Demographic Study of Agrarian Society for sustainable Development in India. New Dimension in Research and Extension for Rural Development: By Dr Sarda Prasad
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By: Dr Sarda Prasad
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National
Human Rights Commission (NHRC) has asked Uttar Pradesh and Madhya Pradesh
governments to submit a report on the deplorable plight of people living in
drought-hit Bundelkhand region, covering the two states.
NHRC has taken suo motu cognisance of CNN-IBN's reports on starvation in the famine-hit Bundelkhand region.
"The media reports, carried on March 28 exposing the plight of the poor inhabitants of the Bundelkhand region, if true, raise serious issues of violation of human rights to life, equality and dignity of the people," observed the Commission and issued notices to the Chief Secretaries of both the states, calling for detailed reports within four weeks.
This comes just a day after Uttar Pradesh Chief Minister Akhilesh Yadav visited the region to distribute relief material. Akhilesh was in Mahoba, one of the worst-hit districts, to launch the Samajwadi Sukha Rahat Samagri Vitaran Karyakram - where free food packets were given to those categorised as poorest of the poor.
"The Central government has provided us funds for relief but that is not enough. It is both state and Centre's responsibility to take care of the drought situation in Bundelkhand," he said.
Courtesy: IBN Live
A 75-year-old Dalit man who was surviving on begging allegedly committed suicide after not being able to get food in Darguwa village near here.
Inspector C L Parihar of Baldeogarh police station said the deceased, Sukhya Vanskar, survived on begging in the village after his son left him some 20 years ago.
Kharagpur MLA and Congress leader Chanda Singh Gaur alleged that Sukhya hanged himself in his hut as he could not get food even after begging.
About Gaur's allegation that the old man ended his life after failing to get any food, the Inspector said the police were investigating the reason for suicide.
Courtesy: Business Standard
बुंदेलखंड
तेरी अजब कहानी ना पेट को पानी ना खेत को पानी , ऐसा ही कुछ नजारा बुंदेलखंड के
टीकमगढ़ जिले में देखने को मिल है।जहां गिरते जल स्तर ने इस साल करेला और नीम चढ़ा
वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ।नष्ट होते इस जिले के तालाबों के कारण एक तो जल
स्तर पहले से नीचे हो रहा था उस पर इस बार के सूखे ने जीने का सुख भी छीन लिया । यही
कारण है की जब फरवरी में स्वराज्य अभियान के योगेन्द्र यादव बुंदेलखंड के दौरे पर
आये थे तो उन्हें कहना पड़ा कि बुंदेलखंड के हालात देख कर मुझे डर लगता है ।तालब ,
कुए सूख गए हेंड पम्प जबाब देने लगे हैं । पीने के पानी का बड़ा ही गंभीर संकट है ।
आज जब यहहालात हैं तो आने वाले समय में और क्या हालात होंगे । यदि सरकार ने पानी के
लिए अभी से युद्ध स्तर पर प्रयास नहीं किये तो मराठवाड़ा जैसे हालात हो जाएंगे । पानी
की कारण गाँव के गाँव खाली हो जाएंगे ।
योगेन्द्र यादव का डर अब बुंदेलखंड में सच साबित होने लगा है । गाँवों की विकराल जल समस्या के बाद अब शहरों की भी हालत बिगड़ने लगीहै ।टीकमगढ़ में पानी पर लगे बन्दूक धारियों के पहरे भी पानी को बचा नहीं पा रहे हैं । वहीँ दमोह नगर में फ़िल्टर प्लांट से टंकियों तक पहुँचने वाली मुख्य पाइप लाइन को छेद कर लोग पानी की चोरी करने को मजबूर हैं । पानी की इस चोरी के चलते दमोह नगर की पानी की टंकी सुबह से शाम तक नहीं भर पाती । दमोह के लोगों की चिंता अब इस बात को लेकर है की सागर से उधार का पानी कब तक उनकी प्यासबुझाएगा ?
टेहरी से टीकमगढ़ बने इस नगर की लाख की आबादी की प्यास बुझाने के लिए नगर पालिका को खासी मसक्कत करना पड़ रही है ।उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के जामनी बाँध से अपने हिस्से का पानी लेने के लिए कई तरह के जातन करने पड़े थे । जब पानी मिला और बरी घाटपहुंचा तो नगर पालिका के सामने उसकी सुरक्षा की चिंता हो गई । इसके आसपास के उत्तर प्रदेश के गाँव के लोग और किसान इस पानी को चुरानेलगे थे । मजबूर होकर पालिका अध्यक्ष ने जल की सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड तैनात कर दिए । पर हथियार बंद सुरक्षा गार्डो के बाद भी पानी कीरात में चोरी होती रही । नगर पालिका को जिस जल भण्डार से उम्मीद थी की यह पानी मई -जून तक चल जाएगा , वह अप्रैल में ही ख़त्म होगया । अब नगर पालिका ने इसी नदी पर एम पी और यू पी के जंगलों के बीच मढ़िया घाट पर एक कुंड खोजा है , लोगों की मान्यता है की इस कुंड मेंबड़ा जल भण्डार है, कुंड के इस पानी को लिफ्ट कर बरिघाट पहुंचाया जा रहा है , जिससे मई तक का काम चल जाएगा । इस कुंड पर भी सुरक्षा गार्डतैनात किये गए हैं ।
टीकमगढ़ नगर की एक लाख की आबादी को हर तीसरे दिन पानी मिल पा रहा है । दरअसल बुंदेलखंड के इस जिले में भी पिछलेदो वर्षो से औसत वर्षा १०००.१ मिमी की नहीं हुई है । इस बार अनियमित रूप से ५०५ मिमी वर्षा होने से स्थिती और विकराल हो गई । परिणामतह जिले का जल स्तर नीचे खिसक गया है । जिले में लगे 9312 हेंड पम्पो में से 8706 चालू बताये जा रहे हैं और 606 बंद बताये जा रहे हैं ।जमीनी हकीकत इससे कही अलग है । जिले पम्प दुरुस्त करने के लिए 45 दल गठित करने और को रोजाना 5 -5हेंड पम्प सुधारने का लक्ष्य दियागया है ।
ये दल और प्रशासन तंत्र किस तरह से जिले की जल की व्यवस्था दूर कर रहा है यह आये दिन ग्रामीणों द्वारा दिये जा रहे ज्ञापनों से हीसाफ़ हो जाता है । ज्योरामोर गाँव में सरकारी रिकार्ड में छ हेंड पम्प लगे हैं जो गांव की तीन हजार की आबादी को पानी केलिए पर्याप्त माने जा रहे हैं। पर गाँव में आज के हालात में सिर्फ एक हेंड पम्प ही पानी दे रहा है , यही इनका सहारा है । बल्देव गढ़ विकाश खण्ड के दुर्गापुर पंचायत का गाँव हैखेरा , इस गाँव में दो हेंड पम्प लगे थे , जो पानी भी दे रहे थे , पर पीएचई वाले एक साल पहले सुधार के नाम पर इसके पाइप निकाल ले गए , फिरअब तक नहीं लौटे । अपनी व्यथा कलेक्टर साहब को भी सुना चुके हैं ।
बल्देवगढ़ विकाश खण्ड की भेलशी गाँव में पिछले आठ वर्षो से नल जल
योजना बंद पड़ी है । गाँव के 13 हजार की आबादी केसहारा बने हेंड पम्पो ने भी अब जबाब
दे दिया है ।पानी की जुगाड़ में गाँव के लोगों को दूर दराज तक भटकना पड़ता है । आठ
साल से बंद नल जलयोजना की पाइप लाइन भी जगह जगह से खराब हो चुकी है । यह योजना १५
साल पहले शुरू हुई थी सात साल तो ठीक ठाक चली फिर ऐसी बंद हुईकी पूर्णतः बंद हो गई
।
जतारा जनपद पंचायत के ९३ गाँवों में से टी दर्जन से ज्यादा गाँवों में मुख्य्मंत्री नलजल योजना पूर्णतः ठप्प है । इन नलजल योजनाओं में अधिकाँश ईएसआई हैं जो सिर्फ बिजली कनेक्शन के कारण , और पम्प जलने के कारण बंद पड़ी हैं । इसी जनपद का एक 600 की आबादी बाला गाँव है टानगा जहाँ के लोग तालाब में गड्ढा खोद कर पिने के पानी जुगाड़ करते हैं । गाँव हेंड पम्पअधिकांशतः खराब ही रहता है । गाँव वालों ने तहसीलदार को ज्ञापन भी दिया था कुछ समय के लिए दशा सुधरी फिर जस के तस हालात हो गए ।
निवाड़ी के लोगों ने सी एम हेल्प लाइन में भी शिकायत की थी , यहां के लोगों को हफ्ते में एक बार पानी मिलता है । लोगों को रोजानानिजी टेंकर मालिकों से पानी खरीदने को मजबूर होना पड़ता है । यू पी की सीमा से लगा गाँव है तगेडी गाँव की नल जल योजना दो साल से बंद पड़ीहै , गाँव के चार में से दो हेंड पम्प खराब पड़े हैं । पिछले दिनों पानी की लेकर इस गाँव के बच्चों ने स्कूल जाना भी बंद कर दिया था ।
बड़ागांव धसान नगर पंचायत में पांच दिन में एक दिन पानी सप्लाई किया जाता है । 15 हजार की आबादी के इस कसबे में पिछले सालजल को लेकर बढ़ते संघर्ष के कारण टोकन से पानी की व्यवस्था शुरू की गई थी ।
वहीँ टीकमगढ़ जिले के चंदेरा में पुलिस पानी का परमार्थ करने में
जुटी है । यहाँ के थाने में जब पुलिस वालों ने बोर कराया और उसमे अच्छा पानीनिकलने
पर गाँव के लोगों को बाँटने का निर्णय लिया गया । यहां के थाना प्रभारी राकेश तिवारी
बताते हैं की पानी को लेकर झगडे ना हो इसलिएलोगों के बर्तन रखवा लिए जाते हैं , उनमे
पुलिस के जवान सुाबह सुबह पानी भर देते हैं ।
इस बुंदेलखडं की दाना -पानी की इस समस्या को स्वराज्य अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव ने प्रदेश से लेकर देश के हर मंच पर उठाया । जब कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई तो वे सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे । सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सोती सरकारें भी अब जाग्रत हुई । बिकाऊ ख़बरों की तलाश में भटकने वाले राष्ट्रीय चैनलों को भी बुंदेलखंड की ख़बरें टी आरपी वाली नजर आने लगी । बिकाऊ ख़बरें जान कर कई राष्ट्रीय चैनलों ने अपने विशेष संवादाता और ओ बी वैन भेज कर खबरे बनवाई ।
पर इस दौर में लोगों ने यहां के जनप्रतिनिधि वर्ग को पूर्णतः निर्लिप्त भाव से तमाशा देखने वाला पाया । चाहे वे बुंदेलखंड इलाके के मंत्री पद पर विराजमान नेता भूपेंद्र सिंह हो अथवा सूखे के दौर में राई का नृत्य कराने वाले गोपाल भार्गव हों , जयंत मलैया ,कुसुम मेहदेले अथवा खुद उमा भारती ही क्यों ना हो । जो काम इन लोगों को करना चाहिए था वह एक बाहर का व्यक्ति योगेन्द्र यादव कर गया । नेताओ को शायद ये भरोषा है की जब सारी कायनात जल के लिए अपनी जान दे देगी तब भी उनके घरों में पानी का भण्डार रहेगा ।
By: रवींद्र व्यास
''हजारों तालाब की कब्रगाह वाले बुंदेलखंड में दो हजार नए तालाब और '' !!!
दो हजार और नए तालाब बनवाने जा रही उत्तर प्रदेश सरकार जिस पर
181.65 करोड़ रूपये यानी एक तालाब नब्बे हजार,आठ सौ पचीस रूपये अनुमानित लागत आएगी !
यह तालाब किसान अपने खेत में बनाएगा ! उधर मनारेगा से बनाये गए सोखता गड्ढे,चन्देल
कालीन उजाड़ तालाब सूखे है जिनमे पानी नही है ! वर्षा जल प्रबंधन की मिशाल में बने
ये तालाब आज छतरपुर,पन्ना(लोकपाल सागर ,धर्म सागर,बेनी सागर ) ,टीकमगढ़,चित्रकूट तक
धूल फांक रहे या अवैध कब्जे के शिकार है सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद ! इसमे
शामिल है लेखपाल,अपर जिलाधिकारी राजस्व और दबंग नेता/ लोग !...सवाल यह कि ये तालाब
भरे कैसे जायेंगे ? ...मतलब साफ है हर हाल में सरकारी मिशनरी किसान के नाम पर धन
खाना चाहती है और आश्चर्य ये है कि ऐसे योजना की सलाह बुंदेलखंड के कुछ पानी वाले
डमरूबाज दे रहे है !..'अपना तालाब 'का नाम देकर यह सलाह गत दिनों बाँदा के दौरे पर
आये प्रदेश सरकार के सचिव अलोक रंजन को पडुई सुहाना में दी गई थी ! ऐसी ही योजना
पूर्व बसपा सरकार में 'खेत तालाब 'आई थी जिसमे किसान को तालाब के बदले सिचाईं के
लिए एक वाटर स्प्रिंकलर सेट मिलना था जो नही मिला वो मंत्री जी खा गए !...तालाबो के
सुखाड़ का यह खेल उतना ही घातक होगा किसान के लिए जितना की किसान क्रेडिट कार्ड से
उपजी आत्महत्या !...तस्वीर में महोबा का विजय सागर तालाब है ! इस नए दो हजार तालाब
के खेल पर महोबा के गुगोरा निवासी किसान पंकज सिंह कहते है कि जब अपना तालाब जैसी
योजनाएं लोगो के दिमाग में घुसेड़ी जा रही तब हम बूँद बूँद पानी को तरस रहे है !
एक ज़माना था जब बुंदेलखंड के खेती वाले इलाके में पूरे के पूरे
खेत 4 महीने तालाब बने रहते थे हम अन्न धन से दुखी नही थे.बिना किसी उर्वरक के खेती
में खूब पैदा करतेथे सरकारों ने हमें लालच दिखाकर रासायनिक खाद दी हम आलसी हो गए
खेतों को भरना छोड़ दिया. खेतों को इतना मुफ्तखोरी का लती बना दिया कि रसायन खाद बिना
एक दाना भी पैदा नहीं कर सकते ! खतरनाक रासायनिक उर्वरकों से पैदा अनाज खाकर हम ऐसे
हो गए की अपने खेतों में पड़ी बंधियों को रूंध नही पाते बरसात का पानी बहा कर बारिश
ख़त्म होने के बाद ही सूखा सूखा चिल्लाने लगते है। कभी खेत में मेड और मेड में पेड़
की परंपरा को चकबंदी खा गई है ! आज किसान की मेड में पेड़ नही मिलता है !
गौरतलब है कि महोबा का विजय सागर तालाब एक पक्षी अभयारण्य भी है
! विजय सागर एक झील है, जिसे 11वीं शताब्दी में मध्यप्रदेश के विजय पाल चंदेला ने
बनवाया था। यह अभयारण्य शहर से पांच किमी दूर है और पक्षियों की कई प्रजातियों को
अपनी ओर खींचता है। तैराकी और वाटर स्पोर्ट्स को पसंद करने वालों के लिए यह एक
आदर्श जगह थी जो अब वीरान है। मगर आज महोबा के कीरत सागर(पुरातत्व के संरक्षण में
है ),मदन सागर,बाँदा के छाबी तालाब,बाबू राव गोरे तालाब अतर्रा कसबे के कभी सौ - सौ
बीघे में फैले तालाब मसलन मूसा तालाब (1.97 एकड़),धोबा तालाब (1.44 एकड़),दामू
तालाब(7.88 एकड़), गंगेही तालाब ( 4.93 एकड़ ),घुम्मा तालाब (3.32 एकड़),भवानी तालाब
(2.0 एकड़ ), गोठिल्ला तालाब ( एक एकड़ ), खटिकन तालाब ( 6 एकड़ ),भीटा तालाब ( 11 एकड़
) इसके अतिरिक्त टेकना,गर्गन,देउरा बाबा तालाब अपने अस्तित्व को खो चुके है ! यही
सूरत झाँसी के लक्ष्मी तालाब की जिसमे जल मंत्री उमा भारती का साइबर ऑफिस खुला है
और अब एक बड़ी आवासीय कालोनी इस तालाब की छाती पर सीना ताने है ! बुंदेलखंड कभी अथाह
जल राशी वाले तालाबों का गर्भ गृह था जो आज सूखे और जल त्रासदी की चपेट में है !
समय रहते हमें आवश्यकता है अपने प्राचीन तालाबों / कुएं को सहेजने की नही तो यह नए
नए पानी बचाने वाले तमाशे कमाई का साधन मात्र साबित होंगे यथा हुयें भी है !
By:- आशीष सागर,समाज कर्मी / भारतीय किसान यूनियन(भानु) प्रवक्ता बुंदेलखंड.
नदी नाल सूखे पड़े, सूखे पनघट ताल ।।
भीषण सूखे ने किया, लोगों को कंगाल ।।
गली ख़ोर सूनी पड़ीं, सूने पड़े मकान ।
सूने सूने खेत सब, सूने सब खलिहान ।।
सूखे ने सबको किया, है इतना मजबूर ।
गाँवों के मालिक बने, शहरों के मज़दूर ।।
कैसे बीतेगा वहाँ, सूखे का ये साल ।
पानी बिन होने लगे, जीव जंतु बेहाल ।।
कहने को तो दे दिए, रुपय आपने लाख ।
काम वहाँ पर अब तलक, दिखा नही है ख़ाक ।।
ऊपर से भेजी गयी, राहत कई करोड़ ।
सम्भव है शायद मिले, अब सूखे का तोड़ ।।
पढ़ा आज अख़बार में, बहुत बड़ा अनुदान ।
पहुँचेगा दिन सात में, दिल्ली से ऐलान ।।
मोदी जी ने तो दिए, दिल्ली से निर्देश ।
सभी किसानों के हरो, फ़ौरन ही सब क्लेश ।।
आप ज़रा अखिलेश जी, राखो इतना ध्यान ।
सूखा राहत राशि को, लूटें ना शैतान ।।
सुने किसानों के वचन, हुए बहुत हम दंग |
लेखपाल कानूनगो, करते उनको तंग ||
नेता जी कैसे करें, उनकी आज तलाश |
गुम होतीं जो फाइलें, जा बाबू के पास ||
अखबारों में हो गये, वह तो मालामाल |
किन्तु मिलेगा कब उन्हें, ये है बड़ा सवाल ||
कवि-'चेतन'नितिन खरे
सिचौरा, महोबा, बुन्देलखण्ड
बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर जिले के नौगांव के निकट धसान नदी
में पिछले दिनों पानी की तलास में नगर पालिका ने कई बोर करवाए पर किसी में पानी नहीं
मिला । आम तौर पर देखा जाए तो यह सामान्य घटना है , किन्तु यदि सोचा जाए तो यह एक
भयानक चेतावनी है । सदियों से बहती नदी में यदि बोर कराने पर पानी नहीं मिल रहा है
तो बाकी स्थानों की दशा क्या होगी । क्या यह ये बताने के लिए पर्याप्त नहीं है की
बुंदेलखंड का इलाका अब भू -जल दोहन के लिए अनकूल नहीं है ? सरकारी रिकार्ड में भू
जल से समृद्ध माने जाने वाले इस क्षेत्र में पुनः सर्वेक्षण की जरूररत है ।
दरअसल जिले की नोगाँव नगर पालिका के सामने जनवरी माह में ही जल संकट खड़ा हो गया था । संकट के समाधान के लिए नगर पालिका ने धसान के आस पास जल श्रोत तालशे , टीला जलाशय से पानी लाने का भी प्रयास किया पर हर जगह से नाकामी के बाद पालिका ने धसान नदी में ही कई बोर इस आशा में करा दिए की नदी में बोर कराने से पर्याप्त भू जल मिल जाएगा , पर नहीं मिला । भू -जल तो नहीं मिला पर इस जतन ने एक खतरे की घंटी जरूर बजा दी जिसको समझने की जरूरतः ना सिर्फ नागरिकों को है बल्कि सरकार और उसके तंत्र को भी है ।
बोर की असफलता के बाद नगर पालिका के सामने संकट था की अपनी 70 हजार की आबादी की प्यास कैसे बुझाए ? नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अभिलाषा शिवहरे कहती हैं की नगर में पानी पास की धसान नदी से सप्लाई होता था ।पिछले जनवरी -फरवारी माह में नदी पूर्णतः सूख गई थी । नगर पालिका ने नदी में भी कई बोर करवाए पर वहां भी पानी नहीं निकला । ऐसी हालात में परिषद के सामने एक बड़ा संकट आकर खड़ा हो गया की लोगों को पानी कैसे दिया जाए । नोगाँव इलाके में मात्र 11 इंच वर्षा हुई थी , नगर के बोरवेल भी ठप्प हो गए थे । पालिका के बोर वेळ से सिर्फ 2 लाख लीटर पानी ही हम जुटा पा रहे थे । जब की नगर को रोजाना २४-२५ लाख लीटर पानी की जरुरत थी । ऐसे में हमने और नगर पालिका के परिषद ने बगैर किसी दल गत भावना के लोगों से जल दान की अपील की । इसका असर ये हुआ की परिषद के पार्षद जितेन्द्र यादव उनके भाई जिला पंचायत सदस्य प्रीतम यादव , महेंद्र अग्रवाल ,सोनू जैन ने अपने बोर वेळ का पानी नगर पालिका को दान में दे दिया । गर्मी में जो टेंकर लगाए गए हैं वे लोग भी अपना पानी देते हैं जिससे लगभग 18 लाख लीटर पानी एकत्र हो जाता है । इस तरह 20 लाख लीटर पानी नगर को हर दूसरे दिन प्रदाय किया जा रहा है । महीने भर से यह नगर पालिका दान के जल से लोगों की प्यास इसी तरह से बुझा रही है ।
परिषद दान का पानी सम्पवेल में डालती है और फिर नलों के माध्यम से लोगों तक पहुंचता है । टेंकर सिर्फ उन्ही इलाकों में जाते हैं जहाँ पानी की लाइन नहीं हैं और नलो से वहां पानी नहीं पहुंच पाता ।
नौगांव नगर के समाजवादी पार्टी के नेता और जिला पंचायत सदस्य
प्रीतम यादव कहते हैं की जब लोगों की प्यास का सवाल आता है तो हम पीछे नहीं हटते
हैं । श्री यादव ने बताया की हमने अपने सूखे खेतों को पानी देने से कहीं जयादा जरुरी
समझा लोगों को पानी देना । नगर पालिका अध्यक्ष की अपील पर अपने दोनों खेतों के तीनो
बोर नगर पालिका के हवाले कर दिए । और जरुरत पड़ने पर और बोर कराने की बात कह रहे हैं
। इसी तरह से नगर के महेंद्र अग्र्रवाल और सोनू जैन ने भी अपने बोर वेळ नगर पालिका
के हवाले कर दिये ।
कभी ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट द्वारा बसाया गया नौगांव नगर प्रदेश का एक मात्र ऐसा नगर है जो अपने 180 चौराहों के लिए जाना जाता है । यहां 36 रियासतों की विशाल कोठियाँ हुआ करती थी जिनमे जल के श्रोत के लिए कुओं का निर्माण हर कोठी में किया गया था , पर आज इनमे से अधिकांश नष्ट हो गए हैं , नगर के 70 फीसदी से ज्यादा ट्यूब वेळ जबाब दे चुके हैं । इसके पीछे जो कारण बताया जा रहा है यह जिले की यह एकलौती नगर पालिका है जहाँ कोई सरोवर नहीं है ।
छतरपुर जिले में लगातार अल्प वर्षा ने इस बार लोगों के सामने एक ऐसा संकट खड़ा कर दिया है , जिसने उसका सुख चैन सब छीन लिया है । जिले के बिजावर विकाश खण्ड के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र किशनगढ़ के पाठापुर , कर्री , टिपारी (नगदा ) महर खुवा , बेहरवारा , बिला , रायचोर , धबरा , नैगुवां , पुरवा , गर्दा ऐसे गाँव हैं जहां लोगों की दिनचर्या पानी से शुरू होती है और पानी पर ही ख़त्म होती हे । पर इस क्षेत्र में पानी प्रदाय के लिए टेंकर उन गाँवों को दिए गए जिन गाँवों में जल के श्रोत पर्याप्त थे । टेंकर वितरण की यह दशा देख कर यही कहा जा सकता है की सरकार और प्रशासन भी चाहता है जो परेशान हैं वे और परेशान हो ?
प्रकृति और वन सम्पदा से परिपूर्ण इस क्षेत्र के पूर्व में केन , उत्तर में श्यामरी ,पश्चिम में बराना और दक्षिण में सोनार नदी का जल प्रवाहित होता रहता है । इसके अलावा दर्जनों वर्षा कालीन नाले इस इलाके में प्रवाहित होते हैं , । इन नदियों के मध्य का 100 किमी का इलाका जल के लिए तरश्ता है । सरकारे आती जाती हैं , नेताओ का सैलाब चुनाव के समय उमड़ता है फिर ना जाने कहाँ खो जाता है । पाठापुर तो ऐसा गाँव है जहां सिर्फ एक मात्र महिला विधायक( उमा यादव ) इस गाँव तक पहुंची थी , इसके बाद आज तक कोई नहीं पहुंचा । शायद आदिवासियों का उपयोग जन प्रतिनधि सिर्फ वोट के लिए ही करना जानते हैं ।
जिले के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के बस्तों में बंद कागजों
और कम्प्यूटर में जिले में 385 नल जल योजनाएं ,12 हजार 375 हेंड पम्प लगे होने का
दावा किया जा रहा है । भू जल सर्वेक्षण की रिपोर्ट को अगर देखा जाए तो छतरपुर जिले
में 45 से 65 मीटर जल स्तर नीचे खिसका है । मतलब साफ़ है की जिले में प्रथम लेयर जो
35 मीटर की मानी जाती है का जल दोहन कर चुके हैं दूसरी लेयर जो 70 मीटर की मानी जाती
है उसके नजदीक हैं । ऐसे हालातो में 60 फीसदी हेंड पम्पो ने साथ छोड़ दिया है । गिरते
जल स्तर के कारण नल जल योजनाएं भी प्रभावित हुई हैं । इन नल जल योजनाओं में अधिकाँश
नल जल योजनाएं बंद पड़ी हैं कही जल श्रोत सूखे तो कही विद्दुत कनेक्शन कटा तो कही
पम्प खराब तो कहीं पंचायत ने संचालित करने से ही मना कर दिया । बुंदेलखडं पैकेज की
नल जल योजनाओं के तो और भी बुरे हाल हैं । बक्श्वाहा ब्लाॅक की 9 नलजल योजनाओं में
चार बंद ५ चालू , बड़ामलहरा की १५ में ६ बंद ९ चालू ,राजनगर की २० बंद ९ चालू ,
छतरपुर की २० बंद ११ चालू , नोगाँव की 14 , गौरिहार की ११ ,और लवकुशनगर की
बुंदेलखंड पॅकेज की ८ नल जल योजनाएं बंद पड़ी हैं । जिले के 131 गाँव सिर्फ इस कारण
से वीरान हो गए क्योंकि उनमे कोई जल श्रोत ही नहीं था । सरकारी आंकड़े बताते हैं की
पिछले चार सालो में पानी के नाम पार पानी की तरह पैसा बहाया गया और 271 करोड़ रुपये
खर्च किये गए ।
सरकार विधान सभा में इसे प्रकृति का कहर मानती है , पर इंतजाम से तौबा कर लेती है । शायद इसी लिए मध्य प्रदेश सरकार ने लोगों को प्रकृति के भरोशे छोड़ दिया । जब की जरुरत इस बात की है की सरकार और जन मानस को पाताल में पहुँचने वाले पानी को ऊपर उठाने के लिए वृहद जल सरचनाो का निर्माण करे । , वृक्षारोपण किया जाए , आवश्यक सी सी का जाल ना बिछाया जाए , ज्यादा से ज्यादा भूमि खुली रखी जाए, तालाबों और नदियों के अतिक्रमण को सख्ती से रोका जाए । , भू जल का अंधाधुंध दोहन पर रोक लगाईं जाए ।
By: रवीन्द्र व्यास
Exam Name:लेखपाल
Year: 2015
District:झांसी
Courtesy: Jhansi NIC
अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद
पूज्य/प्रिय भैया-बिन्ना हरौ,
जड़कारे के ‘बुन्देली सम्मेलन ओरछा’ के बादई अपन अब जेठमासन के बुन्देली सम्मेलन भोपाल के न्यौते की बाठ हेर रए हुइयौ । सो अपन अपने सुवीर पुरुष और ऐतिहासिक नायक छत्रसाल जू की जैन्ती पै आयोजित बुन्देली समारोह-2016 में,भोपाल 7 जून खों न्यौते हैं,अवस्स कें पधारियौ।‘सात समन्दर पार’ग्रंथ छपगऔ,लोकार्पन खों आपकी बाठ हेरें। हालांकै अपन खों जा जानकें दुःख हुइयै कै ई सालै मध्यप्रदेष सरकार के संस्कृति विभाग ने अपनी ई संस्था खों, अकारन, एकउ पइसा अनुदान नईं दऔ। ई सें गये साल कौ खर्चा और अंगाई के,मानें ई साल कौ काम बिवूचन में पर गऔ।कंगाली तौ ठीक पै कर्जा लद गऔ।पै अपन कुन सरकार के आसरें आ टिके।अपन अपने ‘आदर’और‘साहित्य रचे’ खों कैसें रोक सकत? हम सब तौ हर हाल में काम करवे के सदियन सें आदी हैं।बुन्देलखण्ड वारन के संगै तौ हर जांगा सरकार दुआभॅंाती करत। पै का कर सकत जबर मारै रोउन ना देए। हां,हो सकत अपन ई सालै अपन अपनै पांव कम फैलायें जी में पिछौरा नइं फट जाये। पै अपनौ संग उर आत्म बल हमे मिलहै तौ हम ठैरवे वारे नइंयां। सो अपन भोपालै पधारौ हम स्वागत में हात जोरें ठांड़े मिलें। सब कछु पैलइं घांइ हुयै। अपन सें बिन्ती है कै- एक तौ पुरस्कार के लाने प्रविष्टियां अखबार में प्रचारित करकें अपने इतै सें12मई तक पौंचावें। दूसरे-कित्ते जनें बुन्देली में आलेख‘आपके असफेर में सूका और पानी के पुराने और नये सोत’.या कै बुन्देली के पैले सचित्र खण्ड काव्य‘जय वीर बुंदेले ज्वानन की’..की पांचई साल गिरह पै अपने विचार....लिखकें जल्दी पौंचायें उर-7 जून खों को को भोपालै आयें ,जा पक्की जानकारी 15 मई तक पौंचावें कै कित्ते जनें पधारें। मो0 9826015643 पै सम्पर्क बनायें राखें। तीसरें-अपनी इकाई की प्रगति रिपार्ट 15 मई तक पौंचायें।जी सें इनाम पै विचारो जायै। चैथे-अपन अपने सुझाव एन मौका पै कॅंय,कै नांय मांय कॅंय,सो सुदार खों हमें निसंकोच अवस्य पैल पौंचायें। पांच- अपन के स्वागत,भोजनन कौ इंतजाम हुयै पै अपन बुन्देली रचनाधरम नइं बिसारियौ।
प्रेस.विज्ञप्ति
प्रति वर्ष की भाॅति इस वर्ष भी बुन्देली समारोह-2016 भोपाल में बुन्देली साहित्य पर विविध पुरस्कार प्रदान किये जाना है।अतःप्रविष्टियां .आमंत्रित हैं। बुन्देली भाषा में लिखीं किसी भी विषय पर अथवा बुन्देलखण्ड पर लिखी किसी भी भाषा में 3-3 पुस्तकें ,मौलिकता के प्रमाण पत्र एवं लेखक के फोटो और बायोडाटा सहित आमंत्रित हैं।पुस्तकें 12 मई 2016 तक परिषद् के पंजीकृत पते-75चित्रगुप्त नगर,कोटरा,भोपाल462003म. प्र., पर व्यक्तिगत अथवा डाक से आष्यक रुप से पहुंच जाना अनिवार्य है। संस्था का निर्णय अन्तिम होगा। और अधिक जानकारी के लिये मोबायल 09826015643 पर प्रातः 8से 10 या संध्या 6 से 8 बजे तक प्राप्त की जा सकती है।
By: Bundelkhand Parishad
बुंदेलखंड के पन्ना जिले के कलेक्टर के पास छोटे छोटे बच्चे अपनी गुल्लक की जमा
पूंजी , तो कोई बच्चा अपने जन्म दिन पर मिली उपहार की राशि लेकर पहुंचे । इन बच्चों
ने जब उन्हें यह बताया की वे यह राशि नगर के धर्म सागर तालाब की खुदाई के लिए देने
आये हैं तो बरबस ही कलेक्टर की आँखें भी नम हो गई । पिछले एक माह से पन्ना नगर के
प्रमुख धर्म सागर तालाब की खुदाई का काम चल रहा है । तालाब की इस खुदाई में यहां की
जनता और प्रशासन कंधे से कन्धा मिलाकर अभियान में जुटे हैं । क्या मालिक ,क्या
मजदूर ,क्या धर्म क्या जाति , हर कोई तन मन और धन से जल की जंग में जुटा है ।पन्ना
के ही बुजुर्ग बताते हैं कि पन्ना में ऐसा अभियान वर्षो पहले तब देखने को मिला था
जब पन्ना को जिला बनवाना था । इस सब के बीच कुछ ऐसे भी राज तत्व हैं जिन्हे यह
अभियान रास नहीं आ रहा है ।
जनवरी और फरवरी माह में यहां के लोगों ने धर्म सागर तालाब और इससे जुड़े 56 कुओं की
दशा देख कर जल संकट का अनुमान लगा लिया था ।पन्ना का कभी ना सूखनेवाला धर्म सागर
तालाब जब सूखने लगा तब प्रशासन को भी आने वाले खतरे का
अहसास हुआ । पन्ना कलेक्टर शिव नारायण सिंह चौहान स्वयं तालाब देखने पहुंचे उन्होंने
तालाब और उससे जुडी जल सुरंगों को समझा । तब तय हुआ की तालाब का जल श्रोत बेहतर हो
जाये , और तालाब में पर्याप्त जल भराव हो जाए इसके लिए प्रयास किये जाए । ताकि पन्ना
नगर को फिर कभी जल अभाव का सामना ना करना पड़े । इसके लिए जरुरत थी धन और श्रम के
साथ लोगों के मन की
। पन्ना के केंद्रीय विद्यालय में तीसरी क्लास की छात्रा मिनिषा दुबे ने जन्म दिन
पर उपहार में मिले 1111 रु तालाब के लिए कलेक्टर को दे दिए , इसी तरह दर्जन भर बच्चों
ने अपनी गुल्लक में जमा राशि इस पुनीत कार्य के लिए दे दी । नगर के किन्नर गुरु
हमीदा ने 1o हजार रु देकर,नगर के कटरा मोहल्ला की चंद्रा रानी ने अपनी वृद्धावस्था
पेंशन 500 रु कलेक्टर को सौंप कर समाज को अपने सामाजिक सरोकारों का अहसास कराया ।
इस तरह अब तक लगभग ३२ लाख रु की राशि जन सहयोग से जुड़ गई ।
तालाब के लिए जन अभियान :
पन्ना के सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों को जब पता लगा की सरकार ने धर्म सागर और
लोक पाल सागर के काया कल्प के लिए तीन करोड़ 31 लाख की स्वीकृति दी है । इसके लिए
बाकायदा टेन्डर भी लगे और ठेकेदारों ने टेंडर भी डाले । टेंडर स्वीकृति के बाद ,
उसकी सूचना भी ठेकेदार को दी गई , पर स्वीकृति के अंतिम चरण में थी तभी एन मौके पर
टेंडर निरस्त करवा दिया गया । यह किसी और ने नहीं बल्कि पन्ना के ही सत्ताधारी
राजनैतिक रसूख वाले व्यक्तित्व के प्रयासों से हुआ । दरअसल उन्हें इस बात की जानकारी
लग गई थी की यह टेंडर जिस कम्पनी को मिला है उसे उनके कथित राजनैतिक विरोधी का
संरक्षण है । सियासत की इस जंग में पन्ना को इस तरह एक बड़ा नुक्शान अपनों के ही
कारण हुआ ।
इसकी भनक जब पन्ना की जुझारू जनता को लगी तो लोगों ने नगर के जीवन दाई धर्म सागर तालाब को नया जीवन देने का प्रण लिया और यहां के कलेक्टर ने उसमे सहयोग दिया । जिसकी जनता और मीडिया में जम कर प्रशंसा हो रही है । अब उन्हें यह बात भी उन्हें नागवार गुजर रही है की इसका श्रेय उन्हें नहीं बल्कि कलेक्टर को मिल रहा है । अब कौन उन्हें समझाए की विकाश में अवरोध पैदा करने वालो को जनता और उनकी विरादरी के लोग लम्बे समय तक बर्दास्त नहीं करते ।
धर्म सागर तालाब
17 वी सदी में सभा सिंह तत्कालीन राजा ने पन्ना नगर के मदार टुंगा पहाड़ी की तलहटी
में विशाल तालाब का निर्माण 1745 में धर्म कुंड से शुरू कराया । कुंड के प्रति लोगों
कीआस्था को देखते हुए यहां शिव मंदिर का भी निर्माण किया गया । 1752 में जब यह
तालाब पूर्ण हुआ तो लोगों ने इसे धर्म सागर नाम दे दिया । 75 एकड़ में फैले इस तालाब
निर्माण के दौरान 56 जल सुरंगे बनाई गई थी ,और सुरंगों को नगर के कुओं पार्क और महल
के तालाब से जोड़ा गया था । धर्म सागर तालाब से नगर के कुओं तक जल सुरंगों का जोड़ना
अपने आप
में एक अनोखा प्रयोग था । 9 किमी जल अधिग्रहण क्षेत्र क्षेत्र वाले इस तालाब का
निर्माण इस तरह से किया गया है की इसमें किसी भी तरह से शहर की गन्दी नालियों को नहीं
जोड़ा जा सकता है । इस तालाब का जब निर्माण हुआ था उस समय पत्थरों पर बसे इस नगर के
लोगों को भयानक जल संकट का सामना करना पड़ रहा था , अब जब इसका जीर्णोद्धार भी ऐसे
समय हो रहा है जब नगर के लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं ।
तालाब के जीर्णोद्धार के बाद यहां वर्षो तक के लिए लोगों को सूखा से संघर्ष का बल मिलेगा । इस बात की भी जरुरत समझी जाने लगी हैं की नगर के अन्य तालाबों का भी जीर्णोद्धार हो और अतिक्रमण कारियों से नगर के तालाबों को मुक्त कराया जाए ।
By: रवींद्र व्यास
आदरणीय ग्रह मंत्री,भारत सरकार, नई दिल्ली।
इस देश का किसानऔर विशेषकर बुन्देलखण्ड का किसान भयावह विपदाओं के दौर से गुज़र रहा है। और अकेला महसूस कर रहा है। हालाँकि यह पिरणाम आपकी सरकार के कारण नहीं हैं अपितु विकास के उस माडल, िजसको नेहरू जी ने स्वीकारा था, के कारण हैं और उसके चार प िरणाम हैं, खेतों की अनुत्पादकता, असन्तुिलत पर्यावरण, ज़हरीला खाना और मज़दूर बनता/आत्म हत्या करता किसान।जो किसान, जब पूरा विस्व मंदी के दौर से गुज़र रहा था तब भी पूरे देश को उसके प्रभाव से बचा सकता है, वह किसान केवल एक सालओले पड़ने से आत्म हत्या नहीं कर सकता।इसकी जड़ें संविधान,संसद और राजनैतकि द्रिष्िट कोंण में हैं। आपको गत चुनाव में जो भारी बहुमत मिला था, उसमें हम किसानों का एक बड़ा िहस्सा था,आपकी सरकार से बड़ी अपेक्षायें थीं। उन अपेक्षाओं में एक यह भी थी कि हम किसानोंके मूल समस्या की समीक्षा की जायेगी और आमूल प िरवर्तन कारी क़दम उठाये जायेंगे। क्र िष नीित बदली जायेगी और कर्िष को प्रभावित करने वाली अन्य नीितयों की पुनः समीक्षा की जायेगी जैसे-खनिज नीित,पर्यावरण नीित,जल नीित आिद।
महोदय,
िहन्दुस्तानी राजनीति की कुछ विडम्बनाओं की तरफ़ आपका ध्यानाकर्षण कराना चाहते हैं-
१-आज़ादी से अब तक १५ बार लोक सभा का गठन हुआ, हर बार रूिलंग पार्टी की सहमति से कुछ सांसद राष्ट्रपति महोदय द्वारा नामित किये जाते हैं , िजन्हों ने राष्ट्र िहत में काम किये हैं। आज तक पैसे लेकर नाचने गाने वाले लोग, पैसे केिलये खेलने वाले लोग, पार्टी को चंदा देने वाले लोग,िजसमें आज तक उनसे किसीकोभी राष्ट्र िहत नहीं िदखाई िदया है,का मनोनयन किया जाता है। ८० %किसान होने के बावजूद कोई किसान आज तक किसान मनोनीतनहीं हुआ, क्या किसानी राष्ट्र िहत नहीं है?
२-इसी प्रकार राज्यों मेंिशक्षकों,व्यापारियों,वकीलों,ग्रेजुयेटों आिद के प्रितिनििध विधायक हैं।किसानों के क्यों नहीं हो सकते? और यदि कहेंकि जो सांसद,विधायक चुनेजाते हैं उनमें भी तो किसान हैं, तो महोदय ये सब पार्टी और अपने नेताओं की विचार धारा से बँधे हुये लोग हैं, जो उस लाइन से हट कर राष्ट्र िहत और किसान िहत की बात नहीं कर सकते।
३-इस देश में सैकड़ों की तादाद में पद्म पुरस्कार,साहित्य के पुरस्कार,विज्ञान के िलये पुरस्कार आिद अनेक कार्यों और क्षेत्रों के िलये दिये जाते हैं,आज तक किसी किसान और किसानी के िलये कोई सम्मान नहीं है। ऐसे में जब ऊपर के लोग ही किसान और किसानी का सम्मान नहीं करते तो नीचे के लोग अर्थात्कर्मचारी कैसे सम्मान करेंगे?और क्यों किसी का मन किसानी में लगेगा। और जब मन ही न लगेगा तो विकास कैसे होगा?
४-किसानों की आत्म हत्या का तात्कालकि और मूल कारण क़र्ज़ से दबा होना है। जून के महीने में जब बैंक वसूली के िलये किसानों के ऊपर दबाव बनायेंगे, तब आत्म हत्या का दौर अबू और बढ़ेगा। यदि आप किसानों के िहत में कुछ करना चाहते हैं तो छोटे बड़े सभी किसानों, बँटाई द्ारों की पूर्ण क़र्ज़ माफ़ी,बिजली के बिलों की माफ़ी त्तकाल करें। वसूली स्थगित करना,क़र्ज़ का िरकान्सट्रक्सन करना किसानों के साथ धोखा है,क्योंकि ,ब्याज रात िदन चलती है।
५-बीमा कम्पिनयां राज्य सरकारों के साथ मिलकर लूटने का काम करती हैं। बीमा कम्पनियों के ऐसे साँप-सीढ़ी की तरह नियम बनाये जाते हैं,जिसकी जानकारी हम किसानों को नहीं है। यदि बीमा कम्पिनयां प्रीमियम लें तो प्रीमियम लेते समय ही किसान और बैंक को सूचित करें कि नुक़सान होने पर कितना मुआवज़ा देंगी और कब।िपछली ख़रीफ़ के बीमा की जाँच कराई जाय।
६-किसानों को दी जा रही सब्सिडी एवं सहायता एक धोखा है इनमें केन्द्र सरकार के मंत्रालय,राज्य सरकारें और सरकारी कर्मचारी तीनों िमल कर लूट मचा देते हैं। प्रमाण के िलये केन्द्र द्वारा दिये गये पैके ज की जाँच करा ली जाये। कातो यह बन्द किया जाये अथवा किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार सीधे िदया जाय। बुन्देलखण्ड के किसानों को पूरी छूट घेरबाड़ हेतु दी जाये।
७-महोदय किसानों से सम्बंिधत सभी िबभाग केवल वेतन लेकर बन्द वातानुकूिलत कमरों में बैठ कर केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जारही सब्सिडी का बन्दर बाँट करते रहते हैं, कभी खेतों में जाकर किसानों से सम्पर्क नहीं करते, सहयोग नहीं करते। पशु पालन विभाग के डाक्टर तो किसानों को लूट रहे हैं,यदि किसी किसान का कोई जानवर बीमार हुआ तो डाक्टर साहब १००० के नीचे दरवाज़े नहीं पहुँचते। अत: या तो ए िबभाग बंद कर प्राईवेट कर दिये जायें अथवा कार्यानुसार मूल्याँकन किया जाये।
८-देश के सम्पूर्ण किसानों को मुफ़्त िशक्षा,मुफ़्त न्याय,मुफ़्त दवा की व्यवस्था हो,क्योंकि यह दोहरी प्रणालियाँ भी किसान की आत्म हत्या का मूल कारणों में से प्रमुख है।
९-वर्तमान मनरेगा पूर्ण किसान विरोधी है। या तो किसानी के कार्य को राष्ट्रीय कार्य घोषित कर बिना जाति और वर्ग भेद के मनरेगा का सदुपयोग पानी रोकनें,मेड़ बाँधने,पेंढ़ लगाने आिद में किया जाय अथवा बन्द किया जाये।
१०- बुन्देलखण्ड में यह लगातार दूसरी वर्ष ऐसे समय पानी बरसा है जब फ़सलें पकने का समय था। जिसकी वजह से किसानों के पास अगली फ़सल के िलये कोई बीज नहीं है। अत: अगली फ़सल के िलये अंबा से बीज का प्रबंध, िबना किसी मूल्य के कर लिया जाये।
११-वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा ज़बरदस्ती तरीक़े से भूमि अ िधग्रहण िबल लागू किया जा रहा है यह किसी भी तरह से किसान िहतैसी नहीं है,इसको किसी भी तरह से रुकना चािहये।
धन्यवाद।
भवदीय:
प्रेम सिंह
ह्यूमेन एग्रे्रयन सेंटर, बाँदा।
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"A region can be developed when people of that region are aware enough about the root cause of the problems being faced by them. And, for that, firstly we must identify and address the problems we are going through.
In Bundelkhand region, drought is the prominent problem due to which farming is badly affected. Now, think about what solutions can be practiced to eradicate this problem. Some solutions are as follows:
1. Get your soil tested and then make an appropriate decision about the crop
to be farmed up.
2. Give preference to those crops which require less water.
3. Medicinal plants, which suits to bundelkhand region, can also be grown to get
more income.
4. Krishi Vishvavidlaya in Banda should have an Agro Consultation Cell which can
help farmers of the region to solve their farming related problems. It will also
strengthen the experience of students involved.
These are some trivial solutions i can think of, but, i am sure that there are many more such ideas which farmers, students, professors, intellectuals and local bodies have to flourish farming in the region.
In this reference, i am requesting Bundelkhand News to have open debate on the problems faced. And, the solution which comes out of the discussion tried to be practiced to improve present condition.
So far my focus was on single problem (i.e. drought) only. But, the same process can be replicated to observe and solve other problems also. And, the process itself can be modified to in time to have better solution oriented discussions.
By this way, we will be able to make our region better day by day. And, i hope that one day every citizen of the region will try to contribute their efforts to make Bundelkhand a ""Samradhh Bundelkhand""; Because, it is not only MY Bundelkhand, it's OUR Bundelkhand.
I am not restricting my ideas to a region only. The same method, if works good, can be replicated to other regions, states of the country for betterment of our proud nation.
Jai Hind, Jai Bundelkhand
By: Saurabh Raghuvanshi
मात्री भाषा शिक्षा और विकास
"भारत के विकास के लिए भारतीय भाषाऐं जरूरी क्यों?
प्रिय भारतीयो, भारतीय जीवन के बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अंग्रेज़ी भाषा के दखल से भारत को बहुत भारी नुकसान हो रहे हैं। इस दखल का सबसे बङा कारण कुछ भ्रम हैं जो हमारे दिलो-दिमाग में बस गए हैं, या बसा दिए गए हैं। ये भ्रम हैं: १. अंग्रेजी ही ज्ञान-विज्ञान, तकनीक और उच्चतर ज्ञान की भाषा है; २. अंग्रेजी ही अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान और कारोबार की भाषा है, और; ३. भारतीय भाषाओं में उच्चतर ज्ञान की भाषाऐं बनने का सामर्थय नहीं है। पर तथ्य बताते हैं कि ये धारणाएं भ्रम मात्र हैं और इनके लिए कोई अकादमिक या व्यवहारिक प्रमाण हासिल नहीँ हें।
इस सम्बन्ध में ये तथ्य विचारणीय हैँ:
१. २०१२ में विज्ञानों की सकूल स्तर की शिक्षा में पहले ५० स्थान हासिल करने वाले देशों में अंग्रेजी में शिक्षा देने वाले देशों के स्थान तीसरा (सिंगापुर), दसवां (कनाडा), चौहदवां (आयरलैंड) सोहलवां (आस्ट्रेलिया), अठाहरवां (न्यूजीलैंड) और अठाईसवां (अमेरिका) थे. इन अंग्रेजी भाषी देशों में भी शिक्षा अंग्रेजी के साथ-साथ दूसरी मात्री भाषाओं में भी दी जाती है. २००३, २००६ और २००९ में भी यही रुझान थे.
२. एशिया के प्रथम पचास सर्वोतम विशवविद्यालयों में एकाध ही ऐसा है जहां शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में दी जाती है और भारत का एक भी विशवविद्यालय इन पचास में नहीं आता;
३. सत्तरवीं सदी में (जब एकाध भारतीय ही अंग्रेजी जानता होगा) दुनिया के सकल उत्पाद में भारत का हिस्सा २२ (बाईस) प्रतिशत था। १९५० में दुनिया के व्यापर में भारत का हिस्सा १.७८ प्रतिशत था और अब केवल १.५० प्रतिशत है; प्रति व्यक्ति निर्यात में दुनिया में भारत का स्थान १५०वां है|
४. दुनिया भर के भाषा और शिक्षा विशेषज्ञों की राय और तज़ुर्बा भी यही दर्शाता है कि शिक्षा सफलतापूर्वक केवल और केवल मातृ -भाषा में ही दी जा सकती है;
५.चिकित्सा विज्ञान के कुछ अंग्रेजी शब्द और इनके हिंदी समतुल्य यह स्पषट कर देंगे कि ज्ञान-विज्ञान के किसी भी क्षेत्र के लिए हमारी भाषाओं में शब्द हासिल हैँ या आसानी से प्राप्त हो सकते हैं: Haem - रक्त; Haemacyte - रक्त-कोशिका; Haemagogue - रक्त-प्रेरक; Haemal - रक्तीय; Haemalopia - रक्तीय-नेत्र; Haemngiectasis - रक्तवाहिनी-पासार; Haemangioma - रक्त-मस्सा; Haemarthrosis - रक्तजोड़-विकार; Haematemesis - रक्त-वामन; Haematin - लौहरकतीय; Haematinic - रक्तवर्धक; Haematinuria – रक्तमूत्र; Haematocele - रक्त-ग्रन्थि/सूजन; Haematocolpos - रक्त-मासधर्मरोध; Haematogenesis - रक्त-उत्पादन; Haematoid - रक्तरूप; Haematology - रक्त-विज्ञान; Haematolysis - रक्त-ह्रास; Haematoma - रक्त-ग्रन्थि।
भारतीय शिक्षा संस्थाओं का दयनीय दर्जा, विश्व व्यापार में भारत का लगातार काम हो रहा हिस्सा, भाषा के मामलों में विशेषज्ञों की राय और वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय भाषा व्यवहार और स्थिति इस बात के पक्के सबूत हैं कि मातृ-भाषाओं के क्षेत्र अंग्रेजी के हवाले कर देने से अभी तक हमें बहुत भारी नुक्सान हुए हैं और इससे न तो हमें अभी तक कोई लाभ हुआ है और न ही होने वाला है। भारत का दक्षिण कोरिया, जापान, चीन जैसे देशों से पीछे रह जाने का एक बङा कारण भारतीय शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में अंग्रेजी भाषा का दखल है।
यह सही है कि वर्तमान समय में विदेशी भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है। पर यहाँ भी तजुर्बा और खोज यही साबित करते हैं कि मातृ-भाषा माध्यम से शिक्षा हासिल करने वाला और विदेशी भाषा को एक विषय के रूप मे पढ़ने वाला विद्यार्थी विदेशी भाषा भी उस विद्यार्थी से बेहतर सीखता है जिसे आरम्भ से ही विदेशी भाषा माध्यम में शिक्षा दी जाती है। इस संदर्भ में यूनेस्को की २००८ में छपी पुस्तक (इम्प्रूवमेंट इन द कुआलटी आफ़ मदर टंग - बेस्ड लिटरेसी ऐंड लर्निंग, पन्ना १२) से यह टूक बहुत महत्वपूर्ण है: “हमारे रास्ते में बड़ी रुकावट भाषा एवं शिक्षा के बारे में कुछ अंधविश्वास हैं और लोगों की आँखें खोलने के लिए इन अंधविश्वासों का भंडा फोड़ना चाहिए। ऐसा ही एक अन्धविश्वाश यह है कि विदेशी भाषा सीखने का अच्छा तरीका इसका शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग है (दरअसल, अन्य भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ना ज्यादा कारगर होता है)। दूसरा अंधविश्वास यह है कि विदेशी भाषा सीखना जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना बेहतर है (जल्दी शुरू करने से लहजा तो बेहतर हो सकता है पर लाभ की स्थिति में वह सीखने वाला होता है जो मातृ-भाषा में अच्छी मुहारत हासिल कर चूका हो)। तीसरा अंधविश्वास यह है कि मातृ-भाषा विदेशी भाषा सीखने के राह में रुकावट है (मातृ-भाषा में मजबूत नींव से विदेशी भाषा बेहतर सीखी जा सकती है)। स्पष्ट है कि ये अंधविश्वास हैं और सत्य नहीं। लेकिन फिर भी यह नीतिकारों की इस प्रश्न पर अगुवाई करते हैं कि प्रभुत्वशाली (हमारे संदर्भ में अंग्रेज़ी – ज.स.) भाषा कैसे सीखी जाए।""
भाषा के मामले में यह तथ्य भी बहुत प्रसंगिक हैं:
१.आज के युग में किसी भाषा के ज़िंदा रहने और उसके विकास के लिए उस भाषा का शिक्षा के माध्यम के रूप मे प्रयोग आवश्यक है। वही भाषा जिंदा रह सकती है जिसका जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग होता रहे (भाषा के ख़त्म होने का खतरा कब होता है, इसके बारे में पढ़ने के लिए http://punjabiuniversity.academia.edu/JogaSingh/papers देखें);
२.अंग्रेजी माध्यम की वजह से एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जिसका न अपनी भाषा और न अंग्रेज़ी में कोई अच्छा सामर्थ्य है और न ही यह अपनी संस्कृति, परम्परा , इतिहास और अपने लोगों के साथ कोई गहन आत्मीयता बना सकती है;
३.भारतीय संविधान (जो स्वतंत्रता सैनानियों की समझ का परिणाम है) प्रत्येक भारतीय को यह अधिकार देता है कि वह अपनी मातृ-भाषा में शिक्षा और सेवाएं हासिल करे;
४.लगभग हर देस में विदेशी भाषा बच्चे की १० साल कि उम्र के बाद पढ़ाई जाती है और इन बच्चों कि विदेशी भाषा कि मुहारत भारतीय बच्चों से कम नहीं है. इन देसों को अंग्रेजी कि जरूरत भारत जितनी है और ये देश शिक्षा के मामले में भारत से समझदार हैं और विकास में आगे हैं.
५.पिछले दिनों इंग्लैंड में रिपोर्ट छपी हैं कि यूरोपीय बैंक इंग्लैंड वालों को इस लिए नौकरी नहीं दे रहे क्योंकि उन्हें अंग्रेजी के इलावा कोई भाषा नहीं आती और कोई और भाषा न आने के कारण इंग्लैंड को व्यापर में ४८ बिलियन पाउंड का घाटा पड़ रहा है.
उपरोक्त्त तथ्यों की रोशनी में हमारी विनती है कि भारतीय लोग वर्तमान भाषागत स्थिति के बारे में गहन सोच-विचार करें ताकि सही और वैज्ञानिक भाषा नीति व्यवहार में लाई जा सके। इसमें पहले ही बहुत देर हो चुकी है और भारी नुकसान हो चुके हैं। यदि वर्तमान व्यवहार ऐसे ही चलता रहा तो भारत की और भी बड़ी तबाही निष्चित है।
भाषा के मामलों के बारे में दुनिया भर की खोज, विषेशज्ञों की राय और दुनिया की भाषागत स्थिति के बारे मे विस्तार में जानने के लिए 'भाषा नीति के बारे में अंतरराष्ट्रीय खोज: मातृ-भाषा खोलती है शिक्षा, ज्ञान और अंग्रेज़ी सीखने के दरवाज़े'दस्तावेज़ हिंदी, पंजाबी, तामिल, तेलुगू, कन्नड़, डोगरी, मैथिली, ऊर्दू, नेपाली और अंग्रेजी में http://punjabiuniversity.academia.edu/JogaSingh/papers पते से पढ़ा जा सकता है। यह दस्तावेज़ पुस्तिका के रूप में प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए पते पर सम्पर्क किया जा सकता है। भाषा के मामलों के बारे में पंजाबी में तीन वाकचित्र (वीडियो) देखे जा सकते हैं।
पुरज़ोर विनती है कि यहां और सम्बन्धित दस्तावेज़ में वर्णित तथ्य जैसे भी संभव हो और भारतीयों के सामने लाकर भारतीय भाषाओं के लिए संघर्ष में अपना योगदान दें।
मातृ-भाषाओं की जय!
By: डा.जोगा सिंह
बुंदेलखंड
में पानी की रेल केंद्र ने क्या भेजी ,बुंदेलखंड की सड़कों से लेकर संसद तक समाजवादी
नेताओं ने कोहराम मचा डाला । पानी की कमी को लेकर चिंता जताने वाला तंत्र रेल के आते
ही कहने लगा हमारे पास पानी की कमी नहीं है । फिर हम ये पानी रखेंगे कहाँ , हमें
टेंकर दो । राज्य सभा में तो सपा नेताओं ने रेल मंत्री पर पानी को लेकर राजनीति करने
का आरोप ही लगा डाला और उनसे इस्तीफे की मांग कर डाली । उत्तर प्रदेश की सपा सरकार
को भय है की कहीं लोगो ने मोदी सरकार द्वारा भेजे गए पानी को पी लिया तो उनके द्वारा
राहत पैकेट में दिया जा रहा नमक घुल जाएगा और 2017 के चुनाव में बुंदेलखंड उनसे दूर
हो जाएगा ।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विभक्त लगभग दो करोड़ की आबादी वाले बुंदेलखंड इलाके के 13 जिलों में ६ मध्य प्रदेश के और 7 जिले उत्तर प्रदेश में हैं । 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं इसलिए सूखे का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका है । यहां की चारो लोकसभा सीटे बीजेपी के पास हैं , विधान सभा की 19 सीटों में बीएसपी और एस पी के पास सात सात सीटें हैं । सपा के लिए यही चिंता की सबसे बड़ी वजह है । उत्तर प्रदेश में चुनाव की आहट के चलते बुंदेलखंड के लिए अखिलेश सरकार ने खजाना खोल रखा है , राहत के पैकेट बांटे जा रहे हैं । अब ऐसे दौर में मोदी सरकार ने पानी की ट्रेन भेज कर बुंदेलखंड के लोगों की जल समस्या दूर करने का छोटा सा प्रयास किया । जिसे अखिलेश सरकार ने उनके राहत पैकेट को बहाने का प्रयास मान लिया और ट्रेन का पानी लेने से इंकार कर दिया । पहला प्रयास और प्रचार यह किया गया की खाली ट्रैन आई है ,। अब इनसे कौन पूछे की जब ट्रैन में पानी झाँसी में भरा जाना है तो ट्रैन तो खाली आएगी ही । फिर कहा गया की हमारे पास पर्याप्त पानी है ,और फिर यह पानी हम रखेंगे कहाँ , इसके लिए 10 हजार टेंकरों की जरुरत है ।
ट्रेन के पानी को लेकर सियासत का यह संग्राम बुंदेलखंड की सड़कों
से लेकर संसद तक चला । हमीरपुर -महोबा से बीजेपी सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल के
समर्थकों ने महोबा वासियो को यह बताया था की पानी ट्रेन उन्ही की पहल पर आ रही है ।
जब प्रशासन ने इस पर रोक लगाईं तो बीजेपी के लोग सड़कों पर उतर आये और प्रदर्शन कर
राज्यपाल के नाम एक ज्ञापन तहसीलदार को सौंपा । वहीँ 5 मई को महोबा आये उत्तर
प्रदेश सरकार के कैबिनेट शिवपाल यादव ने कह दिया की बुंदेलखंड में पानी की कमी नहीं
है । जब जरुरत होगी तब केंद्र से मदद मांगी जायेगी । महोबा जिला प्रशासन ने तर्क
दिया कि रेलवे स्टेशन से पानी लाने में दूरी ज्यादा है ट्रांस्पोर्टेशन का खर्च
ज्यादा आयेगा । यह बहाना ठीक उसी तरह का है की जब सरकार और प्रशासन को काम नहीं करना
होता है तो उसमे अनेको तरह की कमियाँ तलाश ली जाती हैं , और जो कुछ करना होता है
उसमे अनेको कमियों के बाद रास्ता निकाल लिया जाता है ।
इस मसले को लेकर संसद में हंगामा भी कुछ कम नहीं हुआ , सपा सांसदों ने खाली पानी की ट्रेन भेजने का आरोप लगाते हुए रेल मंत्री सुरेश प्रभु से इस्तीफे की मांग कर डाली । पानी की ट्रेन के माध्यम से राजनीति करने के आरोप लगाए गए । हालांकि मंत्री जी कहते रहे की संकट की इस घडी में सब को मिलकर काम करने की जरुरत है ,। लोगों की प्यास को लेकर ना हम राजनीति करते हैं और ना करेंगे । पर इस जबाब से सपा नेता संतुष्ट नहीं हुए और सदन से वाक् आउट कर गए । हद तो तब हो गई जब यू पी सरकार ने अपने ट्विटर पर बुंदेलखंड के जलाशयों की पानी से लबालब तस्वीरें डाली । महोबा में जब इन जलाशयों की वास्तविकता देखी गई तो हालत चौकाने वाले निकले । जिन जलाशयों को पानी से भरा दिखाया गया उनमे नाम मात्र का पानी मिला । चाहे वो कीरत सागर हो कोठी ताल । उर्मिल बाँध डेड लेबल से नीचे पहुँच गया है इस बाँध से महोबा,श्री नगर ,सिजहरी और बसौरा में जल प्रदाय किया जाता है ,। अर्जुन बाँध 90 फीसदी सूख गया है । यू पी सरकार का यह प्रचार अभियान अब उसी के गले की फांस बन गया है । समस्या को देख आँख बंद कर लेने से समस्या का समाधान नहीं होता ।
मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने 7 मई को प्रधान मंत्री मोदी से
मुलाकत कर सूखे के मसले पर राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को बतया था ।
जिसमे उन्होंने दवा किया था कि 78 हजार जल निकायों को दुरुस्त किया गया है , जिसमे
टेंक ,तालाब , खेत तालाब सम्मलित हैं । एक लाख जल निकाय और जल केंद्र बनाने की बात
कही गई । केंद्र ने उत्तर प्रदेश को आपदा कोष से ९३४ करोड़ की सहायता राशि प्रदान की
है । प्रधान मंत्री से मुलाक़ात के बाद संतुष्ट बताये जा रहे अखिलेश यादव ने मीडिया
से चर्चा के दौरान मीडिया पर बुंदेलखंड की गलत तस्वीर पेश करने का आरोप मड़ दिया ।
पत्रकार अगर आईना दिखाये तो नेताओ को नागवार गुजरेगा ही । अब देखिये महोबा जिले के
किसान हीरा लाल यादव को पानी चोरी के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया । उस पर
आरोप है की उसने उर्मिल डेम से निकली पाइप लाइन के वाल्व को क्षति ग्रस्त कर पानी
चुराया और अपने खेत की सिचाई की । जबकि यह पाइप लाइन पहले से ही क्षति ग्रस्त थी और
उससे पानी बहता था । हीरालाल का कसूर सिर्फ इतना था की उसने बहते पानी के पास गड्ढ़ा
बनाया और पानी खेत तक ले गया । पर संवेदन शील सरकार है कुछ भी कर सकती है ।
असल में सियासत का रंग ही कुछ ऐसा होता है , जिसमे काम कम और प्रचार ज्यादा होता है । कोई भी योजना लागू करने के पहले राजनैतिक लाभ हानि का गणित तय किया जाता है । यही कारण है की उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में राहत की गंगा बहाई जा रही है या ये कहे की इसका दिखावा किया जा रहा है , वहीँ मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के सूखा का पैसा दूसरे जिलों में खर्च किया जा रहा है । जब की दर्द दोनों जगह एक जैसा है ।
By: रवीन्द्र व्यास
After fulfilling his thirst for success by securing the sixth
rank in the civil services exam, Chhatarpur resident Ashish Tiwari wants to
quench the thirst for water in Madhya Pradesh’s drought-hit Bundelkhand.
A mechanical engineer at Indian Oil Corporation Limited (IOCL), the 26-year-old said his aim in taking the Union Public Service Commission (UPSC) exam was to resolve unsolved issues in Bundelkhand, where incomes are low.
“I think being an IAS, I could help my people by establishing sources of irrigation in Bundelkhand and bring some small and medium enterprises for generating another source of income,” said Tiwari.
Ashish did his schooling from the Saraswati Sishu Mandir School till Class 8 and studied in the Government Excellence School, Chhatarpur after that.
He also scored well in the All Indian Engineering Entrance Exam and did his engineering from NIT-Jamshedpur.
“If student keep focus on studies, it doesn’t matter from where a person did his schooling and where he belongs. But yes I find some loopholes in education system and I want to improve it too,” he said.
Ashish, who juggled exam preparation alongside a job at Indian Oil in Jaipur, felt it is not too tough to clear the exam with a job.
“It’s a myth that a person can’t crack the UPSC while doing a job. I balanced my job and studies. In day time, I used to do job and in the night studies. In between my job, I used to take leave to visit Delhi to clear my doubts,” said Tiwari.
With tears of happiness in his eyes, his father PK Tiwari said, “My son has done schooling from a government school of Chhatarpur. He was never a demanding son. He did his engineering from NIT Jamshedpur but his quench for the success didn’t end with job in IOCL.”
Now, he also proved that a small town boy can do anything with this hard work, he added.
Courtesy: Hindustan Times
The Uttar Pradesh state government has ordered the
installation of 50 solar cycle potable water plants in Bundelkhand to tackle the
acute drought and drinking water crisis in the region.
“Chief Minister Akhilesh Yadav has issued instructions to officials to install solar cycle potable water plants in 50 villages of Bundelkhand so that the water crisis in the region could be tackled at the earliest,” an official told IANS on Thursday.
According to the official, the plants are part of a pilot project in the first phase.
The orders to the chief secretary and the principal secretary (irrigation) were issued in view of the utility of a similar solar cycle potable water plant in village Kurauni of the Sarojininagar development block in Lucknow, where 20,000 litres of pure drinking water was available in 24-hours.
Courtesy: News World India
Exam Name: UP Board
Class: 10th
Year: 2016
Courtesy: NIC
Exam Name: UP Board
Class: 12th
Year: 2016
Courtesy: NIC
He may not have cut a mammoth hill like Dashrath Manjhi to
clear the way for his fellow villagers in Bihar as a tribute to his wife, but
this green crusader has helped plant over 30,000 trees in Chitrakoot of
Bundelkhand region in Uttar Pradesh.
After his wife died during labour in 2001, Bhaiyalal, 48, was desolate. In 2008, another tragedy struck him when his only son died at a tender age of seven and he lost all interest in life.
But then the idea of working for the people occurred to him and he decided to bring barren lands back to life by planting saplings and nurturing trees. Since then, there has been no looking back for this environmental crusader of Bharatpur village in Chitrakoot.
Bhaiyalal, who has been working as a contractual labour with the forest department, took part in a massive plantation drive launched in Bundelkhand in 2008. He specially chose barren lands coming under the forest department in Chitrakoot and helped in planting and nurturing around 30,000 trees.
"I believe that forest should look like a forest and kept on planting trees," Bhaiyalal told TOI. Not only this, Bhaiyalal single-handedly watched over the 30,000 trees and saved them from the vagaries of nature or being eaten up by animals till they grew up.
Courtesy: Times of India
सूखे से बदहाल और बून्द -बून्द पानी को तरशते बुंदेलखंड के लोग संकट के समाधान के प्रयास में जुट गए है । उन्हें अब ना सरकार का भरोषा रह गया है और ना ही प्रशासन का । पानी के नाम पर हुई लूट खशोट ने आम जन मानस को हिला कर रख दिया है । इन हालातों से निपटने के लिए लोग खुद गेंती फावड़ा लेकर मैदान में आ गए है । इस पर भी तंत्र की बेशर्मी देखिये वह ऐसे लोगों की मदद करने से भी परहेज कर रहा है । कम ही ऐसे प्रशासनिक अधिकारी हैं जो लोगों के इस अभियान में सहभागी बने हैं ।
नदी को जीवंत बनाने में जुटे नौजवान :
संस्कृति और सभ्यताओं को विकसित करने वाले जल श्रोत जब दम तोड़ने
लगें तो मान लो की अब समाज सुरक्षित नहीं हैं । वर्षो की उपेक्षा का परिणाम आज सबके
सामने है । खतरे की घंटी तो बहुत पहले बज चुकी थी , वो तो हम अपनी आदतों से मजबूर
हैं जो इस खतरे को समझ कर भी बेफिक्र रहे । आज जब हालात बेकाबू हो गए तब हमें अपनी
गलतियों का एहसास हुआ । और चल पड़े हैं मंजिल की तलाश में ऐसे ही हालात से जूझते
बुन्देलखण्ड के लोग अब अपनी जल संरचनाओं को सहेजने में जुट गए हैं । नोगाँव में लोग
नदी बचाने में जुटे हैं तो टीकमगढ़ जिले के चरी गाँव के लोग अपने बल पर नदी पर बाँध
बनाने में जुटे हैं । लवकुश नगर में सूख चुके तालाब मान सागर का , वहीं महराजपुर
तालाब का , बिजावर तालाब , टीकमगढ़ नगर के वृन्दावन तालाब , और पृथ्वीपुर के राधासगर
तालाब में जमा सिल्ट हटाने , तालाब की साफाई के अभियान में जुटे हैं । इस सारे
अभियान में पन्ना के धर्म सागर तालाब के गहरीकरण और लोगों की सहभागिता ने बुंदेलखंड
के अन्य लोगों को भी प्रेरित किया है ।
ब्रिटिश शासन काल में पोलिटिकल एजेंसी के तौर पर नोगाँव नगर को 1942 के बाद अंग्रेजो ने बसाया था । जनवरी 1842 में बुंदेलखंड के बेला ताल रियासत के राजा को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने यंहा डेरा डाला था। इसके आसपास बहती कुम्हेड और भडार नदी के कारण अंग्रेजो को यह इलाका इतना भाया की बुंदेलखंड की रियासतों पर नियंत्रण के लिए यहां एक पूरा शहर ही बसा दिया । ब्रिटिश शासन काल में यहाँ सैन्य छावनी भी बनाई गई थी । यह सब यहां कल कल बहती नदी के जल के भरोषे किया गया था ।
तालाब विहीन इस नगर के भू जल श्रोत के मुख्य श्रोत कुम्हेड नदी नाला में बदल गई । नगर के लोगों को पानी देने वाली धसान नदी ने भी जबाब दे दिया । तब लोगो ने अपने श्रोतों से नगर को पानी की पूर्ति शुरू कर दी । फिर भी एक चिंता थी की भविष्य में क्या होगा , आज तो कुम्हेड नदी के किनारों पर लगे ट्यूब वेळ से पानी निकाल ले रहे हैं , पर कल इससे पानी मिलेगा भी या नहीं ।
इसके समाधान की दिशा में सामाजिक संस्था सोशल मीडिया फाउंडेशन के प्रमुख वा दैनिक प्रखर ज्ञान के सम्पादक राजेश अग्निहोत्री ने युवाओं से चर्चा की ,और तय किया की नगर से सट कर बहने वाली नदी को फिर से जीवित किया जाएगा । आम सहमति से नोगाँव विकाश मंच का गठन हुआ और इस अभियान का संयोजक भी राजेश अग्निहोत्री को ही बना दिया । राजेश बताते हैं की नाले में बदल चुकी यह कुम्हेड नदी नगर का तीन किमी का एरिया कवर करती है । आगे जा कर यह नदी भडार नदी में जा कर मिल जाती है । नदी को जीवंत बनाने के लिए नोगाँव के लोगों का जोश देखते ही बनता था । नदी के गहरी करण और उसके मूल स्वरुप 65 फिट चौड़ाई देने में पैसो की जरुरत थी । लोग खुद पहुँच कर दिल खोल कर दान देने लगे । दस दिन के इस अभियान में 42 से 46 डिग्री के तापमान में इन युवाओं ने लगभग दो किमी नदी का ना सिर्फ गहरी करण कर दिया बल्कि उसके मूल स्वरुप ६५ फिट चौड़ी कर दी लक्ष्य से सिर्फ एक किमी दूर है।
कलेक्टर मसूद अख्तर ने स्वयं कुम्हेड नदी पर पहुँच कर इस अभियान
को सराहा । उंन्होंने यह भी भरोषा दिलाया था की जितना पैसा आप लोग जोड़ेंगे उतना ही
पैसा जनभागीदारी से दिया जाएगा । स्थानीय लोगों और बीजेपी के बिजावर विधायक
पुष्पेंद्र नाथ पाठक के एक लाख रु के सहयोग से अब तक सभी लोगों के प्रयास से चार
लाख रु की राशि इस कार्य के लिए जोड़ी गई । नगर पालिका के कर्मचारियों ने अपना एक
दिन का वेतन इस कार्य हेतु दिया । हालांकि स्थानीय विधायक और सांसद का अब तक इस
कार्य में कोई सहयोग ना मिलने पर लोगो का नाराज होना स्वाभाविक है ।
आजादी के बाद बुंदेलखंड की राजधानी का गौरव प्राप्त नोगाँव नगर की जीवन रेखा कही जाने वाली इन दो छोटी छोटी नदियों के साथ सरकारी तंत्र और समाज ने जम कर खिलवाड़ किया । बुंदेलखंड पैकेज से इस नदी पर 8 स्टॉप डेम बने होने की बात कही जा रही है । पर नदी बचाओ अभियान से जुड़े इंजिनियर सी बी त्रिपाठी जिन्होंने वर्षो तक ग्रामीण यांत्रिकी सेवा में अपनी सेवाएं दी बताते हैं की इस नदी पर पहले 6 _7 स्टॉप डेम बने थे , जो बुंदेलखंड पैकेज के नहीं हैं ।
बाँध बनाने में जुटे बच्चे से बूढ़े तक
टीकमगढ़ जिले के चरी गाँव के लोगों ने जब देखा की जल संकट के नाम पर करोडो रु कागजो में खर्च हो गए और उनके सामने पानी का संकट जस का तस है । यहां तक की 2008 से बुंदेलखंड पॅकेज से गाँव की जल समस्या के समाधान की आस भी उनके लिए बेमानी साबित हुई । पॅकेज से मध्य प्रदेश के छतरपुर ,पन्ना , टीकमगढ़ , सागर ,दमोह और दतिया के लिए 3600 करोड़ की राशि मिली थी । इस राशि में से एक बड़ा हिस्सा जल सरचनाो , पर खर्च होना था । कागजो में खर्च हुए जमीनी लाभ ना के बराबर रहा । बनाये गए स्टॉप डेम के ठेके (पेटी कांट्रेक्ट पर ) जनसेवकों ने हथिया लिए थे । नतीजा घटिया निर्माण और गेट विहीन ये स्टॉप डेम पानी रोकने में मदद गार नहीं रहे । यही हाल नल जल योजनाओं का रहा ।
सरकार और जन सेवकों और प्रशासन के इस तमाशे को देखने के और
बून्द -बून्द पानी के लिए तरशने के बाद पलेरा विकाश खण्ड के चरी गाँव के लोग खुद
गेंती फावड़ा लेकर बाँध बनाने जुट गए । गाँव के पास से निकली सांदनी नदी जो पूर्णतः
सूखी पड़ी है । इस पर 150 फिट लम्बा ,15 फिट चौड़ा और 5 फिट ऊंचा बाँध बनाने में जुट
गए । गाँव के जमुना प्रसाद बताते हैं की इस अभियान में चरी के अलावा आसपास के चार
पांच गाँव के लोग भी सहयोग कर रहे हैं । दरअसल इन गाँव वालों की फसलें खराब हो गई ,
हाथ में पैसा है नहीं की मशीन से बाँध बनवा ले , प्रशासन सुनता नहीं ,नेता जी पांच
साल में एक बार दर्शन देते हैं , पर ये लोग हालात से हारे नहीं और खुद जुट गए ।
गाँव के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक रोजाना चना खाकर बाँध बनाने में जुटे हैं । उन्हें
भरोषा है की बरसात के पहले तक उनका बाँध बन जाएगा और बहने वाले पानी को वे सहेज
लेंगे । ४४-४५ डिग्री के तापमान पर जब शहरी लोगों को घर से बाहर निकलने का हौसला नहीं
होता तब ये बाँध बना कर अपना और समाज का भविष्य बचाने में जुटे रहते । यहाँ के
प्रशासन से इन्हे कोई सहयोग तो नहीं मिला , पर मीडिया के पूंछने पर जिला पंचायत सी
ई ओ इन लोगों के काम की सराहना करते नहीं थकते ।
जतन जल संरक्षण के
चंदेल कालीन लवकुशनगर,के मानसागर तालाब की खुदाई का कार्य जन सहयोग से किया है । राजा मानसिंह के द्वारा खुदाये गए इस तालाब की कभी खुदाई नहीं हुई । जब तालाब पूरी तरह से सूख गया तो एस.डी.एम धुर्वे ने बिना किसी बजट के जन सहयोग से उक्त तालाब की खुदाई का बीड़ा उठाया। तालाब के गहरी करण और सफाई में नगर के लोगों वा पत्रकारों बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । ये अलग बात है जनसेवक अभियान से अपनी दूरी बनाये रखे हुए हैं ।
छतरपुर जिला के बिजावर कसबे का चंदेलकालीन तालाब को भी नागरिकों
की पहल पर साफ़ सुथरा और गहरीकरण किया जा रहा है । बिजावर के इसी तालाब के कारण यहांइतना जल स्तर रहता था की लोग बगैर रस्सी के कुए से पानी ले लेते थे । आज से ही
महराजपुर तालाब का गहरी करण और सफाई अभियान शुरू हुआ । विधायक मानवेन्द्र सिंह ने
पहुँच कर अभियान शुरुआत कराई ।
टीकमगढ़ की नवागत कलेक्टर प्रियंका दास ने सूखे को देख कर नगर के वृन्दावन तालाब के गहरी करण का कार्य जलाभिषेक अभियान शुरू कराया । नगर पालिका परिषद इस कार्य को जन सहयोग से चला रही है । टीकमगढ़ जिले के पृथ्वीपुर नगर के राधासगर तालाब का भी जीर्णोद्धार सहयोग से किया जा रहा है ॥
पन्ना नगर के धर्मसागर तालाब के गहरीकरण के लिए लोगों ने ३० लाख से ज्यादा की राशि जन सहयोग से जोड़ी है । तालाब के कायाकल्प के लिए ये अभियान एक आंदोलन का रूप ले चुका है । इसी जिले के अजयगढ़ कसबे के खोय तालाब का गहरीकरण कार्य में समाज जुट गया है । ये अलग बात है की कसबे के बस स्टेण्ड के नष्ट होते तालाब की तरफ किसी का ध्यान नहीं है ।
बुंदेलखंड के एकलौते ऐसे सांसद प्रहलाद पटेल हैं जिन्होंने हटा (दमोह) के लुहारी तालाब को गोद लिया और तालाब के गहरीकरण में जुटे । बाकी सांसदों को शायद जल की इस विभीषिका से कोई सरोकार नहीं है ।
दरअसल बुंदेलखंड का इलाका अपने परम्परागत जल श्रोत तालाब , कुआ और बावड़ी पर निर्भर रहा है । प्रकृति के अनुकूल होने के कारण इससे उनकी आवश्यक जरूरतें पूर्ण होती रही । बढ़ती आबादी के बोझ और अधिक लाभ की लालशा ने लोगों ने पानी का दोहन शुरू कर दिया , परिणामतः भू-जल भी दूर हुआ और कम वर्षा होने से सरोवर भरे नहीं उस पर बढ़ते तापमान ने सरोवरों को सुखा दिया । विपत्ति में ही सही लोगों को अपने जल श्रोतो को सहेजने की चिंता तो हुई ।
By: रवीन्द्र व्यास