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बुन्देलखण्ड क्षेत्र के प्रमुख पर्यटन स्थल (Bundelkhand region's major tourist destinations)

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बुन्देलखण्ड क्षेत्र के प्रमुख पर्यटन स्थल (Bundelkhand region's major tourist destinations)


बुन्देलखण्ड क्षेत्र के प्रमुख पर्यटन स्थल :

1- राजापुर( बांदा) --- रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्म स्थली

2- चित्रकूट --- भगवान श्री राम की वनस्थली एवं बुन्देलखण्ड की धर्म स्थली

3- कालपी (जालौन) --- महर्षि वेदव्यास जी का आश्रम, भगवान नरसिंह का अवतार क्षेत्र, वीरबल की जन्म स्थली

4- झांसी --- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की कर्म स्थली

5- महोबा ---वीर आल्हा ऊदल की कर्म स्थली

6- उरई (जालौन) --- मामा माहिल का स्थान

7- कालिन्जर --- शेरशाह सूरी का मकबरा, नीलकंठ मंदिर, अजेय दुर्ग, शैलचित्र

8- ओरछा--- रामराजा सरकार का सिध्द मंदिर, महाराजा वीर सिंह जू देव द्वारा निर्मित दुर्ग, जहांगीर महल, लाला हरदौल का स्थान

9- अजयगढ --- राजा अजय पाल द्वारा निर्मित दुर्ग, अमन महल

10- ग्वालियर --- मोतीमहल, जयविलास महल, गुजरी महल, तानसेन व मुहम्मद गौस खां का मकबरा

11- खजुराहो --- शिल्पकला युक्त मंदिर विश्व धरोहर

12- दतिया --- पीताम्बरा सिद्धेश्वर पीठ

13- गुना --- गुफाएं

14- गढकुण्डार --- राजा खेतसिंह खंगार का अजेय दुर्ग

15- मैहर --- शारदा माता का भव्य स्थान

16- उनावबाला जी दतिया --- प्रसिद्ध सूर्य मंदिर

17- सोनागिरी --- जैन मंदिरो का अद्भुत स्थान

18- मऊ सहानियां छतरपुर --- महाराज छत्रसाल का संग्रहालय

19- कुण्डेश्वर टीकमगढ --- प्रसिद्ध शंकर भगवान का मंदिर

20- पन्ना --- नेशनल टाईगर रिजर्व,

इसके अतिरिक्त चरखारी, पांडवफाल, देवगढ, द्रोणागिरी, नैनागिरी, पनगरा, हमीरपुर, ललितपुर, भूरागढ बांदा, बिजावर, सरीला, टीकमगढ़ आदि दर्शनीय स्थल हैं। ये स्थान आज भी ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजे हुये हैं। इन सभी स्थलों का इतिहास में बहुत महत्व है।

By: Vikram Tomar


(Article) गौरवशाली बुन्देलखण्ड

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(Article) गौरवशाली बुन्देलखण्ड


भारत देश के मध्य भाग में स्थित क्षेत्र बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है। बुन्देलखण्ड भारत का हृदय स्थल है जिसका अपना अलग इतिहास एवं अलग भूगोल है। भाषा, संस्कृति, आचार, विचार में भी अपनी एक अमिट छवि रखता है। जहां एक ओर इतिहासकारो ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र को अति प्राचीन बताते हुए बुन्देलखण्ड की धरती को वीर भूमि का दर्जा दिया, वहीं भूगर्भ शास्त्रियों ने बुन्देलखण्ड के मुकुट विन्ध्याचल पर्वत को हिमालय पर्वत से भी पहले का पर्वत बताकर इस क्षेत्र के अस्तित्व की प्राचीनता का परिचय दिया है। यमुना, नर्मदा, चम्बल और टौंस नदियों के मध्य स्थित भूभाग बुन्देलखण्ड है। परशुराम, विश्वामित्र, नल, दमयंती, यमदंग्न, अत्रि, दत्तात्रेय, ज्वालि आदि महर्षि इसी भूमि की देन है। महाभारत के रचयिता वेदव्यास, राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, व गुरू द्रोणाचार्य बुन्देलखण्ड के ही लाल है।बुन्देलखण्ड में चांदी,कलचुरी, जयशक्ति, चंदेल आदि वंशो ने राज्य किया।

बुन्देलखण्ड को पहले चेंदि देश, जैजाक मुक्ति धार्मिक,कर्णावति कालिन्जर प्रदेश, एवं मध्य देश के नामों से जाना जाता था। इस क्षेत्र का नाम बुन्देलखण्ड कैसे हुआ इसके अनेक मत प्रस्तुत किये जाते हैं। बताया जाता है कि अनेक स्थानों पर पुलिंद नरेशो का शासन होने के कारण इसका नाम पुलिंद बोलिन्द हुआ और बाद में बुन्देलखण्ड कहलाने लगा। कुछ विद्वानों का मत है कि विन्ध्य की उपत्यकाओ में बसे होने के कारण विन्ध्येल क्षेत्र कहलाया और बाद में यही बुन्देलखण्ड कहलाया। अनेक विद्वानों का मत बुन्देलखण्ड नाम की उत्पत्ति का इस प्रकार भी है __

काशी के शासक गहरवार क्षत्रिय वंश में जन्मे राजकुमार हेमकरण सिंह पर उनके शत्रुओं ने चढाई कर जब काशी का राज्य छीन लिया तो वे निराश हो अपना महल राज पाठ छोड़कर विन्ध्याचल पर्वत पर माँ विन्धयवासिनी देवी की आराधना करने चले गये थे। उन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पर माँ विन्धयवासिनी देवी की आराधना करने की। देवी माँ विन्ध्यवासिनी को प्रसन्न करने के लिए राजकुमार हेमकरण सिंह ने अपने गले व शरीर से रक्त निकाल कर देवी को चढाया। भयंकर कठोर साधना से प्रसन्न हो माँ विन्ध्यवासिनी प्रकट होकर बोली "हे राजन!तूने अपने शरीर को भयंकर पीङा देकर जो रक्त की बूँदें चढाकर मुझे प्रसन्न किया अतएव मैं तुझे वरदान देती हूँ कि रक्त की बूँदों को अर्पण कर मेरी सिध्दी पाने के कारण तू बुन्देला कहलायेगा, अपने शत्रुओं को पराजित कर अखण्ड राज्य का सुख भोगेगा तथा विन्ध्य के जिस अखण्ड राज्य में तेरा शासन होगा वह भूभाग बुन्देलखण्ड कहलायेगा।"

बुन्देलखण्ड क्षेत्र की गौरव गाथा से पूरा इतिहास भरा हुआ है। महान योद्धा आल्हा ऊदल, महाराजा छत्रसाल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, प्रतापी वीर सिंह जू देव, रणचंडी दुर्गावती, चन्द्र शेखर आजाद, पं.परमानन्द, गुलाम गौस खां, आदि की यही भूमि रही है। महाराजा खेत सिंह व लाला हरदौल की जन्मभूमि बुन्देलखण्ड है। वीर कवि जगनिक, गोस्वामी तुलसीदास, केशव, बिहारी, राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त, एवं डॉ बृन्दावन लाल वर्मा इसी भूमि की देन है। संगीतकार तानसेन, गायक बैजू, मृदंग बाजक कुदऊ, उस्ताद आदिल खां, विश्व विजयी गामा पहलवान, हाकी के जादूगर दद्दा ध्यान चन्द्र, चित्र कार कालीचरण जैसे महान व्यक्तित्व की धरती"बुन्देलखण्ड "हैं।

आज कुछ सूक्ष्म मानसिकता के लोगों को बुन्देलखण्ड के नाम से परहेज है एेसे लोगों का मानना है कि बुन्देला ठाकुरों के नाम से बुन्देलखण्ड राज्य का नामकरण है। जबकि एेसा नहीं है बुन्देला, बुन्देले, बुन्देली की परिभाषा बहुत व्यापक है। बुन्देलखण्ड भूभाग में कई वर्षो एवं पीढियों से निवास कर रहे लोगों के समुदाय को जिन्हें यहां की मिट्टी से प्रेम है जिनका जीना, मरना तथा भविष्य आदि सब कुछ इसी भूभाग में निहित है। बुन्देलखण्ड की वीर भूमि की आन, वान व शान की रक्षा करने में तत्पर रहने वाला हर एक व्यक्ति बुन्देलखण्डी या बुन्देला हैं।बुन्देला या बुन्देलो द्वारा बोली जाने वाली भाषा बुन्देली भाषा है । जिस प्रकार महाराष्ट्र में रहने वाले लोग मराठा कहलाते हैं उसी प्रकार बुन्देलखण्ड में रहने वाला हर व्यक्ति बुन्देला या बुन्देले या बुन्देलखण्डी है।

लेखक - कुँवर विक्रम प्रताप सिंह तोमर

मऊरानीपुर, केन्द्रीय अध्यक्ष युवा, बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा

(EVENT) बुन्देलखण्ड की हुँकार, नेशनल म्यूजियम नई दिल्ली

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(EVENT) बुन्देलखण्ड की हुँकार, नेशनल म्यूजियम नई दिल्ली


बुन्देलखण्ड की हुँकार

दिनाँक: 07.08.2016 (रविवार), समय: 2बजे अपराह्न

स्थान:नेशनल म्यूजियम , नई दिल्ली

न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत अति-पिछड़े बुन्देलखण्ड क्षेत्र,क्षेत्रवासियों /प्रवासियों के उत्थान हेतु समर्पित समस्त संस्थाओं/व्यक्तियों का तहे दिल से स्वागत है. प्राकृतिक और दैवीय आपदाओं (सूखा,अकाल, बाढ़ व् ओलावृष्टि) से पीड़ित बेरोजगारी, भुखमरी, पलायन, किसान आत्महत्या जैसी विकराल समस्याओं से जूझ रहे और सदियों से उपेक्षित बुन्देलखण्ड वासियों हेतु देश की राजधानी नयी दिल्ली में आप अपनी बेबाक बात रखने और प्रमुख वक्ताओं की बात सुनने के लिए सादर आमंत्रित हैं.

निवेदक:बुन्देलखण्ड हेतु समर्पित समस्त संस्थाएं

संयोजक:श्री राम प्रकाश रैकवार (9911787193)

मीडिया प्रभारी:श्री नसीर अहमद सिद्दीकी, बुंदेलखंड विकास मंच (9891941675)

संपूर्ण क्रांति: पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण

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संपूर्ण क्रांति: पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण


सशक्त जनक्रांति + स्व राजनैतिक क्रांति =सम्पूर्ण क्रांति ~ बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण

पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए म प्र व उ प्र बुन्देलखण्ड क्षेत्र के आम जनमानस को पृथक राज्य निर्माण के लिए संकल्पबद्ध होकर संपूर्ण क्रांति लानी होगी।

संपूर्ण क्रांति से प्रथम आशय है समस्त प्रस्तावित बुन्देलखण्ड राज्य क्षेत्र में सशक्त जनक्रांति अर्थात सक्रिय जनआंदोलन खङा करना होगा।
एवं द्वितीय आशय यह कि प्रस्तावित क्षेत्र में राजनैतिक क्रांति अर्थात स्व राजनैतिक ताकत हासिल कर, बुन्देलखण्ड की संपूर्ण क्रांति से बुन्देलखण्ड राज्य का निर्माण हो सकता है।

जब हर एक बुन्देलखण्डी ठान लेगा कि उसे बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की लङाई लङनी है तो निश्चित रूप से हमारी समग्र जीत होगी।

जिस दिन हर बुन्देलखण्डी पृथक राज्य के लिए कमर कस लेगा उस दिन दिल्ली का तख्त भी डगमगा जायेगा और वर्षो की ख्वाहिश चन्द्र दिनों पूरी हो जाएगी। इसके लिए किसी हिंसात्मक विरोध या असंवैधानिक कार्य करने की जरूरत नहीं है।

बुन्देलखण्डियो को सत्याग्रह व अहिंसा का रास्ता अख्तियार कर अपना लक्ष्य भेदना होगा।

बुन्देलखण्ड वासियो को देश की संसद, उ प्र व म प्र की विधानसभाओं पर बुन्देलखण्ड क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के माध्यम से राज्य निर्माण हेतु दबाव बनाना है परन्तु यह दबाव तभी बनेगा जब हम ऐसे जनप्रतिनिधियों को सदन में भेजे जो सच्ची निष्ठा से बुन्देलखण्ड राज्य का प्रबल हिमायती हो।

बुन्देलखण्ड के लोगों को जाति, धर्म, स्वार्थ और दलगत राजनीति को ठोकर मारनी होगी और बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए जनसमर्थन जुटाने के लिए तन मन धन से योगदान करना होगा। बुन्देलखण्डियो को बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए वोट देना सीखना होगा ।अपने देश में हर समस्या का इलाज राजनीति से होता है बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण भी राजनीतिक मुद्दा है जिसका हल भी बुन्देलखण्डियो की स्वराजनैतिक ताकत से होगा ।बुन्देलखण्ड के लोगों को ऐसे कर्मवीरो को सदनों में पहुंचाना होगा जो वर्षों से बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए लङ रहे हैं ।ऐसे सभी बुन्देली कर्मवीर बुन्देलखण्ड के किसी क्षेत्रीय दल (जो हमेशा इस लड़ाई में अगुवाई करता रहा हो )से चुनाव लड़े तो अच्छा होगा क्यों कि ऐसे दल में बुन्देलखण्डी ही हाईकमान होगा तो बुन्देलखण्ड का हित सर्वोपरि रखेगा । यदि ऐसा संभव नहीं हो पाता है तो अलग अलग दलों से चुनाव लड़ रहे राज्य समर्थको को जिताकर सदनों तक भेजे और इन कर्मवीरो को संकल्प दिलाये कि आप कहीं भी किसी भी दल में रहे , अपनी माटी का कर्ज चुकाने के लिए दल से ऊपर उठकर बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए दिल से भरसक कोशिश करेंगे।

इस लङाई को बुन्देलखण्ड की आजादी की लड़ाई मानकर त्याग करने की आवश्यकता है।जिस दिन बुन्देली आवाम सब मुद्दों को नकारकर ,जाति व धर्म पर वोट बन्द कर केवल बुन्देलखण्ड राज्य के लिए वोट देना सीख जायेगा तब यहां के स्वार्थी नेता झंडा व डन्डा लेकर सङको पर लेटकर जय जय बुन्देलखण्ड चिल्लायेगें।

बुन्देलखण्ड की दुर्दशा के अन्त के लिए बुन्देलखण्ड राज्य बेहद जरूरी है, इस पुनीत उद्देश्य की प्राप्ति हेतु गतिमान होकर जन जन को जुटना होगा।

बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण का मतलब भारत के नक्शे में परिवर्तन करना है, संपूर्ण क्रांति ही बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण को हकीकत प्रदान कर सकता है।

जय जय बुन्देलखण्ड।

"भारतीय संविधान में राज्य विभाजन की प्रक्रिया "

1- संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार किसी नये राज्य का गठन, किसी राज्य का विभाजन या राज्यों के कुछ हिस्सों को आपस में बदलने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार के पास है।

2-किसी भी राज्य के विभाजन के लिए न तो राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने की आवश्यकता है एवं न ही राज्य सरकारों की सहमति की।

3-अगर किसी राज्य का विभाजन कर नया राज्य बनाना हो तो केन्द्र सरकार केबिनेट की मंजूरी से प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजता है। राष्ट्रपति केबिनेट के प्रस्ताव को उस राज्य या राज्यों को भेजते हैं जिनका विभाजन होना है। सम्बंधित राज्यों की विधानसभा को एक निश्चित अवधि में अपनी राय राष्ट्रपति को भेजनी होती हैं। अगर किसी विधानसभा द्वारा इस प्रस्ताव का विरोध भी किया जाता है तो उसका कोई असर नहीं पङता है।

राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद केन्द्र सरकार को राज्य विभाजन के प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में पारित कराना होता है। संसद में पारित होने के बाद प्रस्ताव को फिर से राष्ट्रपति को भेजा जाता है। अन्त में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद राज्य का विभाजन कर नये राज्य का गठन किया जाता है।

प्रस्तावित बुन्देलखण्ड राज्य

प्रस्तावित बुन्देलखण्ड राज्य में उ प्र के 7 जिले झांसी, ललितपुर, जालौन, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा शामिल हैं। म प्र के 6 जिले दतिया, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, पन्ना शामिल हैं।

इसके अलावा म प्र के कुछ आंशिक जिलों को सम्मिलित किया गया है। सतना जिले की चित्रकूट विधानसभा, भिण्ड जिले की लहार विधानसभा, शिवपुरी जिले की पिछोर करैरा विधानसभा, अशोकनगर की चन्देरी विधानसभा क्षेत्र को, शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है। कुछ समय से मैहर, कटनी, व गंजबसौदा को प्रस्तावित क्षेत्र में जोड़ने के लिए राज्य समर्थक मांग करते हैं।

फिलहाल उ प्र, म प्र व केन्द्र सरकार उपरोक्त 13 जिलों के बुन्देलखण्ड क्षेत्र को मान्यता देता है।इन्हीं जिलों में सरकारें बुन्देलखण्ड पैकेज देती है । सांस्कृतिक दृष्टि से बुन्देलखण्ड भूभाग बहुत बड़ा है जिसमें 20 से ज्यादा जिले सम्मिलित हैं।

अतः कुल 13 जिले एवं म प्र के कुछ आंशिक जिलों को शामिल कर राज्य समर्थक जनमत संग्रह व जन आकांक्षाओं के बिहाफ पर प्रस्तावित बुन्देलखण्ड राज्य को अलग राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं।

लेखक -कुँवर विक्रम प्रताप सिंह तोमर
युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष, बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा

बुन्देलखण्ड राज्य बनाओ - किसान बचाओ

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बुन्देलखण्ड राज्य बनाओ - किसान बचाओ


बुन्देलखण्ड के किसानों के घरों में अन्न का एक दाना तक नहीं है फिर भी हमारा भारत कृषि प्रधान देश है। हालात यह है कि रोटी कमाने के लिए बहुतायत किसान अपना परम्परागत काम छोड़कर मजदूर बनने के लिए अपना गांव छोड़कर जा रहे हैं। लगातार खराब मौसम की मार ने बुन्देलखण्ड में अकाल जैसे हालात पैदा कर किसानों की कमर तोड़ दी है। बुन्देलखण्ड की 86%आबादी कृषि पर निर्भर है या कहे कृषि ही पेट पालने का एक मात्र साधन है। परन्तु आज बुन्देलखण्ड के किसानों में घोर निराशा व्याप्त है और यहां का अधिकांश किसान खेती से नाता तोड़ रहा है। लाचारी, बेकारी, गरीबी एवं बीमारी से त्रस्त किसान कृषि को छोड़कर अपने श्रम को दूसरे काम में लगाना चाहता है। क्योंकि कृषि पिछले कई वर्षों में पेट की आग बुझाने में सहायक सिद्ध नहीं हुई है। इसलिए आज लाखों किसान बुन्देलखण्ड से पलायन कर मजदूरी करने चले गए हैं।अगर इसी रफ्तार से किसान खेती से मुंह मोङते गये तो जरा सोचिए हमारे खाने का प्रबन्ध भी पराश्रित हो जायेगा । और बुन्देलखण्ड की पूरी धरती बंजर हो जायेगी ।

प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सूखा, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि व मौसम की बेरूखी की मार झेल रहे किसानों की समस्यायें दिनोंदिन महामारी की तरह बढती जा रही है। बुन्देलखण्ड में अकाल पङ गया है। बुन्देलखण्ड में अधिकतर लोगों ने अपने पालतू जानवरों को खूंटो से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दिया है। ये भारी तादाद में अन्ना जानवर किसानों की रातों की नींद हराम कर रहे हैं।

यहां का शत प्रतिशत किसान सरकारी व सूदखोरों के कर्ज से बहुत ज्यादा परेशान हैं। जिन किसानों की सहन शक्ति व हिम्मत जबाब दे जाती है वे आत्महत्या का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं। पिछले 2 दशक से भी कम समय में पूरे बुन्देलखण्ड में कर्ज, गरीबी व भुखमरी से जूझ रहे 25000 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। ज्यादातर आत्महत्याएं सदमे के कारण फांसी लगाकर व कुछ जहरीला पदार्थ खाने की है। जिन परिवारों के मुखिया किसान ने आत्महत्या की, वे परिवार बहुत तंगहाली में व बदहाली के साथ साथ कुपोषण में जी रहे हैं। इनके बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण की दूर दूर तक कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे किसानों के परिवार अपनी बेटियों की शादियां नहीं कर पा रहे हैं, शादियां टूट रही हैं। किसानों का अंतिम संस्कार या तेरहवीं करने के लिए साहूकार भी कर्ज देने से कतराने लगे हैं।

आज देश आजादी के 70 सावन देखने के करीब है और हमारे कृषि प्रधान देश में एक इलाका ऐसा भी है जहां किसान भूख, प्यास, कर्ज व मर्ज से जूझकर आत्महत्याएं कर रहे हैं। इस इलाके में महज 35 हजार से 1.5 डेढ़ लाख रूपये के बीच सरकारी कर्ज में दबे अधिकांश किसानों को जान देनी पङ रही है। वहीं देश के 30 बङे कारोबारी घराने सरकारी बैंकों का लाखों करोड़ रुपये डकारकर ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। यही कारोबारी चुनाव के समय में हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों को चन्दा देने का कार्य करते हैं और चुनाव बाद सत्ता में आयी पार्टी इन कारोबारी घरानों का करोड़ों का टैक्स माफ कर ,ये भ्रष्ट राजनेता देश को खोखला करने की गंदी राजनीति करते हैं।

अभी कुछ समय से अकाल के चलते बुन्देलखण्ड सुर्खियों में है। किसानों के लिए कार्य कर रहे तमाम संगठन व राजनैतिक पार्टियों ने बुन्देलखण्ड के सूखे पर सियासत करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। परन्तु बुन्देलखण्ड के किसानों को मदद पहुंचाने का कोई महत्वपूर्ण या ठोस कदम नहीं उठाया गया। सरकारी उदासीनता व भ्रष्टाचार के चलते मुआवजा व फसल बीमा का बुन्देलखण्ड के किसानों को कभी लाभ नहीं मिलता है।मुआवजे ऊंट के मुंह में जीरा जैसे होते हैं। पैकेज, मुआवजा व खाद्यान्न वितरण फौरी राहत हो सकती है लेकिन स्थायी समाधान नहीं खोजा गया। बुन्देलखण्ड के किसानों के हित में संपूर्ण कर्ज माफी ही बुन्देलखंडियो को संकट के इस दौर से निकाल सकती है ।

स्वराज अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव की रिपोर्ट में बताया गया था कि बुन्देलखण्ड में हर पाँचवा आदमी घास की रोटियां खाने को मजबूर हैं।
जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने बुन्देलखण्ड की पदयात्रा में कहा था कि पानी के लिए दुनिया में जानी जाने वाली धरती बुन्देलखण्ड को आज पानीदार बनाने की आवश्यकता है। जबकि पहले ऐसा कहा जाता था बुन्देलखण्ड की धरती के संबंध में -"बुन्देलो की सुनो कहानी ,बुन्देलो की वाणी में ।
पानीदार यहां का पानी ,आग यहां के पानी में ।।"

बुन्देलखण्ड की धरती लगातार बंजर हो रही है, हजारों हेक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी है।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र की घोर उपेक्षा के चलते बुन्देलखण्ड के किसानों को समृद्ध बनाने के लिए जरूरी प्रयास कभी नहीं हुए। बुन्देलखण्ड में जल संरक्षण व जल संवर्धन की नीतियां जमीन पर नहीं उतारी गई। सिंचाई की सुविधाओं को बढाने का व हर खेत को पानी उपलब्ध कराने की नीति बुन्देलखण्ड के लिए नहीं बनायी गयी। नदियों के पानी का दोहन बन्द कराकर उसे सिचाई व बुन्देलखण्ड में पेयजल उपलब्ध कराने के लिए काम नहीं हुआ। फलस्वरूप हमारे बुन्देलखण्ड के पानी से दूसरे गैर बुन्देलखण्ड क्षेत्र की सिचाई की जाती है और हमारे खेत व गले दोनों प्यासे रह जाते हैं। खाद, बीज, पानी, बिजली और क्रेडिट कार्ड पाने में हर स्तर पर किसानों को भ्रष्टाचार व परेशानियों से रूबरू होना पड़ता है।
बुन्देलखण्ड के बदलते प्राकृतिक मिजाज एवं सरकारों की घोर उपेक्षा ने बुन्देली किसानों के जीवन को नरक कर दिया है।

आज समय की मांग है कि बुन्देलखण्ड के किसानों को खुद आगे आकर संघर्ष करना होगा अपनी पीड़ा पर आंसू बहाने से अच्छा होगा कि किसानों को अपने अधिकारों व हकों के लिए लङना होगा। बुन्देलखण्ड के किसानो का खुशहाली का रास्ता बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण से ही प्रशस्त हो सकता है। आज किसानों को खुद के विकास के लिए बुन्देलखण्ड राज्य बनाना होगा।

बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण होने पर बुन्देलखण्ड के किसानों को कर्ज मुक्त कराने का काम किया जायेगा। बुन्देलखण्ड की धरती को पानीदार बनाया जायेगा। कृषि का अच्छा मूल्य दिया जाएगा। सिचाई सुविधाओं, कृषि मंडियों की स्थापना, खाद, बीज, फसल बीमा, फसल रखरखाव का उत्तम प्रबन्ध, आवागमन, तकनीकी कृषि व फसल का उत्तम मूल्य दिलाने का प्रबन्ध नये बुन्देलखण्ड राज्य में होगा। बुन्देलखण्ड की बदहाल कृषि व किसानों के सूरतेहाल को सुधारने के लिए एक बहुत बङे समर्पित प्रयास की जरूरत है ऐसा प्रयास बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण होने पर ही संभव है।

जब बुन्देलखण्ड का किसान खुशहाल हो जायेगा तो बुन्देलखण्ड प्रदेश व देश की तरक्की में योगदान करेगा। आज बुन्देलखण्ड के हर वर्ग को आगे आकर बुन्देलखण्ड राज्य बनाकर किसानों को बचाना होगा।

जय जय बुन्देलखण्ड।

लेखक -कुँवर विक्रम प्रताप सिंह तोमर
युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष,
बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा

Jhansi Art Gallery : Bundeli Miniature Paintings & Sketches

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Jhansi Art Gallery

झाँसी आर्ट गैलरी 

 

Jhansi Art Gallery is the collection of some cultural Paintings. In the Art Gallery, there are many Historical paintings related to Jhansi Fort, Rani Jhansi Mahal, Rang Mahal, Baruasagar Fort, Garhkundar Kila etc.

Some Painting are Budelkhandi Miniature like Shiv-Parvati,Ram Darwar, Krishan Lila,etc.The Purpose Of this Art gallery is to create awareness about bundelkhand's history and culture heritage.

Bundeli Miniature Paintings (बुंदेली लघु चित्रकारी)

bundeli-miniature-painting bundeli-shiva-parvati-painting

Gods Paintings

bundeli-ganpati-painting bundeli-shiva-parvati-painting.jpg

History & Culture Paintings

Bundelkhandi-Rai-Painting

jhansi-fort-painting

Chaturbhuj-Temple-Painting

 

Sketches

Jahangir-Mahal-Orchha-Sketch

Jhansi-Railway-Station-Sketch

 

About Artist:

vikas-singh-jhansi-art-gallery.jpg (250×312)Name: Vikas Vaibhav Singh
D.O.B.: 07 Sep 1965 (Jakhauli Village,Distt. Jalaun, U.P. )
Education : M.A. (Fine Arts)

Authored Books:
(1) Vimal Sagar Pub. - Shri Syadwad Vimal Gyan Pith, Sonagiri (M.P.)
(2) Garhkundar Me Khangar Rajvansh (Pub. - Pulind Kala Dirgha)

Achievements:
(1) Interview with ETV (U.P.), DD Lucknow , Akashwani etc
(2) Organized 3 Ekal Art Exhibitions
(3) Organized 34 Public Art Exhibitions

Order & Enquiry Contact:

D-55, New Raiganj, Rajkeey Coloney, 
Sipri Bazar, Jhansi (U.P.) India
Phone No : +91-9450080361
Email: jhansiartgallery@gmail.com

(Book) Bundelkhand Circuit Uttar Pradesh : Lonely Planet

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(Book) Bundelkhand Circuit Uttar Pradesh : Lonely Planet

About Book:

Bundelkhand Circuit Uttar Pradesh (Lonely Planet) 9781760342449 By - Supriya Sehgal Peppered with fairytale forts, the Bundelkhand region of Uttar Pradesh throws up stunning surprises amidst its tangle of shrubby dhak trees and miles of countryside. You will unearth plenty of legends and folklore that will bring alive the legacies of the Chandela and Bundela kings who once ruled this land. Here, a keen love for history, an investigative eye and a vivid imagination will be your trusted allies. Discover the Bundelkhand region with a guide that you can trust. Visit forts that rise extravagantly above the dusty sun-scorched land, ancient temples where tales from the epics played out and a sprinkling of Jain pilgrimage sites that make Bundelkhand a compelling place to explore. Our expert authors will guide you to must-see sights and experiences, give you loads of reliable practical information and help you get the best possible value for money. Go armed with all the information you need without being bogged down by unnecessary details

A fusion of inimitable architecture, stories of dynastic struggles and roaming the stark arid topography, which has witnessed the valour of some of the most eminent freedom fighters of India, will leave you in thrall at Bundelkhand.

Bundelkhand lies wedged between the Indo-Gangetic Plain to the north and the low Vindhya Mountain range to the south. The topography looks bleak with vast tracts of pale rocky land clinging to either side of the roads – a dull brown scape broken by the green of the shrubby dhak copses. Sparse vegetation, barren hills and the criss-crossing rivers in the plains offer a typical perspective of the Central India topography. Large shimmering rivers Sindh, Betwa, Shahzad River, Ken, Bagahin, Tons, Pahuj, Dhasan and Chambal meander through the entire region, lending themselves to the construction of many small and big dams across them. Three low mountain ranges dissect the region, their steep slopes and insurmountable scarps having made eligible sites for forts and palaces for the erstwhile rulers.

Book Details:

Book: Bundelkhand Circuit Uttar Pradesh : Lonely Planet

ISBN-13: 9781760342449

Binding: Binding Type

Publishing Date: 2016-02

Publisher: Lonely Planet Publications

Number of Pages: 68

Language: English

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भारतीय राजनीति में बुन्देलखण्ड़ की ऐतिहासिक भूमिका

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भारतीय राजनीति में बुन्देलखण्ड़ की ऐतिहासिक भूमिका


कभी चेदि, कभी दशार्ण, कभी चन्द्रावती तो कभी जुझौती4 , या जैजाकभुक्ति के नाम से जाना जाने वाला बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र आज भले ही भारत में विशिष्ट स्थान न रखता हो ऐतिहासिक काल में इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा हैं, इतना ही नहीं यह लम्बें समय तक भारतीय राजनीति तथा कला का केन्द्र रहा हैं।

बुन्देलखण्ड़ की युमना, टोंस वेतवा2 , धसान3 , केन तथा काली सिन्ध नदियों के किनारे प्राप्त पाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष तथा बांदा4 , सागर5 , ललितपुर एवं छतरपुर जिले के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त शैल चित्र इस बात में प्रमाण हैं कि यह क्षेंत्र सभ्यता के विकास के प्रारम्भिक काल से ही मानव को विकसित होने के अवसर प्रदान करता रहा हैं।

ऋग्वेद में चेदि का उल्लेख मिलता हैं। रामायण महाभारत, जातक कथाआें तथा सोलह महाजन पदों की सूची6 , में चेदि का वर्णन उस काल में इस क्षेंत्र के महत्व को रेखांकित करता हैं। महाभारत काल में उपरिचर, शिश्ुपाल, धृष्टकेतु तथा सुबाहु जैसे राजाआें ने बुन्देलखण्ड़ को भारतीय राजनीति में उल्लेखनीय स्थान प्रदान किया था। महाभारत में उपरिचर की राजधानी के समीप से शुक्तिमती नदी के बहने की जानकारी मिलती हैं।7 पार्जीटार ने शुक्तिमती की पहचान केन नदी से की हैं।8 इसकी राजधानी का भी नाम शुक्तिमती था ये केन नदी के किनारे स्थित आधुनिक बांदा नगर के समीप कहीं स्थित थी। महाभारत काल में चेदि राज्य (बुन्देलखण्ड) भारत के महत्वपूर्ण राज्य में से एक था। श्री कृष्ण की बुआ का पुत्र शिशुपाल यहाँ का प्रतापी राजा था, उसने अनेक महत्वपूर्ण विजयें प्राप्त की थीं। शिशुपाल श्री कृष्ण से शत्रुता रखता था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय जब भीष्म के कहने पर युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण ने अग्रपूजा की, तब शिशुपाल अन्यन्त क्रोधित हुआ और उनकी आलोचना करते हुये अपशब्द कहे परिणामतः श्री कृष्ण ने उनकी वही वध कर दिया।

ई.पू. छठी शताब्दी में स्थित सोलह महाजन पदों में चेदि एक शक्तिशाली महाजनपद था। नन्दों तथा मौयाेर् के समय बुन्देलखण्ड़ का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहा, यह क्षेत्र इन सामा्रज्यों के अधीन ही शासित रहा। टॉलमी ने सन्द्रावर्ताज (चन्द्रावती) नामक राज्य का वर्णन करते हुये उसकी जो सीमायें दी हैं वे बुन्देलखण्ड़ से मेल खाती हैं। उसने यहां के जिन चार नगरों तमसिस, कारपोर्निया, इमलथ्रो तथा नन्दवग्दुर का उल्लेख किया है इनकी पहचान क्रमशः कालिंजर, खजुराहो, महाेबा, तथा नरवर से की गई हैं।9 ये चारों नगर बुन्देलखण्ड के महत्वपूणर् नगरों में रहे हैं। टॉलमी द्वारा इन नगरो का उल्लेख करना बुन्देलखण्ड के तत्कालीन भारत में महत्व को रेखांकित करता हैं। मौर्यो के बाद यह क्षेत्र शुंगों, सातवाहनों, इण्डाेग्रीक, भारशिव तथा गुप्त शासकों के अधीन रहा। गुप्तो के अधीन इस क्षेंत्र में शासन करने वाले परिव्राजक राजाओं ने स्थाप्तय तथा मूर्तिकला की दृष्टि से बुन्देलखण्ड को सम्पन्न किया। व्हेनसांग ने बुन्देलखण्ड़ काे चि-चि-टाे कहां हैं। उसके अनुसार इस राज्य की राजधानी (खजुराहों) लगभग ढाई मील के धेरे में थी तथा यहां लगभग एक हजार ब्रहा्रण 10 मंदिरो में पूजा करते थे। यह राज्य अपनी उपज के लिए प्रसिद्ध था तथा भारत के सभी भागाें के विद्वान यहां आते थें।‘‘11

हर्ष की मृत्यु के बाद त्रिपुरी के कलचुरियों ने कालिजंर का पर अधिकार कर बुन्देलखण्ड में अपना प्रभुत्व स्थापित किया। इस अधिकार से कलचुरियों के गौरव तथा प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुयी तभी तो अनेक कलचुरी शासकों ने कालंजरपुर वराधीश्वर की उपाधि धारण करते हुयें अपने आपको गौरान्वित महसूस किया।

कलचुरियों के बाद बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्रतिहारों का शासन स्थापित हुआ। प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल के समय तक प्रतिहारों की सत्ता इस क्षेत्र में दृढ़ रही। प्रतिहार शासक नागभट्ट।। के उत्तराधिकारी रामभद्र के समय इस क्षेत्र में प्रतिहाराें का नियंत्रण12 कुछ ढीला पड़ गया। इसकी जानकारी मिहिर भोज के बराह अभिलेख से मिलती हैं। इसमें कहा गया है ‘‘ उसने (मिहिर भाेज) कान्यकुब्ज मुक्तिके कालंजर मण्डल के उदुम्बर विषय में स्थित बलाकाग्रहार के उस दान को पुनः चालू किया जो सर्व प्रथम सर्ववर्मन द्वारा दिया गया था बाद में नागभट्ट द्वितीय के समय पुर्नस्वीकृत हुआ था किन्तु रामभद्र के समय व्यवहारिक नामक अधिकारी की अयोग्यता क े कारण विहत हो गया था।‘‘13ए

प्रतिहार शासक महीपाम प्रथम क े समय बुन्देलखण्ड भारतीय राजनीति के रंगमंच में पहली बार निर्णायक भूमिका में उभरकर सामने आया। नागभट्ट द्वितीय के समय से ही चन्देल प्रतिहारों के अधीन शासन करते आ रहें थें महीपाल के समय

By: - ड- डॉ0 सी.एम.शुक्ल


Jobs at Jaivik Krishi Avam Mrida Sanrakshan Prashikchan Sansthan - 2016

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Jobs at Jaivik Krishi Avam Mrida Sanrakshan Prashikchan Sansthan - 2016

Jaivik Krishi Avam Mrida Sanrakshan Prashichan Sansthan Institution of Organic Farming And Soil Conservation

Vacancies Detail:

We Have Requirement of Following Profiles-
 

      JOB   PROFILE

QUALIFICATION

SALARY

OTHER

Location

DIS-CO-ORDINATOR

GRADUATE /UG/DIPLOMA

13000/-

TA + DA

All U.P.

BLOCK CO-ORDINATOR

GRADUATE /UG/DIPLOMA

10000/-

TA + DA

All U.P.

SUPERVISOR

GRADUATE /UG/DIPLOMA

8000/-

TA + DA

All U.P.

Duties and Responsibilities-

  • Give the training of Organic Farming& Soil Conservation / Skill Development/Personality Improvement and awareness of Plantation.
  • To work in the field of Biofertilizer and soil by making the farmers and landowners aware about its importance.
  • To make the Biofertilizer available to the farmers.
  • To provide training and Guidance regarding soil enrichment and soil Conservation.
  • Promote Programs related to Rural Development.
  • Promote Programs related to Environment Conservation (Including Agriculture, Horticulture, Plantation and forestry Activities.

NOTE- Interview Going On, Please Bring Your Resume in Interview either Email at jkmsps@gmail.com.

ADDRESS-:

D-199, Vibhutikhand Gmotinagar , Lucknow
Contact- 0522- 4006592 , +91 7844813903

Courtesy: Jaivik Krishi Avam Mrida Sanrakshan Prashikchan Sansthan

Solar Energy Course for Farmer Entrepreneurs by NIESBUD

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Solar Energy Course for Farmer Entrepreneurs by NIESBUD


ABOUT THE ORGANISERS

  • NIESBUD is an Apex Institute in the area of Entrepreneurship and Small
  • Business Development under the Ministry of Micro, Small and Medium
  • Enterprises Government of India. The basic objects for which the
  • Institute has been established are: Promotion and Development of Micro,
  • Small and Medium Enterprises including Enhancement of their
  • Competitiveness through Various Activities.

This training programme is designed for Entrepreneurs looking at demystifying the business, finance, technology & regulatory landscape of solar energy. In this trainin g p r o g r a m m e , major i n f o r m a t i o n necessary to enter the business of Solar Energy will be provided along with excellent networking opportunities.

TOPICS

  • Solar energy technology development in India
  • How solar energy can provide service in rural & urban areas
  • Basic design principles, installation and system maintenance
  • Providing small solar home system: start of a business
  • Developing a business plan
  • Day-to-day operations of business
  • Sales skills and selling solar home systems
  • Government and state policies

बुंदेलखंड और ब्रिक्स (Bundelkhand and BRICS)

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बुंदेलखंड और ब्रिक्स


बुंदेलखंड की डायरी

पर्यटन और इससे जुड़े कारोबार किसी भी देश ,समाज की अर्थव्यवस्था में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं । कई देशो की अर्थ व्यवस्था सिर्फ पर्यटन कारोबार पर ही आश्रित है । ऐसे दौर में बुंदेलखंड के खजुराहो में सम्पन्न हुए ब्रिक्स पर्यटन समिट का अपना एक अलग महत्व है । यह इसलिए भी महत्व पूर्ण हो जाता है की दुनिया की लगभग आधी आबादी भारत ,चीन , रूस ,साऊथ अफ्रीका और ब्राजील में रहती है । ब्राजील को छोड़ कर बाकी देशो के प्रतिनधियों का खजुराहो आना और यहां भारत के पर्यटक स्थलों के विकाश और पर्यटकों के एक दूसरे के देश में आने जाने पर विचार विमर्श करना , पर्यटन के क्षेत्र में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है ।

दो दिवसीय ब्रिक्स देशों की पर्यटन समिट में साउथ अफ्रीका के पर्यटन मंत्री सहित आठ व चाइना के पांच और रूस का एक सदस्य शामिल हुआ । इसके अलावा केंद्रीय पर्यटन सचिव , और उनका दल , उत्तर प्रदेश वा मध्य प्रदेश के पर्यटन सचिव , मध्य प्रदेश के पर्यटन मंत्री ने , समिट में ब्रिक्स देशों के बीच में किस तरीके से पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए इस पर विचार विमर्श किया गया । ब्रिक्स देशों के नागरिक इन देशों के स्थित पर्यटन स्थलों को देखने के लिए आसानी से आ सके इसकी कनेक्टिविटी को लेकर भी चर्चा की गई है। चर्चाये बहुत हुई ब्रिक्स देशो के नागरिको के लिए वीसा नियमो में ढील की , पर्यटन क्षेत्रों में रेल और हवाई संपर्क बढ़ाने की , आपसी संपर्क और संबंधों के विस्तार के साथ पर्यटन में आधुनिक तकनिकी के इस्तेमाल पर व्यापक विचार विमर्श हुआ । पर्यटन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाने वाले टूर आपरेटर्स ने भी इस सम्मिट में अपने विचार रखे और एक मार्केटिंग प्लान ब्रिक्स देशो के सामने रखा । पर्यटन में मार्केटिंग के महत्व को बताते हुए टूर ऑपरेटरों को एक उचित प्लेटफॉर्म देने की वकालत भी की ।

ब्रिक्स देशों के इस सम्मिट में आये उत्तर प्रदेश से आये पर्यटन मंत्रायलय के लोगों ने पर्यटन के विस्तार को लेकर अपनी कार्य योजना भी बताई । उन्होंने बताया की हम एकऐसा टूरिस्ट सर्किल बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसमे बनारस को देख कर पर्यटक इलाहबाद , चित्रकूट , खजुराहो ,और ओरछा होते हुए झांसी पहुंच जाए । इस टूरिस्ट सर्किल में भविष्य में पन्ना , कालिंजर , अजयगढ़ , महोबा और चरखारी को जोड़ने की बात भी कही गई ।

देखा जाए तो बुंदेलखंड में पग पग पर स्थापत्य कला की जीवंत धरोहर मौजूद है , साथ ही है प्रकृति का अद्भुत वरदान , जैव विविधिता का ऐसा संगम बहुत कम जगह देखने को मिलता है । इस दशक के शुरुआत में पन्ना के तत्कालीन कलेक्टर रविन्द्र पस्तोर ने बुंदेलखंड को टूरिज्म सर्किट विकसित करने के अपने स्तर पर प्रयास किये थे । उन्होंने पन्ना टाइगर रिजर्व , टाइगर रिजर्व के अंदर मौजूद शील चित्रो , पन्ना के पांडव फाल , कौआ सेहा , ब्रस्पति कुंड , नचना का शिव मंदिर , भगवान् राम के आश्रम शारंग धाम , अगस्त मुनि के आश्रम , अजयगढ़ किला , पड़ोस के कालिंजर फोर्ट , चित्रकूट , खजुराहो , जटाशंकर , भीम कुंड , धुबेला , महोबा ,चरखारी , दमोह के बांदकपुर , टीकमगढ़ के बल्देवगढ़ के किला , कुंडेश्वर , ओरछा को इस टूरिस्ट सर्किल में जोड़ने की बात कही थी । उनके जाने के बाद उनके प्रयास कागजों में ही दफ़न हो कर रह गए \ बाद में पन्ना कलेक्टर के रूप में आई दीपाली रस्तोगी ने जरूर कुछ सार्थक प्रयास किये और मंदिरो के आस पास के अतिक्रमण हटवाए , अजयगढ़ किला के लिए सीढ़िया बनवाई , उनका प्रयास था की कालिंजर की तरह अजयगढ़ के किले तक सड़क बनाई जाए , पर यह सफल ना हो सका । इसी दौर में छतरपुर के तत्कालीन कलेक्टर रहे अजात शत्रु ने खजुराहों ,व्यास बदौरा के मंदिर , जटाशंकर , भीमकुण्ड , धुबेला होते हुए ओरछा प्रस्थान के सर्किल बनाने का प्रयास किया था । कुर्सी पर व्यक्ति के बदलने के साथ ही योजनाए और सपने दफ़न हो जाते हैं यही भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था है ।

साउथ अफ्रीका के पर्यटन मंत्री डी ए हेनिकोम ने भारत की बेरोजगारी पर सवाल उठाया और कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था तो बढ़ रही है लेकिन यहां पर बेरोजगारी पर भी काबू पाना भी जरुरी है । इसी तरह चीन विकसित देश तो है किंतु वहा भी लोग गरीबी से परेशान है । समाज की इस दशा को पर्यटन कारोबार से काफी हद तक सुधारा जा सकता है । खजुराहो में पर्यटन कारोबार से जुड़े लोग हेनिकोम की इस बात पर अपनी सहमती जताते हुए कहते हैं की ब्रिक्स का यह आयोजन भले ही बहुत निर्णायक ना रहा हो किन्तु इतना अवश्य है की खजुराहो में इस तरह के आयोजन होने से खजुराहो , और प्रदेश का गौरव बड़ा है । लोगों को ये उम्मीद है की जब अक्टूबर में गोवा में ब्रिक्स का सम्मलेन होगा तो खजुराहों में हुई चर्चा का अवश्य ही कोई निष्कर्ष निकलेगा । जिसका लाभ ना सिर्फ खजुराहो को होगा बल्कि बुंदेलखंड के तमाम पर्यटक स्थलों को भी होगा ।

दरअसल टूर ऑपरेटर्स ने मार्केटिंग जो बात कही है वह देश और खाशकर बुन्देलखण्ड इलाके के लिए बहुत ही मार्के की बात कही है । बुन्देलखण्ड के खजुराहो और बहुत हुआ तो ओरछा की बात कह कर पर्यटक को सीमित कर दिया जाता है । जब की जरुरत है बुन्देलखण्ड इलाके के समग्र छोटे बडे , धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटक स्थलों के प्रचार प्रसार की । खजुराहो को यदि इसका केंद्र बनाकर और खजुराहो के संग्रहालय में बुंदेलखंड के ऐसे स्थलों की मॉडल अथवा छोटी छोटी फिल्मो का प्रदर्शन करें तो एक खजुराहो सड़क मार्ग से आने वाला पर्यटक राह में पड़ने वाले पर्यटक स्थल तक जरूर पहुंचेगा ।

देश में पर्यटन कारोबार के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है की इस कारोबार से देश के कुल रोजगार में लगभग ९ फीसदी हिस्सेदारी पर्यटन की है । देश की जी डी पी में भी इसकी हिस्सेदारी लगभग सवा छह फीसदी मानी जाती है । भारत में पर्यटन कारोबार को बढ़ाने के लिए सरकार के ये प्रयास काफी महत्व पूर्ण माने जाते हैं । पर पर्यटन कारोबार को बढाने के लिए आवश्यक है ,परिवहन की बेहतर व्यवस्था ,,संचार की सुविधा , सुरक्षा और विश्राम के लिए सुविधाजनक गेस्ट हाऊस,होटल ,लाज वगेरह , प्रशिक्षित गाइड , और शांत माहौल । सरकार का लक्ष्य है की देश में घरेलु और विदेशी पर्यटकों की संख्या बड़े इसके लिए तमाम तरह के जतन किये जा रहे हैं । बुंदेलखंड में इनका असर कब तक देखने को मिलता है इसका इन्तजार है बुंदेलखंड के लोगो को ।

By:रवीन्द्र व्यास

बुद्ध विहार (सुमेध भूमि) डा0 अम्बेडकर पार्क, ललितपुर झाॅंसीपुरा में स्थापित

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बुद्ध विहार (सुमेध भूमि) डा0 अम्बेडकर पार्क, ललितपुर झाॅंसीपुरा में स्थापित


ललितपुर में बुद्ध विहार (सुमेध भूमि) डा0 अम्बेडकर पार्क, झाॅंसीपुरा, में स्थापित किया गया है जिसका 18 सितम्बर 2016 रविवार को प्रातः 8 बजे धम्मयात्रा के बाद 10.30 बजेलोकार्पण किया जायगा ! ललितपुर पूर्व से ही बौद्धधम्म का अध्ययन केन्द्र रहा है जिसका वर्णन भदन्त बोधानन्द महास्थविर द्वारा अपनी पुस्तक बौद्ध चर्या पद्धति: तीर्थ -स्मारक परिच्छेद पृष्ठ संख्या 149 पर किया गया है । ज्ञातव्य है कि उक्त पुस्तक 1947 में बुद्ध पूर्णिमा के अवशर पर बुद्ध विहार रिसालदार पार्क, लखनऊ से प्रकाशित हुई थी और उस समय भारत के साथ पाकिस्तान एवं बंगलादेश भी सम्मिलित थे !

ललितपुर में बुद्ध विहार(सुमेध भूमि) डा0 अम्बेडकर पार्क, झाॅंसीपुरा, में 18 से 22 सितम्बर 2016 तक श्रामणेर एवं भिक्खु प्रशिक्षण रहेगा जिसमें 18 को प्रबज्जा, 19 को देवगढ यात्रा, 21को साॅंची की धम्मयात्रा होगी, बुद्ध विहार (सुमेध भूमि) डा0 अम्बेडकर पार्क, झाॅंसीपुरा, के लांेकार्पण में

आमंत्रित:भिक्खु प्रज्ञादीप महाथेरो, महासचिव अखिल भारतीय भिक्खु संघ, बुद्धगया
भिक्खु डा0 पी0 सीवली थेरो महासचिव महाबोधी सोसाइटी, भारत, सारनाथ
भिक्खु डा0 के0 सिरी सुमेध थेरो संस्थापक, जम्बूदीप बुद्धविहार, सारनाथ
भिक्खु धम्मधर थेरो पुणे, भिक्खु वीरत्न थेरो, भिक्खुनी कात्यायनी थेरी
घाटकोपर, मुम्बई के साथ -साथ इेश-विदेश के अनेक बौद्ध भिक्खु सम्मिलित होंगे

आमंत्रित अतिथि:

श्री सुभाष जयसवाल, नगरपालिका प्रमुख, ललितपुर के साथ

लखनऊ-श्री राधे श्याम, श्री सुकेस राजन श्री जी0 पी0 गौतम, इं दया सागर बौद्ध,

उज्जैन - डा0 हरी बाबू कटारिया, श्री एस0 डी0 मुघाटे, इं सावित्री कटारिया,

इन्दौर -डा0 रमा पांन्चाल, डा0 बीना मालवीय, इटारसी- श्री के0 एल0 यादव

भोपाल - श्री वी0 वी0 वंजारी, नागपुर- डा0 के0 एस0 भास्कर

व्यवस्था में:-

भिक्खु डा0 सुमेध थेरो बौद्ध उपासक संघः इं एस0 एन0 राम,
इं राजेंन्द्र कुमार, छोटे लाल सिद्धार्थ, सुनील कुमार एवं
श्री राकेश कुमार एवं इं विपिन कुमार नगरपालिका, ललितपुर

(Poem "कविता") महोबा : Mahoba

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(Poem "कविता") महोबा : Mahoba


कभी वर्षा कभी सूखे की पड़ती मार महोबा में,
अम्ला भी लगे सरकारी है लाचार महोबा में,

पानी की कमी भी दीखती हर साल महोबा में,
पानी गिर गया तो जिन्दगी बेहाल महोबा में,

हरे थे पेंड़ ऊपर से भरे पहाड़ महोबा में,
रुकने के लिए थी बादलों के आड़ महोबा में,

पानी के लिए थे हर जगह तालाब महोबा में,
पर्वत रोक लेते थे खड़े सैलाब महोबा में,

नदियों की बड़ी दुर्गति बुरी हालात महोबा में,
बंधों में नहीं जल संचयन औकात महोबा में,

मिट्टी की खुदाई में भी भ्रष्टाचार महोबा में,
गाँवों और गरीबों का नहीं उपचार महोबा में,

खेतों में खुला है घूमता गोवंश महोबा में,
दबे हैं बीच बगुलों के हजारों हँस महोबा में,

पहाड़ों के हुए जबसे यहाँ पट्टे महोबा में,
लगे हैं लोग कुछ अब खेलने सट्टे महोबा में,

हैं पत्थर के अवैध चल रहे धंधे महोबा में,
बिके हैं लोग सब कानून हैं अंधे महोबा में,

सड़क टूटी पड़ीं दिखते बड़े गड्ढे महोबा में,
दफ्तर भी दलालों के बने अड्डे महोबा में,

हर अखबार में छपती नहिं सच्चाई महोबा में,
मानो जमी कलमों में रहती काई महोबा में,

विकासी बात भी ना चाहते नेता महोबा में,
हवा हर कोई जातिवाद को देता महोबा में,

जीवन तो किसानों का हुआ है नर्क महोबा में,
जहन्नुम और गाँवों में नहीं है फर्क महोबा में,

खेतों में नहीं बिजली न ही पानी महोबा में,
किसानों का नहीं होता कोई सानी महोबा में,

यहाँ सुधरे नहीं हालात तो सब डूब जायेंगे,
बस ताउम्र सारे लोग झोली ही फैलायेंगे,

कड़वी है कलम 'चेतन'की पर सच बोलती है ये,
विरोधी धमकियों से भी कभी ना डोलती है ये,

हर एक शूरमा के सामने सच बोल दूंगा मैं,
सदा सच के लिए निज शीश को भी तोल दूंगा मैं,

'चेतन'नितिन खरे
सिचौरा, महोबा, उ.प्र.
मो.- +91 9582184195

बुन्देलखंण्ड़ का दरकता लोक जीवन

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बुन्देलखंण्ड़ का दरकता लोक जीवन


किसी भी युग के साहित्य, भाषा, संगीत, कला, शिल्प, और इतिहास की दशा और दिशा को समझने के लिए समकालीन लोक जीवन की धारा को जानना-समझना आवश्यक होता हैं क्योंकि लाेक जीवन की आशा, निराशा, आकांक्षाएँ और विवशताएँ ही इन सब में प्रतिबिम्वित होती हैं।

वर्तमान समय मैं वैज्ञानिक और ओद्याेगिक विकास तथा बढ़ते हुए भैतिकवादी सोच और उपभा ेक्तावादी जीवन जीने की ललक के कारण समाज में तीव्र परिवर्तन हो रहा हैं। नैतिक मान्ताएँ शिथिल हो रही हैं और समाजिक मूल्य खंण्ड़ित हो रहे हैं। सोच की दिशायँ बदल रही हैं। आज समाज की दशा एक कटी हुई पतंग की तरह हो रही हैं, जाे अपने आधार से छिन्न हो गयी हैं और कोई दूसरा ठोस आकार नही पकड नही पा रही हैं।

यह एक ऐंसा त्रासद संक्रमण काल है जहाँ साहित्य, भाषा, शिल्प, इतिहास आदि सबकी मार्गी या शास्त्रीय परम्पराएँ भ्रष्ट हो रही हैं तथा लौकिक परम्पराएँ नष्ट हो रही हैं।

नगरीय संस्कृति सदा संक्रमित होती रहती हैं और कारोबारीपन के नीचे दबी रहती हैं कि हर जगह उसका औपचारिक स्वरुप ही अधिक रहता हैं। लाेगाे के हृदय में उसकी जड़े काफी उथली रहती है। उसका जितना और जो कुछ भी संरक्षण होता हैं वह महिलाओं के द्वारा धर के अन्दर होता हैं, जो धार्मिक आचरण, तीज-त्यौहारों के मनाने और किसी हद तक नैतिकता के रुप में बना रहता हैं। पुरुष वर्ग आधी-अधूरी आस्था के साथ उससे जुडा रहता हैं। आधुनिक स्त्री शिक्षा और महिला संगठनाें के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसमें भी औपचारिकता और परम्परा निर्वाह का रुप अधिक उभरने लगा हैं। समाज की वर्तमान आर्थिक संरचना के कारण परिवारों का विद्यटित होता संगठन भी इसका एक कारण हैं।

लोक संस्कृति के यथार्थ रुप को जांचने-परखने के लिए ग्रमीण जीवन में झांकना आवश्यक हैं। यद्यपि बढ़ती हुई वैज्ञानिक प्रगति और मूल्यहीन अधकचरी शिक्षा से प्रत्यक्ष और परोक्ष दाेनो रुपों में ग्रमीण जीवन भी प्रभावित और प्रदूषित हाे रहा हैं। इसी कारण लोक जीवन में दरारे आने लगी हैं और लोक सांस्कृतिक का रुप बदलने लगा हैं। सोच का विषय समाजपरक न होकर व्यक्तिपरक हो गया है। पुराने मुल्यों औंर आस्थाओं से लोग कट रहे हैं और नये मुल्यांे और आस्थाआे से पक्की तौर पर कही जुड नही पा रहें है।

सहयोग और समन्वय हमारे लाेक जीवन के दो मजबूत सुत्र थे, जिनसे समाज जुडा रहता था और सामान्यतः एक सौमनस्यपूर्ण वातावरण बना रहता हैं।

किसी के यहां विवाह-शादी होती थी तो गाँव के सभी लोग अपने-अपने स्तर पर उसमें सहयोग करते थे। लड़की की शादी में सहयोग करना तो पुण्य कार्य माना जाता था, शादी लड़की की हो या लड़के की, पाँव-पखराई, टीका, भेंट या अन्य किसी रुप में सहयोग दिया जाता था, जिसे व्यवहार करना कहाँ जाता था। इसके पीछे शादी जैसे खर्चीलें काम में थोंडें-बहुत सहयाेग की भावना रहती थी। आज भी व्यवहार दिया जाता हैं, किन्तु उसके पीछें की भावना नष्ट हो गयी हैं। अब उसे टैक्स या शादी में भोजन करने के बिल के रुप में लिये जाने लगा हैं।

इसका प्रमाण यह है कि शादी में व्यवहारियों को भोजन न दिया जाये तो लोग व्यवहार देने भी नही जाते हैं। शादी के निमंत्रण को भी लाेग वारण्ट, नोटिस आदि नाम देने लगे है। यद्यपि यह बात सही है कि ये शब्द मजाक में कहे जाते हैं तो भी पारस्परिक व्यवहार के प्रति लोगाे की बदलती हुई मानसिकता का परिचय भी इन शब्दो मे मिलता हैं।

गांव में किसी की मृत्यु हो जाने पर शवयात्रा में सम्मिलित होने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने धर से एक दाे लकड़िया या कंण्डे ले जाता था। पंचो द्वारा लाया गया ईधन ही शवदाह के लिये पर्याप्त हो जाता था। इसके साथ ही पंचाे द्वारा मृतक का सामाजिक सत्कार भी हो जाता था। इसी कारण पंचो द्वारा र्लाइ  जाने वाली लकड़ियो को पंच लकड़ी कहा जाता था। आज भी यह प्रथा रुढी के रुप में चल रही है किन्तु पंचो द्वारा लायी गयी लकड़ी का अर्थ हो गया हैं पांच लकड़ियां। लोग वही छोटी-छाेटी तीन चार इंच लम्बी सीकें इक्टठ्ी कर चिता पर फेंक कर इति कत्र्तव्य हो जाते हैं।

अस्थि विसर्जन के लिये प्रयाग जाते समय और लौटने पर गंगाजली-पूजन के समय लोग भेंट देते थे। अब यह प्रथा निकट संबंधियो तक सिमट गयी हैं।

ये सभी धटते हुये सामाजिक सहयोग के नमूने हैं। किसी के खेत का बतर (जुताई के लिए मिट्टी में नमी की उचित मात्रा की स्थिति) जा रहा हाे तो सहयोग की एक सामाजिक प्रथा थी- ‘नवरा‘। वह किसान दूसरे किसानों का ‘नवरा‘ करने के लिये आमंत्रित करता था और यदि किसी को कोई व्यक्तिगत अड़चन न हाे तो वे सब मिलकर एक ही दिन में उस का खेत जोत आते थे। उसकी कृतज्ञता ज्ञापन स्वरुप उन किसानो को रात्रि भाेज दिया जाता था। ये भाेज उनकी मजदूरी नही बल्कि कृतज्ञता ज्ञापन ही होता था। धीरे-धीरे ये भोज मजदूरी माने जाने लगा है। दूसरी बात यह भी है कि कुछ किसानों ने अपनी प्रतिष्ठा या अहंकार के कारण नवरा में भाग लेना बन्द कर दिया है। सहयोग की यह प्रथा भी लगभग समाप्त हो चुकी हैं। ग्रामों में किसी की म्यारी, करी या फर्सी चढ़ाना या ठाट बांधना हो, सब पारस्परिक सहयोग से हो जाता था। अब ऐसे अवसरों को लोग टालने का प्रयास करते हैं।

ग्रामों की जातीय संश्लिष्ट और पारस्परिक जुडाव की व्यवस्था की चर्चा कर लेना भी समीचीन है। विस्तार से इसकी चर्चा करना इसलिए आवश्यक है क्योकि काम-काज का यह जातीय आधार अब विश्रंखल होकर इतिहास बनता जा रहा है। कालान्तर में समाज के इतिहास की यह कड़ी लुप्त भी हाे सकती है। अतः इसको रिर्काड़ करना भविष्य के लिए उपयोगी हाेगा।

एक बात और भी हैं, अति प्राचीनकाल से समाज में वर्ण व्यवस्था लागू थी। इसके अंर्तगत शिक्षा और संस्कृति की रक्षा तथा समबर्द्धन का उत्तरदायित्व ब्राहा्रणाेंपर, समाज तथा देश की रक्षा का भार क्षत्रियों पर, समाज के भरण-पोषण की व्यवस्था करनें का भार वैश्यों पर कार्मिक सेवाआें का भार शुद्रों पर था।

इनके लिए संस्कृत के कर्मिन से अपभ्रंश कम्मिन और आगे कमिन तथा सुखोच्चार के कारण ‘कमीन‘ शब्द विकसित हुआ।

यह दुःखद सेयोग है कि फारसी का शब्द ‘कमीन‘ जिसका अर्थ है - छुपकर आधात करने वाला। गुणसाम्य के कारण इसका अर्थ विस्तृत होकर धोखेवाज और नीच भी हो गया हैं और यह गाली के रुप में प्रचलित हो गया। ध्वन्यात्मक एकरुपता के कारण यह उस कमीन शब्द से एकाकार हो गया जिसका अर्थ काम करने वाले था। इसका पुराना अर्थ ‘काम करने वाला‘ था। इसका पुराना अर्थ ताे भुला दिया गया और फारसी ‘कमीन‘ का अर्थ हावी हाे गया।

इस कारण निश्चित ही इनमें हीन भावना का उदय होगा। दूसरी तरफ उच्च वर्ग के लोगो ने भी इसी अर्थ को ग्रहण कर लिया। इस तरह दोनो वर्गो की साेच में दूरी भी बढ़ी, जबकि उनके पारस्परिक सम्मान की रुढ़िया यथावत रहीं। जैसे उच्च वर्णों में जब नयी व्याही बहू आती थी तो उसे इन सभी जातियों की स्त्रियों, जो उसके धर को कमायें होती थीं (धर में काम करती थी) के पैर पड कर आर्शीवाद लेना पड़ता था। चाहे भले ही दूर से पैंर पड़े जायें। मेहतरानी और बसोरन के भी पैर पड़ना पड़ते थें। आपसी दूरी बढ़ने के कारण यह परम्परा टूट गयी हैं।

इन जातियों के लिए आदरवाची सम्बोधन भी थें। जैसे लुहार और बढई के लिए - मिस्त्री, नाई के लिए खबास, ढीमर के लिए माते, बरउआ, कुमार के लिए परजापत (पं्रजापति), माली के लिए बागवान, धोबी के लिए बरेठा, चमार के लिए छीराई, चैधरी, बसोर के लिए धानक, दर्जी के लिए तरकशी। दूसरी जातियों के लिए भी आदरवाची सम्बोधन थें जैसे - अहीर को दउआ, सोंरिया को बर्रखा (वन रक्षक) आदि।

इनके साथ उनकी उम्र के अनुसार कक्का, बब्बा आदि आत्मीय सम्बोधन भी जोडे जाते थें।

ये आज भी प्रचलित हैं किन्तु वे औपचारिक ही अधिक रह गये हैं। उनसे आत्मीयता निकल गयी हैं।

ग्रामों मे कमाने अर्थात् किसानो की विशिष्ट सेवाएँ करने वाले - लुहार, बढ़ई, नाई, ढ़ीमर, कुम्हार, माली, धोबी, चमार, बसोर, आदि जातियों के लिए विशेष अवसरों पर अपने किसानों का काम करतें थे। जैसे-लुहार-हलों के फार, बखर की पाँसे, करें ओर दतुआ, सुरया, हैंसिया, कुल्हाड़ी आदि कृषि हथियार बनाते और उन पर धार करते, उन्हें ठीक करतंे। बैलगाडी के चाकांे पर धाऊ चड़ाते थें। शादी के कंगन लाते थें।

बढ़ई-हल, बखर, बैंलगाडी आदि बनाते थे और उनकी मरम्मत करतें थें। शादी में पलाश की लकड़ी का खाम (स्कमभ) बनाते थें। मण्डपाच्छादन के लिए मड़दाऊ लाते थें। मृत्यु पर अर्थी और अस्थि चयन के लिए चिमटा लाते थें।

नाई का काम सेवादार जातियों में सबसे अधिक रहता था। वर्ष भर बाल बनाते थे। शादी मे दोना-पत्तलाें की पूर्ती करते थें। निमंत्रण देते तथा टेरा-बुलाई का काम करते थें। कन्या की शादी में नाईन नेग-चार के अवसरों पर उसकी परिचर्या करती थी। शुभ अवसरों और त्योहाराें पर सौभाग्यवती स्त्रियों के पैंरों में हल्दी लगाकर तथा चिरैंयां निकालकर महावर (आलता) तथा कुमारियों के पैंरों में सादा ढंग से महावर लगाती थी। प्रसूता और नवजात शिशु को एक महीन तक (सोर के दिनों को छाेड़कर) मालिश करती थी। नाई की अधिक सेवाओं के कारण ही उसे खबास (खास-बरदार) कहा जाता था। यह शब्द देश में मुसलमानाें के आगमन के बाद चलन में आया। इसके पूर्व पुराने जमानें में धर के लोगाें के बिना ही नाई और पंण्डित ही कन्या की सगाई पक्की कर आते थें। सगाई के रस्म के बाद वह जाननें के लिए शादी कितनें की हाेगी अर्थात् दान-दहेज के रुप में कितना धन प्राप्त होगा? एक प्रथा थी - पंचो की उपस्थिति में ही वरपक्ष की ओंर से कन्या पक्ष के नाई के सामने रुपयो से भरा एक थाल रखा जाता था और नाई को उसमें से रुपये उठाने के लिए कहाँ जाता था। उसमें से नाई जितने रुपयें उठाता था। प्रति रुपया हजार की शादी होना का संकेत होता था। इस प्रथा काे ‘व्रत उठाना‘ (संकल्प प्रंकट) करना कहा जाता था। उठाये हुए रुपये उसी के होते थें। चाहने पर वह अधिक भी उठा सकता था, परन्तु मालिक के प्रति उत्तरदायित्वबोध के कारण कम से कम उठाता था। मजबूरी में उसे अधिक भी उठाना पडतें थे तो भी मालिक उन्हें स्वीकार करता था। व्रत जैसे उत्तरदायितवपूर्ण कार्य करने के कारण उसके लिए ‘विरतिया‘ जैसा सम्मानपूर्ण सम्बोधन प्रचलित था।

ढीमर का मुख्य काम पानी भरना, वर्तन साफ करना तथा शादी-विवाह में पालकी और डाेला उठाना था। कुम्हार बच्चों के जन्म के समय चरुआ, बाेनी के समय बिजा (खेतों पर बील जे जाने के लिए मिट्टी की गागर) अगती (अक्षय  तृतीय) पूजने पूने (हनुमान जंयती), गोवर्द्धन पूजा के लिए ‘कुड़वारौ, (चार घैला-मझौली गागर) दीवाली के लिए मिट्टी की दिया, गणगौर, महालक्ष्मी, गणेश नौरता के लिए गौर (गौरी) तथा पन्थौला (शिवलिंग) की मूर्तिया, नौरात में पूजन क लिए नौ मालियाँ (बड़ें आकार के दीय ें), बच्चों के खेलने के लिए मिट्टी के गड़िया-गुल्ला, चूलो-चकिया खिलौने, शादी में आवश्यक बर्तन चरुआ, पिटरे, डहरियां, मण्डप, के नीचे रखी जाने वाली बेरी (सात डबला) दावाजे के कौरे में रखे जाने वाले कलश या मंगल घट, मृत्यु के समय आड़ को घैला, अस्थि-चयन के लिए डबला और चिता-भूमि पर रखने को घट लाता था। बच्चा होने पर जच्चाघर में बांधने के लिए झाूमर भी कुम्हार लाता था। कुम्हार की सेवाएँ भी बहुत होती थी।

माली वर्ष भर त्यौहारों पर फूल-दूब की पुरिया रखता था। हरछट (हरषष्टि) की विशेष तरह की पुरिया तथा तीजा (हरतालिका व्रत) को फुलार (कुमुद के फूलाें से बना झूमर) और शादी में दूल्हा-दूल्हिन के लिए खजूर के पत्तों के बने मौर (एक प्रकार का मुकुट) तथा फूल मालाएं लाता था।]

धोबी साेर-सूतक के तथा दीवाली पर घर के सब कपड़े धाेता था। चमार दशहरा-दीवाली की छपाई-लिपाई में सहयोग करता था तथा किसानाें के मरे हुए पशुओं को ठिकानें लगाता था। उनके चमड़े को पकाता था। आधे चमड़ें पर पशु के मालिक का हक होता था और आधे पर चमार का। यदि वह उसके जूते बना कर देता था तो उसे तेल और बनवाई अलग से मिलती थी। विवाह में चमार दूल्हा-दूल्हिन के लिए कनोंरा और कनोंरिया (लाल तूस मढ़े हुए स्लीपरनुमा जूतें) लाता था।

बसोर-महिला बच्चों के जन्म के समय प्रजनन कराती, सोर उठने तक जच्चा-बच्चा को मालिश करती, बसोर सोर उठने के समय, देवी-देवताओं के आयोनन-मय पूजन के समय से लेकर आयुवृद्ध सम्भ्रान्त व्यक्ति की शवयात्रा तक बाजे बजाते थे। शादी के अवसर पर बड़ी मात्रा में भात पसाने के लिए परेना, आवश्यक छबला, टोकरी आदि बांस के बर्तनों के अतिरिक्त लड़के की शादी में मण्डप मारने के लिए बिजना (पंखा) और लड़की की शादी में लड़की के साथ जाने वाले पकवान को रखने के लिए बड़ा टिपरा, खलिहान में अनाज नापने के लिए ढुलिया देते थे।

दर्जी लड़के की शादी में दूल्हें के लिए बागी (एक प्रकार का सुनहले गोटें लगाकर सिला एक अंगरखा, जाे पैर के पंजो तक नीचा होता था। सिलता था। दुलिहन का लंहगा-पोलका सींता था,) नाई माली और दर्जी, शुभ अवसरों पर दरबाजे पर बन्दनवार बांधते थें। कुम्हार और दर्जी, बच्चें के जन्म के दस दिन बाद होने वाले उत्सव ‘दस्टोन‘ में प्रसूतिगृह में बांधने के लिए कलात्मक झूमर लाते थे। ग्रामों में मेहतर की सेवा की कम आवश्यकता होती थी। इस कारण बहुत से ऐसे गाँव है जहां मेहतर हैं ही नही।

इन सभी सेवाओं के लिए इन्हें सेवा उपलब्ध कराते समय ही नेग-दस्तूर के रुप में नकद तथा अखौती के रुप से अनाज, विशेषकर चावल तुरन्त दिया जाताथा। जन्म-मरण, शादी विवाह के सभी अवसरों पर संबंधित लोगाें को सपरिवार भोजन कराया जाता था। साल भर तीज-त्योंहाराे के अवसर पर पावन (सम्बन्धित पूजा का प्रसाद पकवान, पूड़ियां आदि) दिया जाता था। नाई जिस दिन किसान के यहाँ बाल बनवाने जाता था शाम को उसी दिन कलेवा के नाम से पका हुआ भोजन या अनाज दिया जाता था। इन सबके साथ ही रबी और खरीफ की फसलें आने पर किसान इन सबको पूर (अनाज के पौधों का गटठ्ा) या एक पैला (लगभग दस किलो) अनाज देता था।

इस तरह समाज में उत्पादन औंर सेवाओं के दान-प्रतिदान की संश्लिष्ट व्यवस्था थी। नगरो के कृषि व्यवसाय की कमी के कारण सेवाआें के बदले नकद पैंसा कुछ अधिक मिल जाता था। नेग-दस्तूर के रुप में मिलने वाली राशि के तेजी से होते हुए अवमूल्यन और दातव्य राशि में धीरें-धीरें हाेनें वाली वृद्धि ने एक ओर इन जातियों में असन्तोष पैदा किया। दूसरी ओर इनमें अर्थप्रदान दृष्टिकोण के अधिक विकसित हो जाने के कारण सभी कामकाजी जातियां अपनी हरेक सेवा का नकद भुगतान भी चाहने लगी हैं औंर परम्परा से जो मिल रहा है यदि उसे भी छोडना चाहती हैं तो यह स्वाभाविक है कि सेवाएं देने वाला यदि अपनी सेवाओं का नगद मूल्यांकन कर पैसा

वसूलना चाहेगा ताे देने वाला किसान भी पारम्परिक बन्धान क्यों देगा? इस तरह दोनों तरफ असन्तोष की जड़ जम गयी। दूसरी तरफ औद्योगिक क्रान्ति और आधुनिकतावादी दृष्टिकोण पैदा हाे जाने के कारण स्थानीय सेवाओं का महत्व भी धटता जा रहा है फिर भी काफी अंशो में में अभी भी जारी हैं। इनकी उपयोगिता धटने के कारण इनकी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है और असन्तोष भी बढा है।

इस तरह सामाजिक सौमनस्य और सहयोग के वातावरण में दरारें पड़ने लगी हैं। जातिवाद, तथाकथित राजनीति करने वाले लाेग इन्हें निरंतर चैड़ा कर रहे हैं और उनमें उस धास के बीज भी बो रहे हैं जिससें यादवी संधर्ष हुआ था।

अपने पेशों की गन्दगी ओर उसी के अनुरुप अपने रहन-सहन को ढालेने के कारण कुछ जातियाँ, निश्चित ही समाज में पिछड़ेपन के साथ ही अस्पृश्य हाे गया थी। ऐसी जातियों को, देश की नब्ज को ठीक-ठाक समझने वाले, महात्मा गांधी ने हरिजन जैसा पवित्र नाम दिया था और उनके उत्थान के लिए विभन्न कार्यक्रम बना कर उस पर तेजी से अमल किया था। इनके कारण उनकी दशा में परिवर्तन होने लगा था तथा समाज के सोच में भी एक सकारात्मक बदलाव आना शुरु हो गया था। परन्तु उन्हीं में से कुछ लोगाे ने अपने व्यक्तिगत अहंकार की तृप्ति और राजनैतिक स्वार्थो की सिद्धि हेतु गांधी को गालियाँ देकर हरिजनों को उनके कार्यक्रमों से न केवल विमुख किया बल्कि हरिजन उत्थान के लिए कोई विकल्प भी प्रस्तुत नही किया। केवल आरक्षण की भीख मांगने के स्वर को तेज कर दिया।

गाँधी जी द्वारा दिये गये ‘हरिजन‘ नाम को न केवल मैटा गया बल्कि कुर्सीजीवियों की मदद से उनके प्रयोग को गैर कानूनी तक धोषित करवा कर उनको दलित शब्द दिया। दलित अर्थात् कुचले हुए। जब कुचले हुए हैं तो कोई कुचलने वाले भी तो होगें, वे कौन हैं? प्रश्न के इस अहसास को निरन्तर हवा देकर उनमें धृणा औंर प्रतिहिंसा की आग भड़काई जा रही हैं जो सामाजिक सौहार्द को नष्ट कर रही हैं।

उनमें प्रतिहिंसा की भावना से शायद उन्हीं का अधिक नुकसान हो रहा हैं। वे उन्हीं बुराईयों की तरफ लौटने लगे हैं जिनसे, गांधी के प्रभाव से, वे दूर होने लगे थे। 

इससे थाेडी भिन्न स्थिति आदिवासियों की हैं। आदिवासियों के उत्थान के सम्बन्ध में कोई निश्चित नीति नही बनी। इस कारण सरकार का अरबों रुपया खर्च हो जाने पर भी उनकी स्थिती में कोई विशेष परिवर्तन नही हुआ। पहले उन्हें सेठ-साहूकार लूटते थे अब उन्हें सरकारी अंमला लूटता है, जो उनके नाम पर मिलने वाले सरकारी धन को हड़पता है।

इसकी परिणति यह हुई कि नक्सलवादी और पब्लिक वार ग्रुप जैसे दलों का प्रादुर्भाव हुआ जो उन्हें हत्या और लूट के मार्ग पर धकेल रहे हैं। दनके प्रभाव से बिहार आन्ध्र और मध्यप्रदेश का कुछ क्षेत्र काफी अशान्त हो गया है।

तीसरा वह वर्ग है जो अपनी आर्थिक व्यवस्था से संतुष्ट रहने के कारण पढ़ाई-लिखाई से दूर रहा और सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़ गया। उसमें ब्राहा्रण-क्षत्री भी हैं और दूध में पानी, सोने में पीतल, शराब में पानी मिलाकर तथा लम्बी-चैडी जोतों पर खेती कर धन इकटठ्ा करने वाली जातियां भी हैं। राजनैतिक स्वार्थो को दृष्टि में रखकर जातिवादी कूटनीतिज्ञों ने जो नीति उनके उत्थान के लिए बनाई उसका आधार आर्थिक न रखकर जातियां रखा जिसके कारण सामाजिक विद्वेष को बढ़ावा मिला। स्वाभाविक है कि गरीब होने पर भी यदि किसी जाति विशेष में जन्म लेने के कारण किसी को अपनी प्रतिभा का विकास करने का अवसर न मिले और किसी जाति विशेष में जन्म लेने के कारण धनी होने पर भी बजीफा मिले औंर अयोग्य होने पर भी उत्तरोत्तर उन्नति का मौका मिलता जाये तो न केवल वंचित व्यक्ति में बल्कि उसके वर्ग में आक्रोश, व्यवस्था के प्रति धृणा और विद्रोह भावना तो पैदा होगी ही।

चैथा वर्ग अल्पसंख्यक का है। आज की स्थिति में अल्पसंख्यक का मतलब मुख्यतः मुसलमानों से उसी तरह है जैसे दलितों का चमारों से और पिछड़ों का यादवों से।

देश के विभाजन के बाद जो मुसलमान देश छोड़कर नहीं गये थे वे स्थानीय समाज से और भी अच्छी तरह समायोजन कर रहे थे। कारण यह भी हो सकता है कि वे विभाजन की त्रासदी भी देख चुके थे। उनमें बहुसंख्यकों के साथ मिल-जुल कर रहने का संस्कार पहले से ही था। उसकी उपयोगिता को उन्होंने नए सिरे से पहचान लिया था, किन्तु राजनीति के कुचक्र ने उनके समाज को ‘वोट बैंक‘ में बदल दिया। उस समय के एक सबसे बडे़ं और प्रभावशाली राजनैतिक दल ने छठवें दशक में (सन् याद नही है) दिल्ली में एक मुस्लिम कन्वेशन बुलाया, जिसमें पं0 जवाहर लाल नेहरु, सुभद्रा जोशी तथा अन्य कई बड़ें-बड़ें नेंताआें ने ऐसे-एेसे भाषण दिये जिनसे उनमें अपने अल्पसंख्यक असुरक्षित होने का अहसास जगाया गया और यह विश्वास जगाया गया कि उस दल के अतिरिक्त उनका और कोई संरक्षक नही हैं। उसके बाद के दिनों में एक दूसरें दलों ने भी एक सूत्र की उपयोगिता समझ कर मुसलमानों को अपने वोट.-नीति का खिलौना बनाये रखने का प्रयास जारी रखा और उनमें पृथ्कता, असुरक्षा और आशंका का भाव कमजोर नही पड़ने दिया, इसके लियें चाहे उन्हें महमूद गजनवी को ही उनका उद्धारक क्यों न बताना पड़ा हो। इस भ्रम से वे, आधी शताब्दी बीत जाने पर भी, पूर्णतः नही उबर सके हैं।

प्राचीन काल से चली आ रही ग्रामीण जीवन में प्रभावी अनुशाासन, पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और नैतिक आचरण की रक्षा करने वाली संस्था सार्वजिनक पंचायत तथा जातीय पंचायतो की व्यवस्था नष्ट हो गयी। सार्वजनिक पंचायतो का रुप संगठित नहीं होता था, फिर भी अत्यनत प्रभावशाली होती था। जातीय पंचायतो के माते-मुखिया चुने हुए और खानदानी भी होते थे। खानदानी व्यक्ति भी जाति की स्वीकृति के बिना पद पर नही रह सकता था, किन्तु सरकारी पंचायत व्यवस्था ने समाज को बुरी तरह तोड़ दिया है। राजनैतिक वैर, उसी में गुटीया वैर, जातिय वैर, व्यक्तिगत वैर और भ्रष्टाचार को इस व्यवस्था में इस कदर बढ़ावा मिला है कि भ्रष्टाचार पंचायतो का और वैर-विरोध ग्रामीण जीवन का पर्याय लगने लगा है।

इस तरह दंेश सेवा का दम भरने वाले तथाकथित राजनेताओं ने देश की एकता, अखण्डता, दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक शब्दों का जाप करते हुए समाज के सौमन्सय को नष्ट कर उसमें न केवल बैर भावना और कुण्टा भर दी ब्ल्कि, धुसपैठियों, अपराधियों और माफियाओं को संरक्षण दे आशंका और आतंक से भयभीत कर दिया हैं। देश के शीर्षस्थ पदों पर बैंठे लोगाें ने हवाले-धुटाले करके तथा प्रदेशों के उच्च पदों पर बैंठे लोगों ने जनता की कमाई और विदेशी ऋणों से भरे खजानों को बेरहमी से लूटकर भ्रष्टाचार का ऐसा माहौल बना दिया कि आम आदमी की आस्था टूट गयी है। थोड़ी बहुत बची भी है ताे उच्च स्तर की अदालतों में जहां उसकी पहुँ नहीं हैं।

आज न केवल बुन्देलखण्ड बल्कि पूरा देश आपसी वैमन्सय, कुण्ठा, असुरक्षा और डांवाडा ेल आस्था की मानसिकता में जीवन काट रहा हैं। यह देश के समाजिक स्वास्थ्य के लिए भयावह स्थिती है और देश के अधोगामी भविष्य का भी संकेत है। गनीमत है इस देश का आदमी भाग्यवादी है अन्यथा....................।

By- डाॅ0 कैलाश बिहारी द्विवेदी

‘लोरी‘ - लोकगीतों की कस्तूरी

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‘लोरी‘ - लोकगीतों की कस्तूरी


बच्चों को सुलाने-सुलझानें के लिए स्त्रियों के द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत लोरी हैं। स्त्रियों के अनेक भूमिकाएँ होती हैं, माता, बहन, बुआ, दादी, नानी, भाभी, आदि-आदि स्त्री की इन्हीं भूमकियों में लाेरी गायी जाती हैं। स्त्री की एक ओर भूमिका है - ‘पत्नी‘। पत्नी की भूमिका में लोरी गायन निषेध हैं। पत्नी के केन्द्र में प्रणय-भाव हैं जबकि लोरी का अन्तर्गत रस ‘बाल्य‘ है। कबीन्द्र रवीन्द्र के शब्दों में-

‘हमारे अलंकार शास्त्रों में नौ रसों का उल्लेख हैं। पर लोरियों में जो रस प्राप्त हैं वह शास्त्रोक्त रसों के अन्र्तगत नही है। अभी-अभी जोती जमीन से जो गन्घ निकलती है, या शिशु के नवनीत कोमल देह से स्नेह को उबाल देने वाली गन्ध है, उसे फूल, चन्दन, गुलाब, जल, इत्र व धूप की सुगंध के साथ एक श्रेणी में नही रखा जा सकता। सभी सुगन्धों के मुकाबलें में उसमें एक अपूर्व आदिमता है।उसी प्रकार लोरियों में एक आदिन सुकुमारता है। जिसकी मधुरता को को ‘बाल्य‘ रस नाम दिया जा सकता है।

‘बाल्य‘ रस लोरी की प्राण-धार है। लाेरी लोकगीताें की स्निग्ध मुस्कान है। लोरी मातृत्व की सहजता रागिनी है। आदिम माँ के शब्द-लय की लाडली हैं। भाषा और भाव उत्पत्ति के साथ लाेरी की उत्पत्ति को परिभाषित किया गया है। किन्तु भाषा की उत्पत्ति के पूर्व भी माँ के ह्रदय में प्रसव का सुकुमार भाव मौज ूद होता हैं जिसे गुँगी माँ अपने भीतर गुनगुनाती हैं। लोक भल े ही इस े ला ेरी न कहें पर मातृत्व तो इसे स्वीकारता हैं।

मातृत्व स्त्री का अन्यतम रुप हैं। स्त्री-जीवन का सर्वाधिक श्रेष्ठ और सार्थक समय प्रथम गर्भकाल का तीसरा माह होता हैं। गर्भकाल का प्रथम माह अनिश्चिय होता हैं। दूसरे माह में मातृत्वबोध का ऊहापोह रहता हैं। असन्न संकट और सुख की अनुभूतियों की धमा चैकडी मची रहती हैं। वधू-मन में कौख की रेखाएँ कुड़मुडाती हैं। तीसरे माह तक बधु-वन मातृत्व को स्वीकारता हैं। अपने हृदयाकाश में इन्द्र धनुषी स्वप्न उतरता हैं। स्त्री-जीवन में ऐसा बहुमूल्य काल एक ही बार  आता हैं- वह हैं प्रथम गर्भकाल का तीसरा माह। कालान्तर के गर्भकाल सामान्य होते हैं।

लोरी की उत्पत्ति की जमीन और जलवायु आदिम माँ के प्रथम गर्भ काल का यही तीसरा माहीना है। जिसमे ं क्वारी संव ेदना का सिन्दूरी स्पर्श होता है। कोमल भाव और उर्वशी लय का मधु मिलन रहता हैं। रति का सात्विक अभिसार और आंचल की उजली धार का आलिंगन अठखेलियाँ करता है। लोरी में मंत्र-सा सम्मोहन होता है। भौतिक जगत गुरुतव बल से अनुशासित होता हैं। चेतन-सत्य मंत्र शक्ति से अनुशासित होता हैं। किन्तु प्राण-तत्व लोरी की लय पर थिरकता हैं। लोरी मातृत्व का पुष्टतम अनुशासन हैं। आत्म ही नहीं ब्रहा्र भी लोरी के वातसल्य बंधन से बंधा हैं। साध्वी अनसुईया माँ ने त्रिदेंवाे को शिशु बनाकर पालने में डाल दिया था। माता यशोदा की लाेरी सुनकर ब्रहा्र कन्हैया पालनें में झूलनें लगा। सूरदास ने इस वास्तव को भलीभाँति पहचाना है-

यशोदा हरि पालने झुलावै।
हलराबै दुलराय मल्हावै।।
जोय-जोय कुछु गावै।
मोरे लालका आब निदरिया।।
काहे न आनि सुलाबै।‘‘

मातृत्व-बन्धन में बंधकर कृष्ण कैसा कोतूहल करते है। माँ भाव विह्वल है। पुत्र का पालना हिलाती-डुलाती हैं, जो कुछ मन में उमडता है गुनगुनाती है। ‘जोय-सोय‘ कुछ गाती हैं। बालकृष्ण की पलके ढप जाती हैं। यदाकदा अधर हिल उठते है। बाल्य रस का अनूठा परिपाक इस मनोहर झांकी से छलता हैं।

लोरी माँ के प्यार की डोरी है। लाेकगीताे की कस्तूरी हैं। नारी मनकी सारी ममता शिशु को सुलाने में घनीभूत हो जाती हैं। दुनिया भले राग-द्वेष की ज्वाला में जल कर भस्म हो जाये पर माँ का लाडला सुख की नीद सोये कुछ ऐसे ही भाव अवधी लोरी में मुखरित है -

‘‘ आउ रे चिरइआ बन झँझिया लगाइ जा
तोरी झाँझी आगी लागइ
भइया खेलाइ जा, सोबाइ जा‘‘

(अरी चिडिया आ.....................वन में अपना घोसला बनाआे। तुम्हारे घाेसलें में आग लगे, किन्तु मेरे मुन्नें को सुलाजाओ, खिला जाओ।) बघेली लाेरी की अपनी अलग अर्थ छटा है-

‘‘ आउ रे निदिया तइ आउते नही
लाला का हमरे साेबउते नही।‘‘
‘‘ आउ रे चिरइआ तैं परवाना कुलाउ।
तोरे पेटै आगी लागइ लाला का सोबाउ।‘‘

(चिेडिया तुम अपना पंख कड़कडा कर आओ। अरी चिडि़या तुम तो अपनी भूख मिटाने में लगी हाे। तुम्हारी भूख को आग लगे पहले मेरे मुन्नें को सुलाआे।)

By- गाेमती प्रसाद विकल


बुंदेलखंड में राहुल की खाट

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बुंदेलखंड में राहुल की खाट


उत्तर प्रदेश में चुनावी चक्रव्यू का दौर चल रहा है । इसी दौर में कांग्रेस के राहुल गांधी रथ पर सवार होकर निकल पड़े । इस बार के चुनावी संग्राम में उन्होंने प्रशांत कुमार को अपना सारथी बनाया है । चुनावी रण में फतह हासिल करने के लिए बाकायदा शस्त्र और शास्त्र की खोज की गई । पीके के एक सदस्य ने झाबुआ की खाटला (खाट ) बैठक का जायजा लिया । इसके कारण और निवारण को समझा गया , जाटों की होने वाली पंचयात और खाट के उपयोग को समझा गया । इसके बाद एक चुनावी शस्त्र खाट अस्तिव में आया । और तय हुआ की उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी खाट सभा करेंगे । यही खाट लेकर वह बुंदेलखंड में भी आ गए , पर वे यह नहीं जानते थे की बुंदेलखंड में खाट सभा या खाट पंचायत नहीं होती थी । बुंदेलखंड में छत्रसाल के चबूतरे पर पंचायत लगती थी और उसी में समाज के निर्णय हो जाते थे ।

खैर खाट लेकर आ गए तो कोई बात नहीं । देवरिया से दिल्ली तक के 2500 किमी के सफर में ऐसे पड़ाव आते ही रहते हैं की कहीं सामाजिक फैसलों का तरीका कुछ और होता है तो कहीं कुछ और । पर अपने पीके भाई ने तय कर दिया तो उसे मानना गाँधी परिवार के प्रति निष्ठावान हर कांग्रेसी का कर्तव्य है । अब इतने बड़े उत्तर प्रदेश में हर जगह की लोक परम्पराओं को जानने समझने में अपना समय खराब तो नहीं करेंगे पी के भाई । पहले चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाता था , उसी को ध्यान में रख रथ पर लिखवा दिया कर्जा माफ़ , बिजली बिल हाफ ।ये अलग बात है कि अब मुद्दे और देश से ज्यादा जातिवाद के समीकरण पर चुनाव लड़ा जाता है ।

राहुल जी को शायद यह समझाइस भी दी गई की अबकी बार देव स्थलों से दूरी नहीं रखना है । इस कारण जब राहुल गांधी ने बुंदेलखंड की धरा चित्रकूट पहुंचे तो कामदगिरि पहुंच कर सन्त महात्माओ से आशीर्वाद लिया । इस दौरान उनकी बैठने का तरीका कुछ ऐसा था जैसे नमाज के लिए बैठे हो । सोशल मीडिया में यह फोटो आते ही लोगों ने कमेंट शुरू कर दिए । बांदा में उन्होंने मौलाना हजरत रब्बानी का आशीर्वाद लिया । मौलाना ने आयतें पड़कर राहुल के सर पर फूंक मारकर आशीर्वाद दिया । अपने इस बुंदेलखंड के दौरे के दौरान वे स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवार से भी मिले , स्थानीय और राष्ट्रीय महापुरषो और योद्धाओ की प्रतिमाओ पर माल्यार्पण भी किया । महोबा में आल्हा ऊदल की , झाँसी में महरानी लक्ष्मी बाई , झलकारी बाई और चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमाओ पर तो मध्य प्रदेश के हरपालपुर में नेहरू जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया । आम तौर पर कार्यकर्ताओ से दूरी बनाये रखने वाले राहुल गांधी इस बार कार्यकर्ताओ से घुल मिल जाने का प्रयास करते रहे ।

चित्रकूट ,बांदा ,महोबा , मऊरानीपुर ,झाँसी के रोड शो और खाट सभा में राहुल के निशाने पर इस बार बीजेपी ,बीएसपी और समाजवादी पार्टी थी । खाट सभा में किसानों से फ़ार्म भी भरवाए जा रहे हैं जिसमे किसान से नाम ,पता और कर्ज की राशि की जानकारी ली जा रही है । राहुल गांधी लोगों को बताते हैं की कांग्रेस कार्यकर्ता ये फ़ार्म भरवाकर मुझे देंगे , में इन फार्मो को पी एम् को देकर कर्ज माफ़ी की मांग करूँगा , यदि नहीं मानी गई तो सत्ता में आते ही दस दिनों के अंदर किसानों का कर्जा माफ़ कर दिया जाएगा । लंबे चोदे भाषण तो वे सभाओं में नहीं देते पर इस बार वे मोदी शैली में ही प्रधान मंत्री मोदी पर आक्रमण कर रहे हैं । वे लोगों से सवाल करते हैं ,अच्छे दिन आये क्या ? काला धन आया क्या ? खातों में पंद्रह पंद्रह लाख आये क्या ? एक लंबी सी चुप्पी होती है , शुरू होती है आरोपों की झड़ी , जो लगभग हर जगह एक समान होती है । किसानों की दुर्दशा के लिए उन्होंने तीनो को जिम्मेदार ठहराया ।

मोदी सरकार को पूजिपतियो की सरकार बताते राहुल आरोप लगाते हैं की मोदी सरकार ने देश के दस बारह उद्योगपतियों का एक लाख दस हजार करोड़ का कर्जा माफ़ किया है । यह राशि मनरेगा के लिए दिए जाने वाले तीन साल के बजट के बराबर है । वायदा किया गया था की दो करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा ,ढाई साल बाद भी किसी को नहीं मिला । किसान अपनी दाल दस रु किलो बेचने को मजबूर होता है और जब वही दाल बाजार में 140 रु किलो में खरीदना पड़ती है । दुनिया बाहर में पेट्रोल की कीमत गिरी हैं पर जनता से 66 रु प्रति लीटर वसूले जा रहे हैं । और यह सब केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण हो रहा है । बुंदेलखंड की बदहाली के लिए सपा ,बसपा और भाजपा को जिम्मेदार बताते हुए उन्होंने कहा की हाथी ने सब कुछ चर गया , सपा की साइकल का पहिया ही निकल गया । भाजपा पर झूठे वायदे करने का आरोप लाग्या । वे यह बताने से भी नहीं चूके की शीला दीक्षित जब दिल्ली की मुख्य मंत्री थी तो उन्होंने दिल्ली का नक्शा बदल दिया था । हमारी सरकार यहां सत्ता में आई तो प्लान नहीं करके दिखाएंगे । बुंदेलखंड के विकाश के लिए हमारी सरकार ने बुंदेलखंड के लिए स्पेशल पैकेज लेकिन यू पी और एम् पी सरकार सारा पैसा चट कर गई ।

राहुल गांधी खाट सभा में अधिकांशतः लोगों से सवाल जबाब ही करते रहे , सवाल जबाब का यह दौर कुछ लोगों तक ही सीमित रहा ,बाकी सब तमाश बीन बने रहे । उनमे से अधिकाँश इस चिंता में थे किसी तरह यह खाट उनके घर तक पहुंच जाए । हालांकि सवाल जबाब के इस दौर में चित्रकूट के बमरोहा गाँव की एक आदिवासी महिला मुन्नी बाई ने राहुल गांधी से पूंछा की बिजली तो चार घंटे भी नहीं मिलती , कई ऐसे लोग हे जिनके पास ना खेती की जमीन है और ना ही घर है ,? ऐसे में कर्ज माफ़ और बिजली हाफ का क्या करेंगे । राहुल यह सवाल सुन सन्न रह गए कहने लगे धुप बहुत तेज है मुझे आपके सवाल से पसीना आ गया है । सरकार बनने पर सब ठीक हो जाएगा ।

झांसी में राहुल गांधी को बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा । यहां के सर्किट हाउस में मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल तिवारी के नेतृत्व में कार्यकर्ता राहुल का विरोध करने पहुंचे । कार्यकर्ताओ ने नारे बाजी करते हुए कहा की सत्ता बनते ही बुंदेलखंड राज्य की मांग भूल जाते हैं । जबकि बसपा सरकार ने अलग बुंदेलखंड राज्य का प्रस्ताव पास कर दिया था किन्तु केंद्र सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया । सत्ता चली गई तो फिर बुंदेलखंड की याद आने लगी है । बुंदेलखंड को अब पैकेज नहीं राज्य चाहिए । इस दौरान कार्यकर्ताओं और पुलिस में धक्का मुक्की भी हुई ।

मुन्नी का यह सवाल ही बुंदेलखंड की हकीकत बयान करने के लिए काफी है । दरअसल बुन्देलखण्ड देश का एक ऐसा इलाका हो गया है जिसे दो राज्यों में बाँट कर राज्यों को इस इलाके के लोगों और यहां की खनिज , वन, पुरातत्व सम्पदा को लूटने का अधिकार मिल गया है । उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं तो राज नेता घड़ियालू आंशू बुन्देलखण्ड के लिए बहा रहें हैं । राहुल खटिया लेकर आकर बता रहे हैं की हम सत्ता में आये तो किसानों का कर्जा माफ़ कर देंगे बिजली बिल हाफ कर देंगे । अखिलेश डिजिटल लोकतंत्र की बात कह रहे हैं वे 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र और दो लाख से कम आय वालों को फ्री स्मार्ट फोन देने की बात कह रहे हैं । इस काम के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है , लोगों के रजिस्ट्रेशन का काम भी जल्द शुरू होगा \ आगे आगे देखिये और कौन कौन क्या क्या मुफ्त बांटता है । चुनाव के बाद बुंदेलखंड की दशा फिर जस की तस हो जायेगी , तब ना कोई वायदों की बरसात होगी और ना सुधार की गुंजाइस होगी । जो भी विकाश होगा वह बनने वाले मुख्य मंत्री के इलाके में होगा ?

By: रवीन्द्र व्यास

(Book) Bundelkhand Chitravali - बुंदेलखंड चित्रावली : History, Art , Culture and Literature on one platform

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बुंदेलखंड  चित्रावली

(Book) Bundelkhand Chitravali : History, Art , Culture and Literature on one platform

Ambika Prasad DivyaHistory has created History. Now the "Bundelkhand Chitravali" is published. Long awaited publication of History, Art, Culture and Literature is now one one platform.The veteran Author, Artist, Novelist and Poet Late Shri Ambika Prasad Divya is the Author and Artist of this historic Art-Book, "Bundelkhand Chitraval". It is edited by Jagdish kinjalk and Smt. Vijai lakshmi Vibha.

It consists 101 Paintings and Sketches of Great Kings,Queens, Warriors, Great Poets and Historical figures, from Second Century A.D. till Nineteenth Century. Marvelous and hidden historical events and Paintings of History creators, has enriched the value of this great Book. Research work and Paintings of Ambika Prasad Divya, are worth-praising and creating History itself. Divya ji had traveled thousand miles, in Bundelkhand to collect the History and information of Bundelkhand.

It is published by Indira gandhi Rastriya Manav Sangharalaya, Shyamala Hills, Bhopal and Prabhat Publication,New Delhi. It's cost is Rs. 500/- only. The publication of this valuable book, is a historical event in itself.

 

बुंदेल खंड चित्रावली

"बुंदेलखंड चित्रावली’ इतिहास, कला और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण समन्वय ग्रंथ है। इसमें बुंदेलखंड से संबंधित 101 विभूतियों, राजा-महाराजाओं और महारानियों के चित्र हैं तथा उन सभी का संक्षिप्त इतिहास भी वर्णित है।

बुंदेलखंड की धरती ने इतने युद्ध देखे हैं, जितने भारत के किसी अन्य भू-भाग ने शायद ही देखे हों। इन युद्धों ने इतना रोमांचक और अद््भुत इतिहास गढ़ा, इस कारण चित्रों को प्रस्तुत किया जाना अत्यंत आवश्यक था। यह कार्य कोई सक्षम चित्रकार, इतिहासकार और एक विद्वान् ही कर सकता था। दिव्यजी ने यह कर दिखाया। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में हजारों मील की यात्राएँ शामिल हैं। वर्षों की तपस्या और साधना है।

बुंदेलखंड के इतिहास, कला और संस्कृति को समेटकर एक स्थान पर लाना दुस्तर कार्य था। बुंदेलखंड के संदर्भ में इस प्रकार का यह पहला ग्रंथ है। इसके प्रकाशन से बुंदेलखंड के अद््भुत इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ेगा और बुंदेलखंड के अछूते, अनावृत इतिहास संदर्भों की जानकारी भी पाठकों को प्राप्त होगी। विद्यार्थी, शोधार्थी ही नहीं, इतिहास, कला और संस्कृति-प्रेमियों के लिए एक कालजयी कृति।

 

 

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    (कविता) बसंती हवा : Poem by Kedarnath Agarwal, Banda

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    बसंती हवा 

    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ।

     

    सुनो बात मेरी -
    अनोखी हवा हूँ।
    बड़ी बावली हूँ,
    बड़ी मस्त्मौला।
    नहीं कुछ फिकर है,
    बड़ी ही निडर हूँ।
    जिधर चाहती हूँ,
    उधर घूमती हूँ,
    मुसाफिर अजब हूँ।

     

    न घर-बार मेरा,
    न उद्देश्य मेरा,
    न इच्छा किसी की,
    न आशा किसी की,
    न प्रेमी न दुश्मन,
    जिधर चाहती हूँ
    उधर घूमती हूँ।
    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ!

     

    जहाँ से चली मैं
    जहाँ को गई मैं -
    शहर, गाँव, बस्ती,
    नदी, रेत, निर्जन,
    हरे खेत, पोखर,
    झुलाती चली मैं।
    झुमाती चली मैं!
    हवा हूँ, हवा मै
    बसंती हवा हूँ।

     

    चढ़ी पेड़ महुआ,
    थपाथप मचाया;
    गिरी धम्म से फिर,
    चढ़ी आम ऊपर,
    उसे भी झकोरा,
    किया कान में 'कू',
    उतरकर भगी मैं,
    हरे खेत पहुँची -
    वहाँ, गेंहुँओं में
    लहर खूब मारी।

     

    पहर दो पहर क्या,
    अनेकों पहर तक
    इसी में रही मैं!
    खड़ी देख अलसी
    लिए शीश कलसी,
    मुझे खूब सूझी -
    हिलाया-झुलाया
    गिरी पर न कलसी!
    इसी हार को पा,
    हिलाई न सरसों,
    झुलाई न सरसों,
    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ!

     

    मुझे देखते ही
    अरहरी लजाई,
    मनाया-बनाया,
    न मानी, न मानी;
    उसे भी न छोड़ा -
    पथिक आ रहा था,
    उसी पर ढकेला;
    हँसी ज़ोर से मैं,
    हँसी सब दिशाएँ,
    हँसे लहलहाते
    हरे खेत सारे,
    हँसी चमचमाती
    भरी धूप प्यारी;
    बसंती हवा में
    हँसी सृष्टि सारी!
    हवा हूँ, हवा मैं
    बसंती हवा हूँ!

    - केदारनाथ अग्रवाल (Kedarnath Agarwal)

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    Poet Kedarnath Agarwal, Banda - Bundelkhand; India

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    Babu Kedar Nath Agarwal - केदार नाथ अग्रवाल

    Kedarnath-Agarwal-Banda.jpg (400×557)

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    About Kedar Nath Agarwal :
     
    Kedarnath Agarwal (1911–2000) was a renowned Hindi language poet from Bundelkhand. He was a member of the Pragatisheel Lekhak Sangh, a body inspired by the leftist Progressive Writers' Movement. His writings have been translated into English, German, and Russian.
    In recognition of these contributions, Kedarnath Agarwal was awarded the Soviet Land Nehru Prize in 1973. He received the Sahitya Akademi Award in 1986. In 1995, Bundelkhand university conferred an honorary doctorate in literature (D.Litt) upon him. Other accolades included the Hindi Sansthan Uttar Pradesh Puraskar (1981); Tulsi Puraskar (1986); Mythili Sharan Gupta Puraskar (1990–91); and the Sahitya Vachaspati Manad Upaadhi (1990).
     

    Name : Kedar Nath Agarwal 
    Place of Birth :Gram- Kamasin District- Banda , Uttar Pradesh
    Birth : 1 April 1911
    Death : 22 June 2000
    Wife's Name : Late Shri Parvati Devi

    Professions :

    Advocate since 1938 in Banda, U.P.
    DGC Faujdari - 1963-1970
    Also served as President of BAR Association for One Year.

    Language : Hindi, Urdu, English
    Education : BA, LLB, LB & D.Lit. ( Bundelkhand University, Jhansi)

    Social Attachment :

    President of Arya Kanya Intermediate College for many Years
    Sanrakshak of Vinoba Bhave College- Kamasin

    Awards given :

    Soviet Land Nehru Prize in 1973. (सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार)
    Sahitya Akademi Award in 1986. (साहित्य अकादमी पुरस्कार)
    Bundelkhand university -honorary doctorate in literature (D.Litt) 
    Hindi Sansthan Uttar Pradesh Puraskar in 1981. (हिंदी संस्थान पुरस्कार )
    Tulsi Puraskar 1986. (तुलसी पुरस्कार)
    Mythili Sharan Gupta Puraskar 1990-91. (मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार )
    Sahitya Vachaspati Manad Upaadhi (1990)

     

    Kedarnath-Agarwal-Wife.jpgPublished Books:

    Bambay ka Raktasnan
    Gulmehndi Pankh aur Patwar
    Aag Ka Aayeena
    Anhari Haryali
    Khuli Aankhein Khuli Daine
    Pushpadeep
    Kahein Kedar Khari Khari
    Apoorva
    Mar Pyar ki Thapein
    Yug Ki Ganga
    Neend Ke Badal
    Lok Aur Alok
    He Meri Tum
    Jo Shilayein Todte Hain
    Aatma Gandh
    Jamun Jal Tum
    Bole Bol Amol
    Phool nahin Rang Bolte Hain
    and many more....

    Literature Activities :

    Member of 'Pragati Lekhak Sangh'.
    Organized many Kavi Sammelans.

    Childrens :

    Daughter - Shrimati Syam Kumari
    Daughter - Shrimati Kiran Kumari
    Son - Shri Ashok Kumar

    More Photos:

    Kedarnath-Agarwal-ken-river.jpg (250×270)

    Kedarnath-Agarwal-at-banda-home.jpg (300×528) 

    Babu Kedar Nath Agarwal - 1990

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    (News) National Board of Wild Life (NBWL) Standing Committee has given approval to Ken Betwa Phase 1

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    (News) National Board of Wild Life (NBWL) Standing Committee has given approval to Ken Betwa Phase 1


    Setting aside all controversies surrounding the first of river interlinking projects, the National Board of Wild Life (NBWL) Standing Committee has given a go ahead to Phase I of the Rs 9,300 crore Ken-Betwa project, minutes of its 23rd August, 2016 meeting accessed by ET confirm. The project will still need a go ahead from the Forest Advisory committee and a final approval of the Environment minister for implementation - both of which are unlikely to be troublesome to get.

    The river interlinking project to connect the river Ken in Madhya Pradesh with the Betwa in Uttar Pradesh is aimed at improving water supply to the Bundelkhand area. It involves submergence of over 4,000 hectares land in the Panna tiger reserve. The project will result in a direct loss of tiger habitat of 105 sq.km, loss of vulture nesting sites and disturbances- issues raised at the meeting by the NTCA.

    The go ahead has come with the condition by the NTCA that three wild life sanctuaries - Nauradehi, Rani Durgavati and Ranipur Wild Life Sanctuaries - be integrated with Panna reserve to ensure tiger corridor continuity and dispersal routes. The areas of Chhatarpur and South Panna Division shall be notified as the buffer of the protected reserve area due their historical tiger presence.

    The Committee as per the minutes of the 39th meeting of the NBWL Standing Committee "agreed to recommend the proposal" with the conditions prescribed by the Site Inspection team and National Tiger Conservation Authority. The minutes note that the Uma Bharti led Water Resources ministry has agreed to all conditions proposed including integration of sanctuaries, no new mining leases in the tiger dispersal routes and power generation facilities outside the reserve.

    While the project was given an 'in principle' approval at the 38th meeting on 10th May, 2016 without a site visit, there were differences of opinion on the height of the water impounding structures and resulting ecological impact. The minutes state that further consultations were held with the National Tiger Conservation Authority and hydrological experts on the same.

    As per the final views on the combined report, Director Wildlife Institute of India (WII) has indicated that "the group was convinced that lowering the dam height by 10 m will result in non-availability of water for linking because due to nature of the valley, water storage is available only in top few meters, thereby reduction of 32% in water storage".

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    Courtesy: The Economic Times

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