also polarising the discourse in the country - there's a deafening silence about the plight of cattle in Bundelkhand.

Social activist Yogendra Yadav, of NGO Swaraj Abhiyan, alleged that about three lakh cattle had died in the drought-hit region in the month of May alone.

"The BJP's love for the cow is only restricted to newspapers and TV studios. Even as the party's national leadership debates about the cow being rashtra mata and beef sale, at least three lakh cattle may have died in drought-scorched Bundelkhand in May itself. Carcasses are littered across the 13 districts of Uttar Pradesh and Madhya Pradesh," observed Yadav in New Delhi on Wednesday, adding how it's "unbearable stench", which is likely to cause widespread illnesses, "pervades the region".

BJP BLAMES SP

UP BJP spokesperson Chandra Mohan, however, blamed the state government for the crisis. "It (SP government) is responsible for the barbaadi (destruction) of Bundelkhand. You can understand the state government's stubborn from the fact that we (Centre) offered it a water train, but it refused. Their zila (district) level officers and Commissioners are all giving a different account of the severity of drought there. Corruption there is wreaking havoc on the grassroots-level administration."

"At the Central level, all MPs of Bundelkhand have pledged their MPLAD money to its welfare in these drought times," he added.

As per the NGO's estimate, while there are 11,065 villages in the Bundelkhand region of Uttar Pradesh and Madhya Pradesh, all villages on an average reported between 10 and 100 cattle deaths in May which added to around three lakh mortalities in the month.

"We heard widespread reports of fodder shortage everywhere. The 'Fodder Bank' scheme is on paper only. Nobody knows where they are. Or else, relatives of politicians or those families who have no cattle at all, have availed money under it," alleged Yadav.

CENTRE, STATE GOVERNMENTS FACE HEAT

On May 13, the Supreme Court had rebuked both the Centre as well as state governments for trying to evade responsibility of the drought condition.

A bench comprising Justices MB Lokur and NV Ramana said, "You cannot hide behind the smokescreen of lack of funds."

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Courtesy: India Today

 बुंदेलखंड में विकास के नाम पर विनाश का आमंत्रण

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 बुंदेलखंड में विकास के नाम पर विनाश का आमंत्रण


पर्यावरण दिवस के नाम पर हर साल मनाये जाने वाले इस दिन, जानकार और स्वयं सेवी संस्थाओं के लोगों ने गम्भीर चिंतन और मनन किया । कुछ लोगों को पर्यावरण जागरूकता के लिए पहल का संकल्प भी लिया हैं । ये अलग बात है की कुछ इस अभियान में जीवन पर्यन्त लगे रहते हैं और कुछ शमशान के ज्ञान की तरह घर पहुँचते ही इसे भूल जाते हैं । यही हालात बुंदेलखंड जैसे इलाके की भी है , जहां के अतीत की जीवन शैली भले ही प्रकृति के अनुकूल रही हो किन्तु वर्तमान की जीवन शैली , लालशा,और बढ़ती आबादी के बोझ ने लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया । इसमें जितने हम और आप जिम्मेदार हैं उतनी ही प्रयोग वादी सरकारें भी जिम्मेदार हैं । विकाश की आंधी में शहरी संस्कृति को बढ़ावा दिया गया ,प्रकृति और पर्यावास को नष्ट कर विनाश को आमंत्रित किया गया । इसी का परिणाम है की प्राकृतिक विपदाओं का बार बार सामना करना पड रहा है ।

कभी बुंदेलखंड का इलाका एक घने वन क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था । लोगों के जीवन का आधार यही वृक्ष थे , अचार ,महुआ ,तेंदू , आम और आंवला ऐसे वृक्ष थे जो यहां के लोगों की आय के मुख्य श्रोत थे । वनों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियाँ लोगो के हर मर्ज की दवा थी । आज हालात ये हैं कि उत्तर प्रदेश वाले इलाके में मात्र 7. 92 फीसदी और मध्य प्रदेश वाले इलाके में 29. 9 फीसदी वन क्षेत्र बचा है । उत्तर प्रदेश वाले वाले बुंदेलखंड इलाके के ललितपुर में 15 फीसदी चित्रकूट में 16. 4 फीसदी , झाँसी में 6 . 9 जालौन में 5. 6 फीसदी , हमीरपुर में 6. 2 फीसदी , महोबा में 4. 2 फीसदी और बांदा जिले में मात्र 1.2 फीसदी ही वन क्षेत्र हैं । दूसरी तरफ मध्य प्रदेश वाले इलाके के छतरपुर जिले में 24. 8 फीसदी , टीकमगढ़ में 13. 7 फीसदी , पन्ना में सर्वाधिक 42. 6 फीसदी , दमोह में 2 6. 8 फीसदी ,सागर में 29 . 1 फीसदी और सबसे कम 8. 4 फीसदी वन क्षेत्र दतिया जिले में हैं । ब्रिटिश शासन काल में 1894 में पहली राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई , आजादी के बाद 1952 में राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई । इस नीति में देश के एक तिहाई भू भाग को वनाच्छादित रखने का लक्ष्य रखा गया था । आंकड़े बताते हैं की देश का सिर्फ 21. 23 फीसदी हिस्सा वनाच्छादित है । मध्य प्रदेश में 30. 72 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 6. 88 फीसदी वनक्षेत्र है । आंकड़ों की ये भाषा बताती है की बुंदेलखंड इलाके में वनों के विनाश में कोई कसर नहीं छोड़ी गई । वनों के विनाश का ही परिणाम है की जल स्तर में तेजी से गिरावट हुई , बीहड़ो का विस्तार हुआ । अतीत में जो हरियाली लोगों को लुभाती थी आज उसकी जगह वीरानी छाई है । भूमि की नमी समाप्त हो गई है और मानव व अन्य जीव बून्द बून्द पानी के लिए मोहताज है ।

प्रकृति के इस विनाश की कीमत लोगों को चुकाना पड़ रही है , पर सरकार के विकाश का संकल्प देखिये वह छतरपुर जिले के बक्स्वाहा रेंज में आस्ट्रेलियन माइनिंग कम्पनी रिओ टिंटो को हीरा खोदने के लिए 50 हजार व्रक्षो की बलि देने की तैयारी में जुटी है । ये वो इलाका है जहां बड़ी संख्या में वन्य जीवो का आवास है यहाँ बहती नदी उनके जल का श्रोत है , दुनिया में लुप्त हो रहे बाघों और गिद्धों का बसेरा है । ऐसा नहीं की प्रशासनिक स्तर पर इसका विरोध ना हुआ हो , तत्कालीन कलेक्टर उमाकांत उमराव ने इसका विरोध अपने तरीके से किया तो उन्हें अचानक छतरपुर स्थानांतरित कर दिया गया था । अब सब कुछ मल्टी नेशनल कम्पनी के हिसाब से चल रहा है , इसलिए उम्मीद है की जल्दी ही दुनिया का सबसे बेहतरीन किस्म का हीरा निकालने में रिओं टिंटो सफल हो जायेगी । रही बात जीवन की तो जीवन देने वाले वृक्ष जब नष्ट कर देंगे तो बुंदेलखंड के ये लोग कब तक ज़िंदा रह पाएंगे । , फिर ना कोई विरोध होगा ना कोई अवरोध ।

बुंदेलखंड में वनों के विनाश की सरकारी पहल सिर्फ बक्स्वाहा तक ही सीमित नहीं रहेगी बल्कि इसके लिए पन्ना टाइगर रिजर्व का क्षेत्र भी चुना गया है । यहां केन बेतवा लिंक परियोजना का ढोंढन बाँध बनना है । जिसमे बड़ी तादाद में व्रक्षो को काटा जाएगा , गाँव विस्थापित होंगे और वन्य जीव प्रभावित होंगे । सरकार देश के तमाम पर्यावरण जानकारों के विरोध के बावजूद कम पानी वाली केन नदी को बेतवा नदी से जोड़ा जाएगा ।

वनों के विनाश में खनिजों के वैध और अवैध उत्खनन ने भी महत्व पूर्ण भूमिका अदा की है । हरी भरी पहाड़िया जो जैव विविधिता के महत्व पूर्ण केंद्र थे उनको समतल मैदान और गहरी खाइयों में बदल दिया गया । विनाश के इस विकाश में सरकार , प्रशासन , पॉलिटिशियन और खनिज माफियाओं का महत्व पूर्ण योगदान रहा । पत्थर खदान के नाम पर , क्रेशर बेशकीमती मिनिरल्स के नाम पर सरकार ने खनन के कारोबार को बढ़ाया किन्तु इसमें पर्यावरण के नियमों की जम कर अनदेखी की गई । खनन के इस खेल में मिटटी मुरम और रेत के खनन में तो जैसे वैध अवैध का कोई भेद ही नहीं रह गया । जिसकी जहां मर्जी वहां से रेत निकालता और बाजार में बेच आता । केन नदी की रेत पर तो जैसे माफिया राज ही चलता है । रेत के इस अवैध खनन में सियासत के नामधारी लोग भी लिप्त हैं , जो रेत के परिवहन के लिए अवैध पुल का निर्माण कर रेत उत्तर प्रदेश के इलाकों में बेचते हैं । खजुराहो सेंड के नाम से यह रेत रीवा गोरखपुर तक पहुँचती है ।

सवाल यही खड़ा होता है की आम जन मानस पर्यावरण के मुद्दे पर कितना सजग और कितना चेतना शून्य है । आज गाँवों से भी प्रकृति से जुड़े दोना पत्तल गायब हो गए हैं , कुल्ल्हड़ तो देखने को नहीं मिलते । बाजार में सब्जी वालों से भी हम पॉलीथिन मांग कर सब्जी खरीदते हैं , थैला लेकर चलना लोगो की शान के खिलाफ हो गया है । जब हम रोजमर्रा की जिंदगी में पर्यावरण के प्रतिकूल आचरण करेंगे तो कैसे उम्मीद करेंगे की वातावरण में सुधार होगा । इस मामले में छतरपुर जिले के प्रमुख धर्म स्थल जटाशंकर धाम के ट्रस्ट अध्यक्ष अरविन्द अग्रवाल ने जरूर प्रशंसनीय पहल की है । उन्होंने मंदिर परिषर में किसी भी दूकान पर पॉलीथिन के उपयोग पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा रखा है और उसका सख्ती से पालन भी करवा रहे हैं । वरना पॉलीथिन के उपयोग पर प्रतिबन्ध तो कई नगर पालिकाएं और नगर पंचायत लगाए हैं पर पालन कहीं नहीं होता ।

By: रवीन्द्र व्यास

चरखारी : बुन्देलखण्ड का काश्मीर

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चरखारी : बुन्देलखण्ड का काश्मीर


एक नजर बुन्देलखण्ड के काश्मीर की प्राचीन सुन्दरता पर

बुन्देलखण्ड भले ही आज सूखा, बेरोजगारी, पलायन एवं अति-पिछड़ेपन की भयानक समस्याओं से ग्रसित हो किन्तु बुन्देलखण्ड का अतीत स्वर्णिम रहा है | बुन्देलखण्ड की कई रियासतें ऐसी रहीं हैं जो आज भी इस क्षेत्र को विश्वस्तरीय होने का आभास कराती हैं | आज अपनी कलम के माध्यम से मैं सम्पूर्ण देश का ध्यानाकर्षित कराना चाहता हूँ बुन्देलखण्ड की एक ऐसी अनमोल धरोहर का जिसको बचाना एवं संवारना अति आवश्यक है | बुन्देलखण्ड के महोबा जिले के अंतर्गत एक खूबसूरत नगरी है, चरखारी | जिसकी सुन्दरता को देखते हुए इसे बुन्देलखण्ड के काश्मीर की संज्ञा दी जाती है | यदि सरकारें इस ओर थोड़ा सा ध्यान दें तो इस क्षेत्र की न केवल बेरोजगारी दूर होगी बल्कि यहाँ से पलायन भी बहुत अधिक संख्या में रोका जा सकता है |

आइये जानते हैं कैसे इस क्षेत्र को पलायन को रोका जा सकता है और इस खूबसूरत सी नगरी आखिर बुन्देलखण्ड का काश्मीर क्यों कहा जाता है |

बुन्देलखण्ड एक अत्यंत वैभव सम्पन्न राजसी क्षेत्र रहा है, इस बात में कोई दोराय नहीं है | तभी इस क्षेत्र में हजारों साल पुराने किले, महल, तालाब, मंदिर इत्यादि हैं | ऐसा ही एक विशालकाय दुर्ग है, महोबा जिले की चरखारी नगरी में | इससे सटा हुआ राजमहल है | इस राजमहल के चारों तरफ नीलकमल से आच्छादित तथा एक दूसरे से आन्तरिक रूप से जुड़े- विजय सागर, मलखान सागर, वंशी सागर, जय सागर, रतन सागर और कोठी ताल नामक झीलें हैं | चरखारी नगरी को वृज का स्वरूप एवं सौन्दर्य प्रदान करते कृष्ण के 108 मन्दिर- जिसमें सुदामापुरी का गोपाल बिहारी मन्दिर, रायनपुर का गुमान बिहारी, मंगलगढ़ के मन्दिर, बख्त बिहारी, बाँके बिहारी के मन्दिर तथा माडव्य ऋषि की गुफा है | इसके समीप ही बुन्देला राजाओं का आखेट स्थल टोला तालाब है | ये सब मिलकर चरखारी नगरी की सुन्दरता को चार चाँद लगाते हैं | चरखारी का प्रथम उल्लेख चन्देल नरेशों के ताम्र पत्रों में मिलता है।

चन्देलों के गुजर जाने के सैकड़ों वर्ष बाद राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज को चरखारी के एक प्राचीन मुंडिया पर्वत पर एक प्राचीन बीजक की सहायता से चंदेलों का सोने केसिक्कों से भरा कलश मिला | यह धन पृथ्वीराज चौहान से पराजित होने के उपरान्त जब परमाल और रानी मल्हना महोबा से कालिंजर को प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने चरखारी में छुपा दिया था। छत्रसाल के निर्देश पर जगतराज ने बीस हजार कन्यादान किये, बाइस विशाल तालाब बनवाए, चन्देलकालीन मन्दिरों और तालाबों का जीर्णोंद्धार कराया। किन्तु इस धन का एक भी पैसा अपने पास नहीं रखा। जगतराज ने ही भूतल से तीन सौ फुट ऊपर चक्रव्यूह के आधार पर एक विशाल किले का निर्माण करवाया | जिसमें मुख्यत: तीन दरवाजें हैं। सूपा द्वार- जिससे किले को रसद हथियार सप्लाई होते थे। ड्योढ़ी दरवाजा- राजा रानी के लिये आरक्षित था। इसके अतिरिक्त एक हाथी चिघाड़ फाटक भी मौजूद था।

अब आते हैं इस विशाल दुर्ग की सुन्दरता को देखते हैं, जिसे आजकल आम आदमी के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है | जिस किले को एक शानदार पर्यटन स्थल होना चाहिए, वहाँ वर्षों से भारतीय फ़ौज का कब्ज़ा है | इस किले के ऊपर एक साथ सात तालब मौजूद हैं- बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्ध बाबा का कुण्ड, रामकुण्ड, चौपरा, महावीर कुण्ड, बख्त बिहारी कुण्ड। चरखारी किला अपनी अष्टधातु तोपों के लिये पूरे भारत में मशहूर रहा है। इसमें धरती धड़कन, काली सहाय, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी, गर्भगिरावन तोपें अपने नाम के अनुसार अपनी भयावहता का अहसास कराती हैं। इस समय काली सहाय तोप बची है जिसकी मारक क्षमा 15 किमी है। किले के अंदर बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं जिसमें अनाज भरा रहता था। यह अनाज कई वर्षों तक खराब नहीं होता था ।

जगतराज के पश्चात विजयबहादुर सिंहासन पर बैठे। साहित्य प्रेमी विजय बहादुर ने विक्रमविरुदावली की रचना की, मौदहा का किला और राजकीय अतिथिगृह- ताल कोठी का निर्माण कराया। यह कोठी एक झील में बनी है। बहुमंजिली यह कोठी अपनी रचना में नेपाल के किसी राजमहल का आभास देती है। इसकी गणना बुन्देलखण्ड की सर्वाधिक खुबसूरत इमारतों में की जाती है। विजय सागर नामक तालाब पर बनी ताल कोठी सरोवर के चहुंदिश फैली प्राकृतिक सुषमा के कारण अधिक आकर्षक प्रतीत होती है। महाराज जयसिंह के काल में नौगाँव के सहायक पोलिटिकल एजेंट मि. थामसन को चरखारी का प्रबन्धक नियुक्त किया गया। इसकी सुन्दरता देखकर थामसन ने इसी तालकोठी को सन 1862 ई. से 1866 ई. तक अपना आवास बनाया था। महाराज विजय बहादुर के पश्चात जय सिंह सिंहासन पर बैठे। इसके पश्चात मलखान सिंह आये। मलखान सिंह एक श्रेष्ठ कवि थे। उन्होंने गीता का काव्यानुवाद किया। उनकी पत्नी रुपकुंवरि एक धार्मिक महिला थीं। रामेश्वरम से लेकर चरखारी तक उन्होंने रियासत के मन्दिर बनवाए जो आज भी चरखारी की गौरव गाथा कह रहे हैं। गीत मंजरी, विवाह गीत मंजरी और भजनावली उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। चरखारी का ऐतिहासिक ड्योढ़ी दरवाजा इन्ही मलखान सिंह के कार्यकाल में बना जिसे महाराष्ट्र के अभियन्ता एकनाथ ने बनवाया। राजमहल और सदर बाजार उन्हीं की देन है। आज भी चरखारी के सदर बाज़ार की राजसी बनावट लोगों को अपनी तरफ़ आकर्षित करती है । किन्तु मलखान सिंह की सर्वाधिक प्रसिद्धि उनके द्वारा प्रारम्भ किये गए 1883 ई. में गोवर्धन जू के मेले से मिली । यह मेला उस क्षण की स्मृति है जब श्रीकृष्ण ने इन्द्र से कुपित होकर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पूजा से प्रारम्भ होकर यह मेला एक महीना चलता है। यह बुन्देलखण्ड का सबसे बड़ा मेला है। पंचमी के दिन चरखारी के 108 मन्दिरों से देवताओं की प्रतिमाएँ गोवर्धन मेला स्थल लाई जाती हैं। इसी दिन सम्पूर्ण देव समाज ने प्रकट होकर श्रीकृष्ण से गोवर्धन पर्वत उतारने की विनती की थी। सप्तमी को इन्द्र की करबद्ध प्रतिमा गोवर्धन जू के मन्दिर में लाई जाती है। इस एक महीने में चरखारी वृन्दावन हो जाती है |

मलखान सिंह के पश्चात जुझार सिंह गद्दी पर बैठे। इनके बाद अरिमर्दन सिंह गद्दी पर आसीन हुए | महाराज अरिमर्दन सिंह ने नेपाल नरेश की पुत्री से विवाह किया और उनके लियेराव बाग महल का निर्माण कराया जिसमें चरखारी का राजपरिवार आज भी रहता है। अरिमर्दन सिंह के पश्चात जयेन्द्र सिंह शासक हुए। ये चरखारी के अन्तिम शासक थे। इसके पश्चात रियासत का विलय भारत संघ में हुआ। इस सबका जिक्र आल्हा ऊदल एवं बुन्देलखण्ड का इतिहास नामक पुस्तक में इस तरह मिलता है-
छत्रसाल, जगतेशुजू, कीरत, पृथ्वी, मान |

विजयबहादुर, रतनसिंह, जयसिंह अरु मलखान ||

इस समय महाराज जयन्त सिंह और रानी उर्मिला सिंह रावबाग महल में रहते हैं। राजा छत्रसाल की वंश परम्परा चरखारी में इन्हीं से रोशन है। रानी उर्मिला सिंह सदरे रियासत कश्मीर कर्ण सिंह के खानदान से ताल्लुक रखतीं हैं और कश्मीर के पुंछ सेक्टर की रहने वाली हैं।

आज आवश्यकता इस बात की है इस सौदर्य की नगरी की तरफ सैलानियों कोआकर्षित किया जाये | यदि इस नगरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया जाये तो इससे करोड़ों रुपये की आमदनी के साथ साथ हजारों बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है | इसके लिए सबसे पहले चरखारी के विशालकाय किले को पर्यटन के लिए खोलना होगा | सेना का जो विशेष कार्य इस किले में होता है या तो उसे कहीं और स्थानांतरित किया जाना चाहिए या कुछ क्षेत्र में चलने दिया जाए | ताकि वहाँ के लोग एवं बाहर से आने वाले पर्यटक ओरक्षा, झाँसी के किलों की तरह इसे भी देख सकें | जो पर्यटक ओरक्षा आते हैं वह झाँसी के कुछ स्थल, ओरक्षा का किला, रामलला का मंदिर एवं बेतवा नदी की सुन्दरता को निहारने के पश्चात सीधे खजुराहो प्रस्थान करते हैं | जबकि महोबा से चरखारी नगर मात्र २० किमी की दूरी पर है फिरभी पर्यटक महोबा से सीधे खजुराहो प्रस्थान करते हैं | खजुराहो ही उन सैलानियों का इस क्षेत्र का अंतिम पर्यटन स्थल होता है | जबकि महोबा के बाद सीधे पर्यटकों को चरखारी की तरफ जाना चाहिए | जहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता एवं प्राचीनतम कलाकृतियों, मंदिरों, तालाबों आदि की सुन्दरता का दीदार करना चाहिए | इसी कड़ी में महोबा नगर में बनाये गए चन्देल कालीन सात विशाल तालाब भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिएमजबूर करते हैं | महोबा के निकट ही कबरई कस्बे में चन्देल काल में ही ब्रम्हा का बनाया गया ब्रह्मताल, जिसे अब बर्मा ताल के नाम से जानते हैं; यह भी कलाकृति का अद्भुत देखने योग्य स्थल है | इस तालाब के आस पास की जमीन को भी स्थानीय भू-माफिया कब्जाने में लगे हुए हैं | यदि इनको पुनः संवारकर विकसित किया जाए तो इस बात में बिल्कुल दोराय नहीं है कि सम्पूर्ण क्षेत्र पुनः खुशहाल हो उठेगा | किन्तु यह सब तभी संभव हो पायेगा जब प्रदेश एवं देश की सरकार इस दिशा में सार्थक कदम उठाते हुए, इस नगरी को एक वर्तमान पर्यटन स्थल का स्वरूप दे | देखने वाली बात यह कि सरकारें इस सौन्दर्य एवं राजसी स्मृतियों की गाथा को गाती नगरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का ऐतिहासिक कार्य करती है या फिर यूँ ही मिटा दिया जायेगा |

लेख- 'चेतन'नितिन खरे (महोबा)

तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान (आज भी खरे है तालाब, पर आदमी से डरे है तालाब)

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तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान (आज भी खरे है तालाब, पर आदमी से डरे है तालाब)


आदरणीय सम्मानित गाँधीवादी विचारक और पर्यावरणविद श्री अनुपम मिश्र जी / उनकी किताब 'आज भी खरे है तालाब 'को समर्पित है यह साइकिल यात्रा ! बुंदेलखंड के जनपद बाँदा से एक जुलाई को छाबी तालाब मैदान में एक जनसंवाद कार्यक्रम के बाद लखनऊ तक साइकिल यात्रा का प्रस्थान होगा ! इस महती और प्रासंगिक युवा सहभागिता ( इलाहाबाद युनिवर्सिटी के रिसर्च - स्कालर छात्र- छात्रा / सामाजिक कार्यकर्ता ) के हौसलों से प्रेरित यात्रा का मूल उद्देश्य देश भर में फैले / विलुप्त हो रहे प्राचीन ,बुंदेलखंड के चंदेलकालीन तालाबों और भूदान आन्दोलन के बाद देश भर में सार्वजनिक चारागाह की जमीनों पर किये गए अवैध कब्जे - पट्टे को रेखांकित करना है ! हमारी यात्रा में माननीय उच्च न्यायलय / सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों का भी वितरण किया जायेगा जो इस विषयक 'तालाब / कब्रिस्तान / पोखर / कुंए / चारागाह के लिए हुए है लेकिन वे अमल में नही लाये गए है ! यात्रा का समापन 8 जुलाई को प्रेस क्लब लखनऊ अपरान्ह बारह बजे से एक जनसंवाद और मुख्यमंत्री जी को मांग पत्र / श्वेत पत्र के साथ होगा ! आप सबसे इस हेतु शिरकत करने / स्नेह प्रदान करने का अनुरोध कर रहा हूँ ! बुंदेलखंड के सुखाड़ / जलसंकट / अन्ना पशुओं के भोजन - पानी - किसानी के पुनरुत्थान के लिए जनहित में यह अपरिहार्य एवं समसामयिक है !

यात्रा कोर सहभागी टीम - रामबाबू तिवारी छात्र पीएचडी ( सामाजिक कार्यकर्ता जल बचाओ आन्दोलन ),नलिनी मिश्रा छात्रा इलाहाबाद युनिवर्सिटी ,प्रो. योगेन्द्र यादव गांधीवादी,लेखक सर्वोदय / अतिथि प्रवक्ता (घाना साउथ आफ्रीका) ,स्नेहिल सिंह निदेशक न्यू इनवायरमेंट वेलफेयर सोसाइटी ,डाक्टर मेराज अहमद सिद्दकी ( प्रवक्ता एलपीयू जालंधर -पंजाब) ,प्रणव निदेशक पथ प्रदर्शक सोसाइटी इलाहाबाद ,नीरज सिंह कछवाह,अनुराज कुमार गोपाल आदि- आमंत्रण के साथ सादर सूचनार्थ है !

By: Ashish Sagar

अखण्ड बुंदेलखंड राज्य - Akhand Bundelkhand Rajya

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अखण्ड बुंदेलखंड राज्य 

जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

"अपनों बुंदेलखंड "

हरआदमी के ह्रदय में यह इच्छा रहती हैं कि उसकी जन्मभूमि का उत्थान हो, चहुंमुखी विकास हो तथा वह क्षेत्र देश विदेश में सुविख्यात हो। हम अपनी जननी के निकट रहे या दूर परन्तु जननी के प्रति आदर और प्रेम यथावत रहनी चाहिए। 

भगवान श्री राम की वनस्थली, पाण्डवों की शरणस्थली, देवतुल्य पूज्य दिमान हरदौल, महाराजा छत्रसाल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, प्रतापी वीर सिंह जू देव, रणचंडी दुर्गावती, महान पराक्रमी आल्हा ऊदल की वीर भूमि; गोस्वामी तुलसीदास जी, वेदव्यास जी , केशव, बिहारी, गुप्त, ईसुरी व वृन्दावन की साहित्यिक धरा ;संगीतकार तानसेन, गायक बैजू, मृदंग बाजक कुदऊ, उस्ताद आदिल खां, विश्व विजयी गामा पहलवान, हाकी के जादूगर दद्दा ध्यान चन्द्र, चित्र कार कालीचरण जैसे महान व्यक्तित्व की धरती बुन्देलखण्ड में जन्मे हर व्यक्ति का फर्ज है कि इस क्षेत्र के चहुंमुखी विकास हेतु पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी करें।

भारत का इतिहास बुन्देलखण्डियो की वीरता और त्याग का इतिहास रहा है। अनीति के विरूद्ध संघर्ष करने एवं दूसरों के हितों की रक्षा करने का इतिहास हैं। नि :संदेह हम सब बुन्देलखण्ड वासी इस वीर वसुंधरा बुन्देलखण्ड में जन्म लेकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। हमारी वीरता व सम्पन्नता से द्वेष रखने वाले गैर बुन्देलखण्डी आकाओं ने बुन्देली धरा के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भौतिक व राजनैतिक विकास को अवरूद्ध कर दिया है। शोषण, अन्याय व निर्दयता पूर्ण दोहन की पराकाष्ठा को पार कर देश की आजादी के 68 वर्षो बाद भी बुन्देलखण्ड वासियो को सच्ची स्वतंत्रता का एहसास नहीं होने दिया गया। स्वदेशी आकाओं की गुलामी से त्रस्त यह क्षेत्र आज अनेक विकराल समस्याओं से जूझ रहा है। आज सभी राजनीतिक दल सोची समझी रणनीति के तहत बुन्देलखण्ड क्षेत्र को हांसिये पर लाना चाहते हैं।  

आज बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलन को सशक्त और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है एवं अलग राज्य निर्माण के लिए बुन्देली आम जन मानस को जागरूक होने की आवश्यकता है। हर वर्ग की सक्रियता से ही इस पुनीत उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है। आप सभी गतिमान होकर संघर्ष में शामिल हो, बहुत जल्द बुन्देलखण्ड राज्य एक हकीकत होगा।

जय बुन्देलखण्ड!
कुँवर विक्रम सिंह तोमर

VIDEO: Avartanasheel Kheti by Farmer Prem Singh - Banda, Bundelkhand

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आवर्तणशील खेती (Alternate way of Farming) 

आवर्तणशील खेती (Alternate way of Farming) के मुख्य बिंदु :

  • एक तिहाई भाग में फलों व लकड़ी की खेती करी जाती है 
  • एक तिहाई भाग में पशुओं का पालन करा जाता है  
  • एक तिहाई भाग में  agro climatic zone के अनुसार आर्गेनिक खेती करी जाती है 

आवर्तणशील खेती के प्रभाव :

  • संतुलित पर्यावरण 
  • अच्छे पोष्टिक भोजन का उत्पादन 
  • उत्पादन में 10% -12% वृद्धि 
  • किसान समृद्ध होता है 

In Banda district in Uttar Pradesh, in the dry and semi arid Bundelkhand region, is a farm which is lush green and in stark contrast to the rest of the region. Prem Singh is the farmer who owns it and runs a farmers learning centre at his farm. He practises an alternative way of farming called Avartanasheel Kheti, where he advocates dividing the farmland into three equal parts. These three equal parts should have fruit plantations, millets and grains and fodder for cattle respectively.

Courtesy: Shri Prem Singh & Down to Earth Magazine


बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लाभ

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बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लाभ


1- बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण होने पर हमारी अपनी विधानसभा, अपना पृथक बजट, अपनी अलग राजधानी व बुन्देलखण्डी मुख्यमंत्री होगा। बुन्देलखण्डी ही शासक व अधिकारी होगे।

2- राज्य निर्माण होने पर केन्द्रीय सहायता, केन्द्रीय बजट का राज्य अंश व विश्वबैंक की सहायता सीधे बुन्देलखण्ड को मिलेगी।

3- बुन्देलखण्ड में सचिवालय, निदेशालय, बोर्ड, आयोग, रोजगार भर्ती केन्द्र, उच्च न्यायालय, राज्य स्तरीय तमाम मुख्यालयों की स्थापना होगी जिसमें बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलेगा।

4- बुन्देलखण्ड राज्य बनने पर राज्य की नौकरियों में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोगों को आरक्षण मिलेगा। चपरासी से लेकर डिप्टी कलेक्टर तक की नौकरियों में बुन्देलखण्डियो की भर्ती होगी। गैर बुन्देलखण्डी क्षेत्रों के अभ्यर्थियों से कॉम्पिटीशन नहीं रहेगा। पढ़ें लिखे नौजवान बेकार और बेरोजगार नहीं रहेंगे।

5- बुन्देलखण्ड में उच्च न्यायालय, राजस्व परिषद्, एड.जनरल, प्रदेश बार काउंसिल, अन्य न्यायालयों एवं स्टैंडिंग काउंसिल, सी. एस. सी. की स्थापना से वकीलों तथा जनता को लाभ मिलेगा।

6- बुन्देलखण्ड की बिजली एवं पानी का दोहन बन्द हो जायेगा। बुन्देलखण्ड क्षेत्र को 24 घंटे बिजली की आपूर्ति रहेगी जिससे उद्योग धंधों का विकास होगा।

7- बुन्देलखण्ड में पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। सिचाई को महत्ता मिलेगी। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसानों व मजदूरों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। खेत, खलिहान उद्यान का रूप ले लेंगे। किसान व मजदूर खुशहाल हो जायेगा।

8-सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड क्षेत्र पर्यटन राज्य के रूप में विकसित होकर देशी व विदेशी मुद्रा प्राप्त करेगा।

9- बुन्देलखण्ड में नई रेललाइनो का जाल फैलेगा व अच्छी सङको का निर्माण होगा। कई छोटे शहरों को मैट्रो सिटीज जैसा स्वरूप मिलेगा।

10- बुन्देलखण्ड के नौजवानों को रोजी रोटी कमाने के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा, उन्हें बुन्देलखण्ड में ही रोजगार मुहैया होगा।

11- बुन्देलखण्ड का सर्वांगीण विकास हो जायेगा तो पिछङापन, गरीबी, अशिक्षा व अपराध खत्म हो जायेगा। विकास की गंगा बहेगी हर तरफ खुशहाली होगी तब भारत विकसित राष्ट्र बनेगा।

12- बिछङे बुन्देलखण्डियो के संबंध अच्छे हो जायेगे, दो खण्डों में बंटे क्षेत्र से विकास में रूकावटें खत्म होगी।

13- बुन्देलखण्ड में औद्योगिक विकास हो जायेगा। बन्द पङे उपक्रम पुन:चालू हो जायेगे।

14- बुन्देलखण्ड राज्य बनने पर शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, तकनीकी, कृषि का विकास किया जायेगा।

15- बुन्देलखण्ड क्षेत्र में रह रहे हर पेशे व हर तबके के व्यक्ति को बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण से बहुत बङा लाभ होगा।

16- आई आई टी, एम्स, आई आई एम, चिकित्सा तकनीकी व उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना होगी।

17- राज्य सरकार की स्टाम्प ड्यूटी के रूप में हमारे राज्य को राजस्व आय होगी। खनिज व वन सम्पदा का दोहन बन्द होकर बहुत बड़ी मात्रा में राजस्व की आय होगी। जो आय बुन्देलखण्ड के विकास के लिए खर्च होगी।

18- बुन्देलखण्ड के मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, अधिकारियों व अन्य लोगों द्वारा बनाई गई विकास योजनाओं का क्रियान्वयन बुन्देलखण्ड की धरती पर होगा।

19- हमारे बुन्देलखण्ड का ही कोई लाल कुलपति बनकर बुन्देलखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करेगा।

20- छोटे जिले अस्तित्व में आ जायेगे, दोबारा परिसीमन में कई तहसीलों को जिला बनाया जायेगा। छोटे जिले हो जाने पर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में संसद सदस्य, विधान सभा सदस्य, नगर निगम,नगर पालिका , नगर पंचायत की संख्या भी बढ़ जायेगी। जिससे विकास व रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।

21-हजारो एकङ भूमि जो बंजर हो चुकी है, उसका समतलीकरण कर कृषि योग्य बनाया जायेगा।

22- युवा वर्ग को काम की तलाश में पलायन नहीं करना पड़ेगा, बुन्देलखण्ड में उद्योग स्थापित हो जायेगे, उत्पादन इकाइयों की स्थापना होगी, बाबूओ, इंजीनियर, हर पेशे के कर्मचारी व मजदूरों के लिए बुन्देलखण्ड में रोजगार के लिए रिक्तियों की भरमार रहेगी।

23- बुन्देलखण्ड राज्य का अपना पुलिस बल होगा।

24- बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के बाद जिन सुविधाओं से हम बंचित रहे हैं वह सुविधाएं बुन्देलखण्ड के छोटे कस्बों व गांवों में उपलब्ध रहेगी।

25- आज बुन्देलखण्ड के लोग जो अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं उनकी आने वाली पीढ़ी को विकासयुक्त, स्वस्थ व सम्पन्न बुन्देलखण्ड में जन्म लेकर गर्व महसूस होगा।

26- बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण होने पर बुन्देलखण्ड की महान विभूतियों जैसे महारानी लक्ष्मी बाई, महाराजा छत्रसाल, गुलाम गौस खा, रणचंडी दुर्गा वती, गोस्वामी तुलसीदास,महर्षि व्यास, गुरू द्रोणाचार्य, भक्त प्रह्लाद, हाकी के महान जादूगर दद्दा ध्यान चंद्र, वीरांगना झलकारी बाई, केशव, बिहारी, बृन्दावन, गुप्त जैसे अनेक महान पुरूषों के आदर्शों को पूरा विश्व हमेशा याद करता रहेगा। इन्हीं महापुरुषों की याद में बुन्देलखण्ड राज्य में तमाम नामकरण किये जायेंगे।

बुन्देलखण्ड राज्य का निर्माण होगा,
दीन दुखियो का कल्याण होगा।
हर खेत को पानी होगा,
हर हाथ को काम होगा।।

समस्याये अनेक, समाधान एक।
जन जन का हो एलान, अब हो बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण।।

छोटा प्रदेश -सुखी प्रदेश
खुशहाली का संदेश।
बुन्देलखण्ड प्रदेश।।

जय जय बुन्देलखण्ड

By: विक्रम तोमर

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(BOOK) JANEU जनेऊ - by ​Kirti Dixit

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(BOOK) JANEU जनेऊ - by ​Kirti Dixit


बुन्देलखण्ड की आंचलिक पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास कथामात्र न होकर एक ऐसी मनोवृत्ति है, जो धीमे जहर की भाँति को समाज को निगलती जा रही है। गाँव की सरल सहज गलियों में असमानता, घृणा एवं आवेश के ऐसे पत्थरों का समावेश हो गया है, जो प्रतिपल इस धरती को रक्तरंजित करने में लगे हैं।

प्रस्तुत कथावस्तु एक ऐसे सवर्ण युवक गोकरन की है, जो समाज के नियमों में असहाय खड़ा, अपना सर्वस्व समाप्त होते देखता है। उसके पिता हल्केराम जो आजीवन समाजहित के लिए, अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहे, अन्ततः अपमान की ज्वाला उन्हें लील जाती है। गरीबी एवं समाज के कुप्रपंचों में परिवार समाप्त प्राय हो जाता है, तब उस युवक के मन में घृणा एवं निर्लिप्तता के कैसे भाव जन्म लेते हैं, इसका सजीव दृश्यांकन है।

ये उपन्यास एक विमर्श है कि क्या इतिहास के नाम पर वर्तमान का सजा दी जा सकती है? सियासत भी इतिहास के पन्ने, अपनी सहूलियत के अनुसार पलटती है वरना इतिहास दोगलापन कभी नहीं करता। उसमें तो दूध के लिये बिलखता द्रोणपुत्र भी है और कर्ण भी, सुदामा भी है और एकलव्य भी। कथित तौर पर हम समानता में विश्वास करते हैं, लेकिन समानता है कहाँ? योग्यता तो आज भी कराहती रंगभूमि में खड़ी है। बस अन्तर यही है कि तब सूतपुत्र कर्ण था और आज कोई और_ तैयार रहें, एक और इतिहास लिखा जा रहा है और अपमान की लेखनी से लिखा इतिहास कुरुक्षेत्र की पटकथा ही लिख सकता है।.

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उद्योग विहीन बुंदेलखंड: जिम्मेवार कौन?

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उद्योग विहीन बुंदेलखंड: जिम्मेवार कौन?


बुंदेलखंड में लघु मध्यम उद्योगों को महज 4.66% व 3% ही हैं. कमोवेश पूर्वांचल की स्थिति बुंदेलखंड से कई गुना बेहतर है.जहाँ 29% लघु 14% मध्यम उद्योग हैं.जबकि बुंदेलखंड के पिछड़ेपन की तुलना सदैव पूर्वांचल से की जाती है. मध्यांचल में 14% लघु व 20% मध्यम उद्योग हैं. लघु उद्योगों का 52% व मध्यम उद्योगों का 63% पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है.

बुंदेलखंड में कांग्रेस दल,भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी,बहुजन समाज पार्टी ne उद्योगों की स्थापना कर यहाँ के विकास के बारे में किसी ने नहीं सोचा.

1991-2006 के दौरान उत्तर प्रदेश में कुल 1258औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुईं जिसमें से 866 (69%)पश्चिमी उत्तर प्र.,241 (19%) मध्य प्र.,149 (!2%)पूर्वांचल और सिर्फ 2 (0.16%) इकाइयाँ बुंदेलखंड में हुईं. इधर वर्ष 2006 से 2016 तक किसी भी प्रकार की किसी औद्योगिक इकाई की स्थापना बुंदेलखंड में नहीं हुयी. शंकरगढ़ में फ्लोट ग्लास महज़ उद्घाटन की गुनेहगार है और बांदा की कटाई मिल के मजदूर आज तक रोजगार की आशा में भटक रहे हैं.झांसी,जालौन में कुछ उद्योग चल रहे हैं.

क्षेत्र उद्योगों की संख्या 1991-2006 के दौरान लघु मध्यम स्थापित उद्योग संख्या

बुंदेलखंड  -     12,261     49          002
पूर्वांचल -        76,554     202       149
मध्यांचल -     37,560     330       241
पश्चिमांचल - 1,36,450   938       866
उत्तर प्रदेश -  2,62,825   1,489   1258

नसीर अहमद सिद्दीकी,
राष्ट्रीय महासचिव,
अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच

बुन्देलखण्ड में पाये जाने वाले खनिज एवं खान क्षेत्र (minerals found in Bundelkhand)

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बुन्देलखण्ड में पाये जाने वाले खनिज एवं खान क्षेत्र (minerals found in Bundelkhand)


बुन्देलखण्ड में पाये जाने वाले खनिज एवं खान क्षेत्र

1- हीरा--- हिनौता (पन्ना), छतरपुर, बांदा

2- यूरेनियम --- ललितपुर

3- प्लेटिनम --- ललितपुर

4- कांच बालू--- मुडारी बाला बेहट झांसी, शंकरगढ, बरगढ बांदा

5- सीसा --- दतिया, शिवपुरी

6- तांबा --- सोनरई (ललितपुर)

7- राँक फास्फेट --- छतरपुर, सागर, बांदा

8- सेलखङी --- हमीरपुर, झांसी

9- डोलोमाइट --- बांदा

10- जिप्सम --- झांसी, हमीरपुर

11- बैराइट --- सूरजपुर (टीकमगढ), शिवपुरी

12- गेरू --- पन्ना, ग्वालियर

13- गौरा पत्थर --- गौरहारी (हमीरपुर)

14- संगमरमर --- ग्वालियर, ललितपुर

15- डायस्पोर --- छतरपुर, टीकमगढ़, शिवपुरी

16- ग्रेनाइट --- बुन्देलखण्ड के अधिकांश भूभाग में ग्रेनाइट का विपुल भंडार है।

17- बालू --- बुन्देलखण्ड से निकली 1 दर्जन से अधिक बङी नदियों के प्रवाह से पूरे क्षेत्र में बालू की उपलब्धता है।

इसके अलावा सोना, अभ्रक और कोयला की भी बुन्देलखण्ड में उपलब्धता हैं।

By: Vikram Tomar

बुन्देलखण्ड के कुछ आकङे (Some figures of Bundelkhand)

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बुन्देलखण्ड के कुछ आकङे (Some figures of Bundelkhand)


बुन्देलखण्ड के कुछ आकङे:

1- कुल आबादी -------लगभग 3 करोड़ से ज्यादा 5संभाग

2- निरक्षरता -------कुल आबादी का 40%निरक्षर

3- पलायन ------- बेरोजगारी की मार से लगभग 60लाख से अधिक बुन्देलखण्डी अपने घरों में ताला डाल कर बङे शहरों की ओर पलायन कर गये

4- कृषि पर निर्भरता -------85%आबादी

5- किसानों द्वारा की गई आत्महत्या ------- अब तक लगभग 25000

6- बेरोजगारी ------- 60%युवा बेरोजगार

7- शुद्ध पेयजलापूर्ति -------95 %जलस्रोत गर्मियों में सूख जातें है,पेयजल की बङी समस्या

8- जल जनित रोग ------- 60-70%आबादी प्रभावित

9- भूख ------- 40%लोग चटनी रोटी खाकर गुजारा करते हैं। आधी से ज्यादा आबादी भयंकर गरीबी से त्रस्त

10- किसानों पर कर्ज -------90%किसान बैंक या साहूकार के कर्ज में डूबे, प्रतिकिसान 1से 2 लाख रुपये तक का कर्जदार

11- भय ------- पूर्व में 2 दर्जन डकैत गिरोह सक्रिय थे जिनमें कुछ का खात्मा हो गया है।

12- विश्वविद्यालय ------- ग्वालियर, सागर, झांसी, चित्रकूट, छतरपुर

13- मेडीकल कालेज -------ग्वालियर, झांसी, सागर, बांदा, दतिया

14- उद्योग ------- राज्यों का 1.5 %मात्र

15- स्वास्थ्य ------- सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में 50 %स्टाफ की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी

16- प्रोद्योगिकी शिक्षा -------प्रोद्योगिकी शिक्षा संस्थानों व उच्च शिक्षण संस्थाओं की कमी

By: Vikram Tomar

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