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(News) Bundelkhand Anna Pratha (अन्न प्रथा) : yet another problem for farmers

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 Bundelkhand Anna Pratha (अन्न प्रथा) : yet another problem for farmers


Around March last year, many in Bundelkhand villages began herding their cattle far from home, to abandon them and in the process unburdened themselves.

“I couldn’t have killed them, I had no choice,” says Ram Pal Nishad of Hamirpur’s Gahrauli village, who had left his two cows and a calf near the highway to Mahoba.

He was not able to feed his animals. Or give them water. He hoped they would survive on their own by foraging.

In Bundelkhand, spread across seven districts of Uttar Pradesh and six of Madhya Pradesh, this was the price farmers were paying for the drought and other weather vagaries inflicted on them by nature.

Abandoning the cattle — Anna Pratha — as it is known, is part of the contingency plan that has become a tradition of dark times.

They have done this 13 times in last 15 years, each dry season forcing them to shed the number of cattle to support their families.

“What one can do when there is little to feed the family; there is no fodder, no water for the cattle,” asks Brij Bhan, a farmer of Salaiya Khalsa village near Kul Pahar in Mahoba district. While then it was about abandoning cattle, this time round it is the battle against the cattle.

For after nearly 15 years and 13 droughts, the farmers are expecting a bumper crop. But the fear is the army of uncontrolled cattle could harm their produce and fields.

In Gahrauli, the people have built a wall of dried overgrown bushes, babul and Reunja plants that covers the boundary of the village with some 400 families. A barrier has been put up at the entrance of village and a male member from every household take turns for guarding.

Inside, they have caged some 200 cows and bulls, which they caught close to the village last month.

“Everyone of us are guarding and keeping vigil, if the cattle manage to sneak, they will eat the crop and destroy field after field as they normally do,” says Dhirendra Rajput of Gahrauli.

In fact, the entire Bundelkhand is catching the cattle and keeping them in make-shift shelters. They will be released only after the harvest concludes.

As the battle against the cattle rages in the region, it has taken the sheen off the assembly elections. Taking a cue, the political parties and candidates are also keeping low due to the fear of backlash.

Farmers had been demanding the government to help them get rid of their most frightening scourge. But, the calls went unheeded.

In protest, the farmers created ruckus at the public meeting of chief minister Akhilesh Yadav last month in Hamirpur.

The chief minister assured them to introduce ‘Bhoosa” (fodder) policy to feed the stray cattle, which get into the fields to forage.

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Courtesy: Hindustan Times


जैन भजन Jain Bhajan by पं. देवीदास (बुंदेलखण्ड, दिगौड़ा ग्राम)

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बुंदेलखण्ड के दिगौड़ा ग्राम मे जन्में पं. देवीदास (जैन) द्वारा रचित जैन भजन


संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया!

इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया…!
कोई दुखिया धन बिन, दीन वचन मुख बोले,
भटकत फिरत दुनिया में, धन की चाह में डोले,
इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ! [1]

दौलत का तो भण्डार भरा है, तन में रोग समाया
निशदिन पीयी कड़वी दवाई, कहा करे नहिं काया।
इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ! [2]

तन निर्मल और धन को पाकर, फिर भी रहा दुखारी,
पूजन लगे कुदेवन को नर, पुत्र एक नहिं पाया
इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ! [3]

तन निर्मलऔर धन को पाकर, फिर भी रहा दुखारी,
पुत्र नहीं है आज्ञाकारी, और घर में कर्कश नारी ।
इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ! [4]

तन निर्मलऔर सुलक्षण नारी, पुत्र भी आज्ञाकारी,
तो भी दुखिया रहा जगत में हुआ ना छत का धारी,
इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ! [5]

देवीदास (बो ही जन) हैं सच्चे सुखिया, बिन-इक्षा के धारी,
क्रोध मान माया को तजकर, भये परम वैरागी,
इस संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया !

-- Pt. Devidas Jain

पं. देवीदास के बारे में श्री गणेश वर्णी जैन शोध संस्थान से प्रकाशित पुस्तक देवीदास विलास में विस्त्रित वर्णन मिलता है। वर्तमान में दिगौड़ा (टीकमगढ़, म.प्र.) में भी एक पं. देवीदास शोध संस्थान की स्थापना की गयी है।

(Research) ग्रामीण बुन्देलखण्ड में वैवाहिक सामाजिक रीतियों की अप्रासंगिकता : डॉ. सारदा प्रसाद

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(Research) ग्रामीण बुन्देलखण्ड में वैवाहिक सामाजिक रीतियों की अप्रासंगिकता : डॉ. सारदा प्रसाद


बुन्देलखण्ड क्षेत्र जिसे कहते है वो उ.प्. व म्. प्र्. को मिला के बनप हुआ है और एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर शादी किसी यज्ञ से कम नहीं होती हैप् इस क्षेत्र में कन्यादान सबसे बड़ा दान माना जाता हैप् यहाँ लड़की का जन्म होना लक्ष्मी का घर आना माना जाता है् अगर पहली संतान लड़की हुए तो घर में शुभ समझा जाता है् पर ये भी जाति व्यवस्था का शिकार है् किसी जाति में लड़की का होना सिर झुकाने के बराबर माना जाता है और माँ की अच्छे से देखभाल नहीं होती है् लड़की के पैदा होते ही पूरा परिवार उसकी शादी की चिंता सताने लगती है् उसकी शादी के लिए धन इक्कठा करने में जुट जाते है् कभी कभी ये देखा गया है कि बाप सब बुराईयां छोड़ देता है बेटी के पैदा होते ही और कुछ बाप ऐसे भी मिलेंगे यहाँ जो बेटी पैदा होते ही उन्हें नींद नहीं आती और नशा करने लग जाते है यह सोंच कर कि एक आर्थिक बोझ हो गया् यानि यहाँ लड़की को बोझ भी समझा जाता है् ये बोझ कई तरह का होता है् इनमे से एक है लड़के वालों के सामने घुटने टेकने के बराबरए दहेज़ का दंशए रिश्तों का जालए उल्टा सीधा रिश्तों का जाल ;फसनद्ध् लड़की का रंग रूपए कद और शिक्षाए आदि् वैसे लड़की अगर रुपवती और गुवती हो और अगर बाप धनी हो तो धनवती भी बन जाती है और लड़के वाले ऐसे लड़की वालों को खोजते है् अगर लड़की एकलौती बेटी हो तो उस लड़की का कद लोभी लोग और ऊँचा कर देते हैए और अगर एकलौती संतान हो तो लोभी लड़के वाले तो उस लड़की को धरती की लक्ष्मी ही मान लेते है और फिर क्या रंग क्या रूप श्सब चलता हैश् वाली सोंच में बदल जाता है्

विवाह दो व्यक्तियों का मिलन ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन भी होता है् इन दोनों परिवारों के रिस्तेदारए रहन.सहनए खान पान और सुख दुःख में साथ बटाना भी पड़ता है् शादी के बाद रिश्ता स्थाई और सत्य बन जाता है् शादी कभी.कभी एक समझौता भी होता है और कभी.कभी बोझ भी बन जाती है् अगर दोनों पक्ष एक दूसरे के लिए अपनापन समझें और दोनों की ओर से सहानुभूति और सहायता की झलक दिखे तो ऐसी शादियां दोनों घरों को स्वर्ग बना देती है

जहाँ शादियां दो घरों को जोड़ती है वही कुछ बुराईयां भी होती हैए दोनों परिवार में खलभली भी मचा देती है् बुन्देलखण्ड में शादी के लिए लड़का वाला लड़की के घर कई बार आता जाता है् कभी मामा.मामी देखेंगेए कभी बुवा.फूफा देखेंगेए फिर लड़के के जीजा.जीजी देखेंगे और अब तो लड़के के दोस्त कहा पीछे है् जितनी बार जायेंगे लड़की वाले को एक से बढ़कर एक स्वागत करना पड़ता है् अगर किसीकी सेवा अच्छे नहीं हुए तो रिश्ता तो दूर फिर उस लड़की का अपने किसी रिश्तेदारी में भी नहीं होने देंगे् वैसे अगर लड़का ही अपनी मर्जी से लड़की देखकर शादी करे तो रिस्तेदार और पारिवारिक लोग लड़के का जीना दूभर कर देते है् ये एक सामाजिक बुराई है जिससे लड़की वाले को झेलना पड़ता है् हालांकिए लड़की वाला भी लड़का वाला होता है और लड़की वाला भी किसी लड़की का बाप व रिस्तेदार होता है् लेकिन जब अपनी लड़की की शादी करता है तब उसको याद आता है की वो लड़की वाला है् अगर हर लड़की वाला और हर लड़का वाला ये याद रखे की वो भी ये सब करना चाहता है और नहीं करना चाहता तो सायद ये बात सामाजिक बुराई न लगे् पर जब मैं अपनी बहन बेटी की शादी के लिए दहेज़ देता हु तो उस से कहीं ज्यादा अपने लड़के की शादी में लेना चाहता हु् या

जब मैं दहेज़ देता हु तो मुझे दहेज़ बहुत भारी पड़ता है और जब मैं दहेज़ लेता हूँ तो दहेज़ कम लगता है् बहुत से ऐसे किस्से भी देखे जाते है कि लड़का वाला ये भूल जाता है की वो भी किसी लड़की की शादी करेगा या किया था् सामान्यतः हर शादी में चार मह्त्वपूर् रश्में हैं. फलदान या बयाना या छेंकनाए तिलकोस्तवए टिका व द्वारचारए खोरवा देना जो लड़की वाला करता है और दो मुख्य रश्में है . गोद भराई या ओली करना और गहनों का चढ़ावा करना जो लड़की वाला लड़की के यहाँ ही करता है् ये सभी रश्में लेन देन पर ही टिका होता है् हर बार पैसों को ऐसे गिना जाता है जैसे कोई बैंक केशियर लोन दे रहा हो और लड़का वाला कर्ज ले रहा हो.

ये हुई दहेज़ की बात् उस से भी बढ़कर शादी में सामाजिक बुराईयां और भी है . जैसे बरातियों का बन्दुक और आतिशबाजी लानाए बरातियों का स्वागत पैर धुलकरए मंडप के नीचे पयपुजी होनाए कलेवा में दूल्हे का नाराज होनाए दहेज़ के लिए नोकझोक होनाए लड़की की बहन का दूल्हा के जूते चुराना फिर मनमाफिक मांग पूरा नहोने पर लड़की वालों का लड़के वालों पर प्रतिक्रिया करनाए इत्यादि् और अगर शादी में कोई गुस्सा ना हो तो मानो शादी सफल हुए नहीं् गुस्सा होने वालों में दूल्हा.दुल्हन का जीजाए फूफा और मामा होते है् कुछ वैवाहिक सामाजिक रीतियां जो कुरीतियों बन गयी है कि व्याख्या नीचे करता हूँ.

बारात में बन्दूक और आतिशबाजी का खतरनाक खेल:  यहाँ लड़का वाला ये दिखाने की कोशिश करता है मैं कितना पैसों से और हथियारों से शक्तिशाली हूँ् अक्सर सुना जाता है कुछ लोगों की मृत्यु शादी की फायरिंग से हो गयी् आतिशबाजी का खेल तो और खतरनाक दीखता है जो कि ध्वनि प्रदुष और वायु प्रदुष दोनों बढ़ाता है् इसका ख्याल नहीं अंजान लोगों को और न ही किसी पर्यावर विद्वानों को होता हैण्क्या ये रीति कुरीति नहीं हैध् क्या अब इसकी जरुरत बुंदेलखंड के लोगों को है जहाँ शिक्षा का स्तर और महिलायों और बच्चों का स्वास्थ्य ठीक न हो और खाने को तरश जाते होध् और सबसे बड़ी विडंबना यह कि दोनों पछ के लोग कर्ज भी लेकर ये दिखावा करते है (चित्र.1)

खर्च और कर्ज का खेल:ये जो खर्च और कर्ज का रिश्ता है बहुत ही पेचीदा बन जाता है उन गरीबों के लिए जो ये सब नहीं कर सकते् कभी.कभी दोनों पछ इसलिए मायुश हो जाते है क्योंकि उन्होंने किसी पडोसी के लड़का या लड़की के बराबर खर्च नहीं कर पाए और कुछ लोग ताना मारते है कि मैंने तो पानी की तरह पैसा बहाया अपनी लड़की या अपने लड़के की शादी में शादी में जरुरत से ज्यादा खर्च कहाँ तक कारगर है और ये किनके लिए है् सोचने समझने की बात और इन सब परम्पराओं का हर साल बढ़ता ही नजर आता है.

पैर धोकर बरातियों का स्वागत करने की परम्परा:ये स्वागत लड़की के यहां पहुंचने पर बरातियों का किया जाता है् समय परिवर्तन के अनुसार अब ये सिर्फ दूल्हेके सबसे करीबी ५ रिस्तेदारों को ही धोना पड़ता है् ये काम लड़की का बाप या भाई करता है ;चित्र.2द्धण् इस कुरीति को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि लड़की होना कितना बड़ा बोझ बन जाता है और शर्म लगता है् ये बात भी नहीं पचती है की लड़का वाला जिसको भेजता है पैर धुलाने के लिए वो किस चरित्र का इंसान है् कही कहीं ये देखने को मिला की पैर धुलाने वाला शराब पी रखी होती है उसको पैर धुलाने में अच्छा लगता है और बहुत सा समय एक आदमी पर लग जाता है् वैसे तो ये एक सामाजिक बुराई है पर फिर भी ये सामाजिक परंपरा को लागू रखना चाहते हो तो लड़की वाले का भी ख्याल रखोए और समझो कि हम भी किसी लड़की का बाप व रिस्तेदार हैं् एक परिवार इस कुरीति को छोड़ेगा तो दूसरे भी उसको अपनाएंगे् और धीरे.धीरे सब ख़त्म हो जायेगा् यहाँ पर लिंग भेद स्पष्ट दिखता है और इससे लड़की भी जब ससुराल जाती है तो उसको बहुत सुनना व देखना पड़ता है् अगर यही स्वागत फूल मालाओं और चन्दन व हल्दी के ठीके से किया जाए तो शायद रीति सुखदायी और सम्मानीय व बराबरी का लगे् अगर इतिहास को देखा जाये तो कही मिलता ही होगा क्यों पैर धुलने की प्रथा चली् ये प्रथा उस समय चली होगी जब लोग पैदल व घोड़े और बैल गाडी से बारात लेके आते होंगे् पैर धुलने से थकान दूर होती हैए पैदल बाराती व उनके साथियों की हालत ठीक नहीं होती होगी् जैसे बाल विवाह प्रथा मुगलों और अंग्रेजों से सुन्दर लड़कियों को बचाने के लिए चलायी गयी होगी् लेकिन अब समय के साथ इस प्रथा को बदल देना चाहिएए क्योंकि ये न तो वैज्ञानिक वैध है और न ही सामाजिक प्रासंगिक है.

दूल्हा दुल्हन का पैर पूजना (पयपुजी):इनमे सबसे ज्यादा सामाजिक कुरीतियां जो लगती है वो है पैर धुलना और दूल्हा.दुल्हन का पैर पूजना मंडप के नीचे् ये सिर्फ कुछ भाग में ही होता है उण्प्र् व मण्प्र् के इस क्षेत्र में् यहाँ ये समझा जाता है कि शादी के दिन दूल्हा पर राम की छाया उतर आती है और दुल्हन पर सीता कीए इसलिए पैर पूजन उचित मानते है् ये सिर्फ हिन्दू परंपरा के अनुसार शादियों पर लागू है (चित्र.3) अगर ऐसा है तो हिन्दुयों की हर शादी पर ऐसा ही होना चाहिएए और हर जगह होनी चाहिए जो कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में नहीं होता है् ओडिशाए बिहारए बंगाल में भी नहीं होता तो सिर्फ उण्प्र् व मण्प्र् के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में ही क्यों् ये मुझे सामाजिक कुरीति लगती है जो लड़की वालों को नीचा दिखाने के लिए कुछ स्वार्थी और असमाजिक व्यक्ति ने चलायी होगी् इसमें बुजुर्ग महिला व पुरुष दूल्हा दुल्हन कि पूजा करते है पैर छूकर् ये कौन सा सामाजिक अच्छाई है और कौन सी संस्कृति है जहाँ बुजुर्गो को भी अपने से छोटों के पैर छूने होते है् अगर ये परंपरा है तो किसके लिए हैघ् किसलिए हैघ् क्यों हैघ् कहाँ कहाँ हैघ् ये भी हमको देखना चाहिए् अगर पैर पूजना एक परंपरा है तो सिर्फ कुछ लोगों तक ही सिमित रखा जाये् वैसे इसका कोई औचित्य नहीं है समाज में शिवाय लड़की वाले को नीचा दिखाने के् बुजुर्ग जो चाहे जिस उम्र का हो वो दूल्हे के पैर पूजता है सिर्फ इसलिए की लड़की का दादा.दादीए बाबा.बाबीए चाचा.चचीए मामा.मामी होते है् इनको सिर्फ झुकना पड़ता है सिर्फ लड़की वाले होने से् पैर पूजने का एक और बुरा प्रभाव पड़ता है लड़की और लड़का का सम्बन्ध खोजने में् इस क्षेत्र के लोग इस बात का ध्यान रखते है कि कौन किसका पैर पूजा हुआ है और अगर लड़का वाला किसी लड़की वाले के किसी भी रिस्तेदार का पैर पूजा हुआ होगा वहाँ अपनी लड़की नहीं देगा और न ही वहाँ से लड़की लेगा .

पयपुजी का आर्थिक सम्बन्ध भी होता है् हर लड़की वाला जो पैर पूजता है उसको कुछ रुपयेए गहनेए कपडेए मिठाई व बर्तनए इत्यादि देना पड़ता है् ये सब एकतरह का दहेज़ होता है जो सिर्फ लड़का वाला ही ले जा सकता है् यहाँ ये समझना होगा की पयपुजी दहेज़ की एक सीढ़ी है जो किसी भी तरीके से जितना ज्यादा ले सको जीस रूप में ले सको ले लोए और लड़की वाला इसे रीति समझकर स्वीकार करता रहता है और देता रहता है् अगर आर्थिक पहलु से देखे तो लड़की वाले का घर खाली हो सकता है और कर्ज में डूब सकता है पर लड़का वाले का घर भरता है और फिर भी उसको दहेज़ कम लगता है् शादी में एक पछ आर्थिक मजबूती को प्राप्त करता है और दूसरी तरफ एक घर आर्थिक बदहाली की तरफ चला जाता है् इसलिए हम पयपुजी को रीति नहीं बल्कि दहेज़ को लेने की कुरीति व चालाकी जानना चाहिए.

ये तो शादी के पहले और शादी होने तक का सामाजिक चक्र है् शादी के बाद लड़की वाला कितना दंश झेलता है जैसे बेटी की पहले औलाद की देखरेख लड़की वाला करता है और फिर उसके बाद कुछ उपहार और कुछ नेंग भी भेजना पड़ता हैए जो सामाजिक तौर पर लड़की वाले को ही देना होता है् अगर ऐसा नहीं किया तो ससुराल वाले लड़कीध् बहु का जीना दूभर कर देते है् पर्दा प्रथा कोई कम बुराई नहीं है ग्रामी बुन्देलखण्ड में् यह एक हास्यपद और पागलपन लगता है और ऐसी बकवास और बे आधारहीन रीति है जिसका कोई मतलब नहीं बनता है् सोचो जिस लड़की को कई लोग मिलकर देखे होए बात चीत किये होए उसको शिर से लेकर पैर तक देखे होंए कि आँख कैसी हैए नाक कैसी हैए चेहरा गोल व लम्बा हैए होंठ कैसे हैंए बाल घुंघराले है या नहींए पैर सीधे पड़ते है कि नहींए हाथ व पैर कि उँगलियाँ कैसी हैं यहाँ तक देख कर शादी करते है फिर वही लड़की शादी के बाद उन्ही लोगों को मुंह क्यों नहीं दिखा सकती् ये तो नियत में खोट दिखती है् बेटी और बहु में क्या अंतर है और ये प्रथा किसलिए चली और कब चली थीए और इसका प्रभाव क्या पड़ता है् ये तो बहु बेटियों को मुगलोंए अंग्रेजों और गुंडों से बचने कि प्रथा ही रही होगी जो आज भी चल रही है् फिर ग्रामी महिलायों पर ही क्योंए अनपढ़ और गरीबों कि महिलायों को ही क्योंघ् ये बुन्देलखण्ड में बहुत ही प्रचलित है यहाँ तक कि लड़कीध् बहन पति के सामने अपने बड़े भाई से पर्दा करटीध्घूँघट करती है् इस प्रथा का कोई औचित्य नहीं है समाज में और न ही प्रासंगिक है् कुछ बिना शिर पैर की रीतियों को बंद होना चाहिएए और ऐसा प्रथा चलना चाहिए जिससे दोनों पछों का बराबरी का सम्मान हो् विवाहिता महिलायों को ये अधिकार और स्वतंत्रता होना चाहिए की क्या पहने और क्या नहीं.

खोरवा शौंपाना:खोरवा शौंपाना शादी की अंतिम दहेज़ की रेशम होती है और इसके बाद ये घोषा की जाती है की शादी में पूरा कितना दहेज़ मिला यानी शादी कितने में हुए है् इसी समय हर बारातियों को कुछ धन देके विदाई की जाती है् और लड़की वाला सभी बारातियों से अपनी गलतियों की माफ़ी मांगता है चाहे गलती हुए हो या नहीं् ठीक है ये अपना सामाजिक कर्तब्य है की अपने आये हुए मेहमानों की सेवा और सत्कार करना पर जजमान को भी सम्मान देना मेहमानों का कर्तब्य है.

निष्कर्ष:पैर पूजना और पैर धुलना एक वैवाहिक सामाजिक बुराई है और इसको शिक्षित समाज में सामाजिक रीतिरिवाज से चलाना होगा जिससे कि ये सामाजिकरीती एक कुरीति न बन जाये् ये कुरीति हर जगह नहीं है पर बुंदेलखंड के सभी जिलों में सामान्यतः पाया जाता है् एक ऐसा सामाजिक तंत्र बनाना चाहिए जिससे लड़की वाला को रिस्ते में नीचा नहीं देखना पड़ेगा और लड़का वाला को इतना भी ऊँचा नहीं उठाना चाहिए् इन्ही सामाजिक कुरीतियों की वजह से बहुत से रिस्ते बनते बिगड़ते है् लड़की व लड़का का पिता जी समधी कहलाते हैऔर समधी का मतलब होता है ;सम त्रबराबरीद्ध का धार करने वाले वो चाहे धन दौलत से होए सामाजिक सम्मान हो या इज्जत में बराबरी् तो फिर लड़की के पिता अपने को छोटा क्यों समझे.

इनका कुछ सामाजिक सरोकार हो सकता है पर आज इस रीति का कोई भी औचित्य दिखता नहीं है न ही सामाजिक नजरिये से और न ही आर्थिक और शैक्षिणिक नजरिये से् शिक्षित समाज में इसका कोई भी पहलु सकारात्मक नहीं दीखता है् और भी सामाजिक विज्ञानं के ज्ञाता होंगे जो अपने नजरिये से इसको अपने तरीके से व्याख्या करेंगे् मेरे हिसाब से इस कुरीति को शादी से हटा देना ही अच्छा होगा् जिस तरह जीवन में लड़का लड़की दो पहिए की तरह चलते है उसी तरह समाज में लड़की वाला और लड़का वाला को एक दूसरे की मान सम्मान का ध्यान देना चाहिए ताकि सिविल सोसाइटी की स्थापना की जा सके् ये मेरा अपना नजरिया है सायद किसीको पसंद हो न हो पर मुझे पसंद नहीं है् और मैं इसकी शुरुआत अपनी शादी से करूँगा् एक तरफ लड़की घर की लक्ष्मी है और दूसरी तरफ दहेज़ का दंश लड़की को व लड़की वालों को मानसिक और आर्थिक तनाव देता है जो न ही समाज और न ही सामाजिक प्रक्रिया के लिए अच्छा नहीं है और न ही होगा.

शोधार्थी:
डॉ. सारदा प्रसाद
क्षेत्रीय विकास अध्ययन केंद्र
सामाजिक विज्ञान संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयए नई दिल्ली .67
 

बुन्देलखण्ड : कल, आज और कल - आलेखों का प्रस्तुतीकरण एवं संगोष्ठी (Bundelkhand : Kal Aaj aur Kal)

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बुन्देलखण्डः कल, आज और कल - आलेखों का प्रस्तुतीकरण एवं संगोष्ठी

Bundelkhand : Kal Aaj aur Kal


बुन्देलखण्ड विमर्ष

प्रिय बन्धु,
बुन्देलखण्ड विमर्ष की कार्यक्रम-श्रंखला के अन्तर्गत वर्ष 2017 मे बुन्देलखण्ड क्षेत्र कीे वर्तमान स्थिति को लेकर एक प्रकाशन  की योजना बन रही है। पूरे विगत दो दषकों के अन्तराल मे समग्र क्षेत्र की स्थिति के संदर्भ मे एक भी नवीन प्रकाशन  दृष्टिगोचर नही हुआ । विष्वविद्यालयों मे संभवतः कोई षोध-प्रबंध लिखे गये हों, उनके बारे मे आम जानकारी नही हो पाती। अतः इस विषय पर चर्चा तथा आलेखों के प्रस्तुतीकरण हेतु एक संगोष्ठी प्रस्तावित की जा रही है । संगोष्ठी का आयोजन ऐसे सभी प्रतिवेदनों को एक मंच देने का प्रयास है ।

संगोष्ठी 26 एवं 27 March 2017 मे छतरपुर मे आयोजित की जायेगी |

प्रस्तावित प्रकाशन  बुन्देलखण्ड: कल ,आज और कल बुन्देलखण्ड के समग्र प्रतिवेदन के रूप मे षोध-छात्रों , योजनाकारों , नियोजकों, पर्यावरण चिन्तकों एवं लेखकों के लिये उपयोगी विषयवस्तु प्रदान कर सकता है। प्रकाशन  की रूपरेखा संलग्न है जिसके अन्तर्गत आलेख प्रस्तुतकर्ता अपने रुचि का विषय चुन सकते हैं।

बुन्देलखण्ड के विद्वानों,वैज्ञानिकों, षोधार्थियों, लेखकों तथा समाजकार्य मे लगे सभी इच्छुक महानुभावों से मेरा सप्रेम निवेदन है कि कृपया विषय से संबंधित अपने आलेख मुझे डाक अथवा ईमेल द्वारा  तक निम्न पते पर प्रेषित कर दें।

कार्यक्रम स्थल की पुष्ट सूचना आपको एक माह पूर्व  मिल जायेगी।

बुन्देलखण्ड संसाधन अध्ययन केन्द्र ,
51, सनसिटी, छतरपुर 471001 म.प्र.
ईमेलः brsc2008(at)gmail.com

Phone: 07682-244005
Mobile: 09425814405 , 09452508251

इस पुस्तकाकार प्रकाशन  के अन्तर्गत 3 विभाग प्रस्तावित हैं:

1. पृष्ठभूमि
2. स्थिति
3. आकलन

1. पृष्ठभूमि

  • संक्षिप्त इतिहास
  • टोपोग्राफी: स्थलाकृति
  • मूल प्राकृतिक परिवेष: वन,पर्वत,नदी, बारहमासी सरितायें एवं नाले, मृदा एवं खनिज सम्पदा
  • मानव-निर्मित संसाधन- कुंये, झीलें, सरोवर , बावड़ी एवं तालाब
  • कृषि , बाग-बगीचे, पषुपालन
  • कुटीर एवं गृह-उद्योग
  • जलवायु

2. स्थिति

  • वर्तमान बुन्देलखण्ड
  • प्राकृतिक परिवेष: वन , पर्वत , जलसंसाधन ( नदी, नाले), भूमि-मृदा खनिज़
  • मानव निर्मित जल-संसाधन: बॉंध , बराज और नहरें
  • कृषि , औद्यानिकी एवं पषुपालन
  • उद्योग एवं उद्यमषीलता
  • जलवायु मे परिवर्तन

3. आकलन

  • संसाधनों की स्थिति: अदूरदर्षी नियोजन एवं विकास
  • उपेक्षित संभावनायें - अक्षय संपदा का विनाष
  • जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभाव
  • समस्यायें एवं जन-भावनायें
  • जीवनषीलता हेतु अनिवार्य विकल्प

उपरोक्त विषयवस्तु मे कोई संषोधन या संवर्द्धन के सुझावों का स्वागत है। कृपया सूचित करें। 

आपके स्वीकृतिपत्र तथा आलेख की प्रतीक्षा मे, वर्ष 2017 के लिये शुभकामनाओं सहित,

भवदीय
भारतेन्दु प्रकाष

अन्ना प्रथा ​से परेशान किसान

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अन्ना प्रथा ​से परेशान किसान


बुन्देल खंड में अन्ना प्रथा अब किसी विपदा से काम नहीं रह गई है । सदियों से चली आ रही इस प्रथा में पहले चैत्र मॉस में फसल कटाई के बाद , गोवंश को खुला छोड़ा जाता था , पिछले दो दशको में इस प्रथा को किसानों ने हमेशा के लिए अपना लिया । हालात ये बने खुले छूटे जानवर सड़को पर घूमने लगे , फसलों को उजाड़ने लगे , किसानों में आपसी संघर्ष होने लगे , मसला सरकार के मुखियाओ तक पहुंचा , लोक सभा में भी इसकी गूंज सुनाई दी ,कुछ ने मसले के निपटाने के जातन किये पर कुछ ने इस पर ध्यान देना ही जरुरी नहीं समझ । देखा जाए तो समस्या के मूल में बुंदेलखंड के किसानों के आर्थिक हालात , सरकार की नीतियां ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं ।

बुंदेलखंड इलाके में यह प्रथा थी की जब चैत्र मास में फसल कट जाती थी , और खेत खाली हो जाते थे ,उस समय जानवरो को खुला छोड़ दिया जाता था । इसके पीछे किसानों का एक कृषि ज्ञान काम करता था । खुले खेतों में इन जानवरो के विचरण करने और चरने से उन्हें अपने खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद मिलती थी । खेत में इन जानवरों का गोमूत्र और गोबर खाद का काम करता था । हालात बदले और किसानों ने मशीनो से दोस्ती कर ली , गो वंश से नाता तोड़ लिया । नतीजा ये हुआ कि दूध देने वाले जानवरो के अलावा सभी को खुले मे छोड दिया गया । गोवंश को जब अधिकांश किसानों ने हमेशा के लिये खुला छोड़ा तो यही जानवर किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है ।

इस लावारिश पशु धन को जहां पानी मिला वहां अपनी प्यास बुझा ली जो खेत मिला उसी से अपने पेट की आग बुझा ली । जब खेतो की फैसले उजड़ने लगी तो किसानों को ये समस्या किसी विपदा से कम नहीं जान पड़ी । किसान को अब अपनी फसलें बचाने के लिए दोहरी मेहनत करनी पड़ने लगी , पहले से ही नील गाय से परेशान किसान अब इस गो वंश पर लाठियाँ लेकर जुट पड़ा । एक गाँव से दूसरे गाँव भगाने लगा , इस का असर ये हुआ की गाँव के गाँव आपस में दुश्मन होने लगे । लोगों में लाठियां चलने लगी ,गाली गलौच होने लगी । छतरपुर जिले के खजुराहो के पास ललगुवाँ गाँव में ऐसा ही एक मामला कुछ दिनों पहले सामने आया था । जब एक किसान के खेत में गायों का जंद घुस गया ,। खेत मालिक इस पर इतना नाराज हुआ की अपने परिजनों के साथ गांव में निकालकर गाली गलौच करने लगा । गाँव के एक समझदार नेता और वकील रतन सिंह ने किसी तरह उसे समझाया तब कहीं जा कर मामला निपटा ।

फरवरी के पहले हफ्ते में हमीरपुर जिले के ऐंझी गाँव और महोबा जिले के बसौठ गाँव के लोगों के बीच जानवरो को लेकर जम कर संघर्ष हुआ । खरेला थाना पुलिस को जैसे ही इस संघर्ष की जानकारी लगी वह मौके पर पहुंची । पुलिस ने ऐझी गाँव के लोगों पर लाठियाँ बरसाई , इस संघर्ष में चार किसान घायल हो गए । खबर पाकर ऐझी गाँव की महिलाये भी संघर्ष के लिए मैदान में आ गई , किसी तरह मुस्करा थाना प्रभारी ने माले को निपटाया । बाद में घायल किसानों ने महोबा के पुलिस कप्तान से शिकायत कर खरेला थाना की पुलिस पर कार्यवाही की मांग की ।

बुंदेलखंड इलाके में भटकते पशुधन के कारण हर साल औसतन 25 से 35 फीसदी फसल नष्ट होती है । किसानों के सामने यह समस्या इतनी जटिल है की वे इसके लिए कई बार सूबे के मुखिया , अपने इलाके के नेता विधायक और सांसद ,प्रशासन तक से गुहार लगा चुके हैं । बांदा के सांसद ने लोकसभा में और इसी जिले के तिंदवारी विधायक ने विधान सभा में अन्ना जानवरो का मुद्दा उठाया था, पर हालात जस के तस बने रहे । इस गंभीर समस्या के जनक किसानों की मज़बूरी ये है की बढ़ते परिवार और बटवारे के कारण उनकी खेती की जमीन तो घटती गई । प्रकृति के प्रकोप ने भी उनकी समस्याओ को और बढ़ाया खुद के अनाज और जानवरों के लिए भूसे की समस्या उत्पन्न हो गई । , खुद उनके और उनके परिवार के लिए दो जून की रोटी की जुगाड़ मुश्किल हो गई , मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ा सो अलग ऐसे में जानवरो को खुला छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प उन्हें नहीं समझ आया । किसानों के सामने इसके अलावा एक और भी समस्या थी गाँव की चरनोई भूमि के पट्टा वितरण की जिसके कारण गाँव की चरनोई भूमि समाप्त हो गई और जानवरो के लिए खेत ही सहारा रह गए ।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुंदेलखंड इलाके में इस समस्या से निपटने के लिए हमीरपुर और बांदा जिले में अभियान शुरू करवाया है । दिसंबर में कनकुआ में अपनी चुनावी सभा में सी एम् अखिलेश यादव ने महोबा जिले के किसानों को भरोषा दिलाया था की हमीरपुर जिले की तरह महोबा जिले के किसानों को अन्ना पशुओं की समस्या से जल्द से जल्द छुटकारा दिलाया जाएगा । इस समस्या के निराकरण के लिए झाँसी के भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के अधिकारियों से चर्चा की जाएगी ।

हालांकि कुछ इलाको में इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं । बांदा जिले के बबेरू क्षेत्र के पिंडारण गाँव में किसानों ने १२ बीघा में एक गौशाला बनाई , किसानों ने चन्दा जोड़कर गाँव के प्रधान को ६० हजार रु दिए , उसने भी पंचायत निधि और मनरेगा से ढाई लाख रु जुटाकर गौशाला तैयार की है । छतरपुर जिले के बारीगढ़ नगर पंचायत और नगर वासियों ने मिलकर एक अनुकरणीय पहल की है। इन गौवंश के लिए नगर पंचायत और नगर वासियों ने मिलकर इनके चराने की और भोजन की व्यवस्था की है। पार्षदों, अध्यक्ष और ,उपाध्यक्ष ने अपना मानदेय इन गौवंश के लिए समर्पित कर दिया है । इनके लिए 7 चरवाहे नियुक्त किये गये है जो दिन में इनहे चराने का काम करते है । नपा ने जन सहयोग से लगभग 2 हजार गौवंश के दाना पानी की भी व्यवस्था कर एक मिसाल कायम की है। नपा की इस पहल से किसान भी खुश हैं,की उसकी फसल जानवरो से बच गई ।,

मध्य प्रदेश सरकार इस मसले पर मौन व्रत धारण किये है , इसके पीछे तर्क दिए जाते हैं की इस समस्या से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने पहले ही गौशालों की व्यवस्था कर रखी है । पर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में बनी ये गौशालाएं किसी अभिशाप से कम नहीं हैं । सरकार के जिन कृपा पात्रों के हाथो इन गौशालों की जिम्मेदारी है वे सिर्फ कागजी ज्यादा हैं यथार्थ में कम । कुछेक गौशालों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश गौशालाएं लोगों के कमाई का जरिया बन गई हैं । पिछले साल पन्ना के पवई इलाके की अहिंसा गौशाला इसका जीता जागता प्रमाण था । जहां मौत के बाद भी गौ माता को गौशाला में सड़ने के लिए छोड़ने का और दो दर्जन से ज्यादा गायों का मामला सामने आया था ।

इसे बदलते दौर की विडम्बना ही कहेंगे की जहां गौ वंश की पूजन से वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित बनाया जाता था वहीँ आज गौ वंश को किसान आज मुसीबत के तौर पर देखने लगा है । जरुरत है इस समस्या के सकारात्मक समाधान की ,। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री की पहल पर मालवा इलाके में दॆश का पहला गौ अभ्यारण्य शुरू किया गया है \ 2017 तक इस अभ्यारण्य से गौ मूत्र से बने कॉस्मेटिक उत्पादों का काम शुरू करने की योजना भी है । सवाल बुंदेलखंड के लोगों का सिर्फ यही है क्या बुंदेलखंड में इस तरह के अभ्यारण्य नहीं खोले जा सकते जिससे लावारिश गौ धन के नस्ल सुधार का अभियान भी जुड़ा हो । पर शायद सियासत के संख्या बल की कमी के कारण उसकी आवाज नहीं सुनी जाती ।

By: रवीन्द्र व्यास

कटरा गाँव को सांसद जी गोद लिए है लेकिन आदर्श कुछ भी नहीं है !

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कटरा गाँव को सांसद जी गोद लिए है लेकिन आदर्श कुछ भी नहीं है !

केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो प्रधानमंत्री मोदी ने देश के गाँवो को बड़ा सपना दिखाया.उन्होंने अपने साथ-साथ सभी निर्वाचित सांसद को निर्वाचन क्षेत्र के दो गाँव गोद लेने की योजना बनाई.इस बहुउद्देशीय केन्द्रीय कार्यक्रम को 'आदर्श सांसद ग्राम योजना'कहा गया.भारत सरकार की ग्रामीण विकास मंत्रालय की अधिकारिक वेबसाइट में देश के सभी दूरस्थ गाँवो में ये सांसद आदर्श गाँव खरे मानकों के साथ चस्पा है.स्वयं पीएम मोदी ने काशी-बनारस के जैतापुर गाँव को गोद लिया है और उसका कायाकल्प भी किया.आज उस गाँव में गरीबों को सुन्दर आवास,बिजली,पानी,ईधन की सुविधा मुहैया कराई गई है यह अलग बात है कि काशी की मुसहर जाति की गरीब,दलित बस्ती में आज भी उजाला नहीं पहुंचा है.बड़े शोरगुल के साथ शुरू की गई इस योजना का आज शायद ही निर्वाचित सांसद पुरसाहाल ले रहे हो.सब कुछ कागज में चकमक है या बिलकुल भी नहीं है.यूपी बुन्देलखण्ड के चित्रकूट मंडल के जिला बाँदा की नरैनी तहसील के कालिंजर दुर्ग स्थित कटरा गाँव को चित्रकूट-बाँदा सांसद भैरोप्रसाद मिश्रा ने गोद लिया है.जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर पन्ना-बाँदा हाइवे मार्ग में कटरा गाँव ऐतिहासिक स्थल है.इसके साथ ही वे कर्वी-चित्रकूट के हन्ना बिनैका गाँव को भी गोद लिए है.नरैनी के कटरा गाँव को इस मायने में भी महत्वपूर्ण समझा जा सकता है कि यदि इसको आदर्श गाँव में बदल दिया जाए तो पर्यटन की नजर से खाश चन्देल कालीन करीब हजार साल से पहले का निर्मित कालिंजर दुर्ग स्थानीय रहवासियों की आजीवका का केंद्र बन सकता है. सूत्र बतलाते है कि कालिंजर किले में 800 राजाओं की क्रीडास्थली रही है.इसमें चन्देल राजा विद्याधर,पृथ्वीराज चौहान,महमूद गजनी,बादशाह अखबर,औरंगजेब,शेरशाह सूरी,हुमांयू आदि अपना शौर्य दिखा सके लेकिन इस किले को जीत सिर्फ शेरशाह सूरी ही सका.यह उसके लिए इतना घातक साबित हुआ कि उसको अपने प्राण देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी.कटरा ग्राम पंचायत इस पहाड़ी किले की प्राचीर के नीचे बसी है.सांसद आदर्श गाँव में गोद लेते वक्त गाँव वालों ने सपना देखा था कि अब उनके भी दिन बहुर जायेंगे,अच्छे दिन आएंगे. बीजेपी की केंद्र सरकार को तीन साल होने को है लेकिन यह कटरा गाँव आज भी आदर्श नहीं बन सका है.इसकी सूरत देखकर आदर्श शब्द बौना साबित होता है.संवाददाता ने जब इस गाँव की नब्ज टटोली तो गाँव वालों ने मन का गुबार निकाल दिया.

कटरा में मूलभूत सुविधा का आभाव है- तीन हजार की आबादी वाले सांसद आदर्श गाँव कटरा में यूपी सरकार की तमाम योजना पंचायती राज के माध्यम से चलती है जैसे अन्य गाँव में.साथ में अब तो यह वीआईपी श्रेणी का आदर्श गाँव भी है! इस गाँव में विकास के नाम पर मुख्य मार्ग में सीसी सड़क,बिजली,आंशिक पानी,एक प्राथमिक,एक जूनियर स्कूल,पीएचसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय अधिकृत जन शिक्षण संस्थान की एक शाखा खुली है.जेएसएस का कार्यालय खुलते गाँव वालों ने नहीं देखा,इसका मकसद गाँव के किशोर-किशोरी को रोजगार उन्मुख प्रशिक्षण देना है.यहाँ कुल 1800 मतदाता ने इस यूपी चुनाव में मत डाला है.कुशवाहा बाहुल्य गाँव ने इस बार भी लोकसभा चुनाव की तरह अधिकतर संख्या में बीजेपी के नरैनी विधानसभा प्रत्याशी राजकरन कबीर को वोट किया है.गाँव में सोनकर,हरिजन,मुस्लिम जाति है.

सांसद भैरोप्रसाद के विकास कार्य- तीन साल हुआ सांसद जी को गाँव गोद लिए. इस बीच वे गाहे-बगाहे गाँव आये और वापस चले गए.आदर्श गाँव का बोर्ड भी गाँव में नहीं लगा है.उन्होंने तीन वर्ष में हाल ही में यूपी चुनाव को देखते हुए 10 बोर करवा दिए है लेकिन अभी उनसे पानी नहीं निकला है.चुनाव बाद आचार संहिता हटेगी तो शेष कार्य किया जायेगा.अपनी सांसद निधि से उन्होंने गाँव को आर्थिक मदद नहीं दी है ऐसा ही कुछ चित्रकूट के गोद लिए गाँव हन्ना बिनैका के साथ हुआ है.

बुजुर्ग महिला-पुरुष को नहीं मिलती वृद्धावस्था पेंशन- कटरा गाँव की रहने वाली विधवा मनकी कुशवाहा उम्र 65 वर्ष कहती है कि पति के मरे दो साल हो गए,एक बेटा आनंदी और बहु रेखा है.6 बीघा परती जमीन है,छोटे नाति का पेट पालने के लिए सयाना बेटा दिल्ली चला गया है.मुझे पेंशन नहीं मिलती,घर में शौचालय नहीं है,मनकी का कच्चा घर उसके अच्छे दिन की बात कहता है.गाँव के बेटालाल कुशवाहा उम्र 60 वर्ष ने बात करने पर बतलाया कि गाँव में 150 बुजुर्ग आज भी पेंशन से बेदखल है.आगे चलने पर इसी गाँव के बाबू बतलाते है मेरे तीन लड़के है.गाँव में रोजगार नहीं है तो पंजाब गए है ईट-भट्टे में काम करने,नहीं जायेंगे तो भोजन कौन देगा ? वे कहते है गाँव से लगभग 1000 युवा पलायन किया है जो काम की तलाश में बाहर ही रहता है,खेती में पूरा नहीं पड़ता. सिलबट्टे में टमाटर की चटनी पीस रही ग्राम प्रधान रामबहोरी को अपने अंदाज में तंज देते हुए 70 वर्षीय शांति कहती है 'भवनिया मर नहीं जात है' ! जब से जीता है कभी झाँकने नहीं आया.मेरे 6 लड़के है,दो बहु घर में है छोटे घर में सब कैसे रहे इसलिए बेटे परदेश गए है काम से.

शौचालय, बजबजाती सीसी सड़क,पलायन,जल संकट से निजात कैसे मिले-

रोजगार के आभाव में गाँव से हो रहा बेतहासा पलायन देखकर युवाओं के हाल को समझा जा सकता है.गाँव के उन्मेद कहते है गाँव में बरात घर नहीं है,शादी-ब्याह में सबको दिक्कत होती है.पहले सब आपस में सहयोग करते थे पर अब समय वैसा नहीं रहा.गाँव का सफाई कर्मी कभी आ जाये तो बड़ी बात है,आपके आने का संजोग है कि आज वो गाँव में है.किसानों के सामने सबसे अहम समस्या पानी की है,यहाँ की ज्यादातर खेती परती है,बारिश ही एकमात्र चारा है.वर्ष 2012 में इस गाँव में इस गाँव को 82 शौचालय स्वीकृत हुए थे जो कागज में बनकर रह गए.आज 3200 रूपये के शौचालय पर 12000 रूपये दिए जा रहे है बावजूद इसके गाँव में हर घर को शौचालय नहीं मिल सका है. इसकी जाँच मंडल आयुक्त के पास आज भी लंबित है.

कालिंजर को पर्यटन हब बना दे तो बदल सकती है कटरा की तस्वीर-

सांसद आदर्श गाँव कटरा को अगर रोजगार के लिए ही सही खजुराहो की द्रष्टि से पर्यटन हब में तब्दील कर दिया जावे तो यहाँ की तस्वीर बदल जाएगी.इस गाँव से लगे दुर्ग कालिंजर के चारों तरफ पर्यटन स्थल है मसलन चित्रकूट,पन्ना टाइगर रिजर्व,झाँसी दुर्ग और खजुराहो.नरैनी से कालिंजर-पन्ना मार्ग की जर्जर हालत बहुत कुछ बयान करती कि विदेशी तो छोड़िये गर स्थानीय लोग भी दुर्ग देखने आये तो उन्हें कमर के दर्द सहने को तैयार रहना चाहिए.साथ ही सुरक्षा की गारंटी.कालिंजर दुर्ग के ऊपर आपार हर्बल मेडसिन (दवा) उपलब्ध है जो ग्रामीण के लिए आजीवका का साधन बन सकती है.दुर्ग में स्थित प्राचीन नीलकंठ का मंदिर,कोटितीर्थ सहित तीन बड़े तालाब,मृग धारा,अन्य बर्बाद होते महल जो दस किलोमीटर के दायरे में फैले है ये सम्पदा कटरा की किस्मत बदलने को काफी है.पर न तो सपा-बसपा विधायकों ने और न अब गाँव को गोद लिए सांसद भैरोप्रसाद मिश्रा ने आबाद करने की जमीनी कवायद की है.

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By: आषीश सागर दीक्षित

Ashish Sagar Dixit

 

Mangal turbine : Bundelkhand Farmer's ingenuity failed by State

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Mangal turbine : Bundelkhand Farmer's ingenuity failed by State

Mangal Singh is a 70-year-old farmer scientist who had received the admiration of top development officials and technocrats for his work nearly three decades ago. However, he has been left struggling since.

Singh’s brainchild is called the Mangal turbine. When he first built it, his ancestral village Bhailoni Lodh in Lalitpur district (in the Bundelkhand region of Uttar Pradesh) had an unending stream of visitors, including several top officials. B.K. Saha, then chief secretary of Madhya Pradesh, said that the turbine was cost effective, ecologically benign and had promising capacity to save on electricity and diesel. Another senior official, T.P. Ojha, the former deputy director general (engineering) of the Indian Council of Agricultural Research, commended the turbine for its “great promise and possibility of lifting river water for irrigation, fisheries, forestry and drinking purposes.”

A study by IIT Delhi and Vigyan Shiksha Kendra on water resources of Bundelkhand had said in 1998, “the Mangal turbine would prove a boon for fulfilling the energy needs of irrigation, agro-processing etc. in the rural sector where low water exists in the rivers/nallahs.” It called the turbine “a fine example of people’s inventiveness”.

Sarla Gopalan, an advisor to the erstwhile Planning Commission, visited the demonstration site on March 3, 1993, and called the device “an excellent example of energy conservation” while strongly recommending its popularisation.

Certificate_-_Civil_SocietySeveral MPs have commended the work of Mangal Singh and have rooted for it. In 2013, the prestigious Hall of Fame Award of Civil Society magazine was presented to Singh by Aruna Roy for his work.

However, despite these plaudits, Singh has experienced only neglect, victimisation and harassment since, which in turn led to a spate of allegations and petitions. To settle the matter, B.K. Sinha, the secretary of rural development under the Government of India, asked B.P. Maithani, former director of the National Institute of Rural Development, to inquire into the various issues in 2010. Maithani, along with another expert, visited Singh’s village and work area and studied the relevant documents, and submitted his evaluation.

This Maithani report concluded, “It is clear from the above account that sh. Mangal Singh was harassed and harmed in the process of implementation of the project…” and that “there is no case against Sh. Mangal Singh, who needs to be compensated for the losses suffered…”. The report also detailed how compensatory and remedial action could be taken.

However, officials tried to implement these so shoddily that Singh has been left still struggling for justice.

When he comes to Delhi from Bundelkhand he can be seen moving from one office to another, his ageing body burdened by a bagful of files and a laptop. He has told this author several times that he has lost hope. Despite his age, he has gone to many areas where there was some hope of installing his turbine, but conditions have been adverse: he has often had to travel with poor health, often using his own dwindling resources to meet expenses.

But all is not lost – yet. Singh continues to display the potential to guide a well-formulated program of installing a large number of his turbines, which in turn can lead to a useful reduction in greenhouse gas emissions as well as costs for farmers. As both these objectives have been becoming more significant by the day for contemporary India, there is a strong case for undoing the treatment accorded him.

Singh describes his turbine thus (paraphrased for clarity): The water-wheel turbine consists of a water wheel firmly mounted on a steel shaft and supported by two bearing blocks fixed on foundation supports. The shaft is coupled with a suitable gearbox through couplings for stepping up the speed of rotation. The output shaft of the gearbox is coupled on one end with a centrifugal pump for lifting water and the other end is mounted with a suitable pulley for deriving power for operating any machine.”

Singh adds that the “design of this water-wheel turbine is simple. It is available in different sizes to meet varying requirements. Operating this water-wheel turbine pump-cum-PTO [power take-off] machine is very easy as anyone can operate it by opening the wooden or steel gate valve. The machine is stopped by stopping the flow of water through the gate.”

He says his invention can be “used for pumping water from rivulets and streams on which it is installed. This machine can be used in addition for cottage industries like operating flour mills, sugarcane crushing, threshing and winnowing, oil expelling, chaff cutting, etc. By linking it to a generator, it can also provide electricity.”

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Courtesy: The Wire

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दमोह शहर में नवरात्रि परमा एवं हिन्दू नव वर्ष कार्यक्रम

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दमोह शहर में नवरात्रि परमा एवं हिन्दू नव वर्ष कार्यक्रम


दमोह। बड़े हर्ष का विषय है कि आज हमारे दमोह शहर में नवरात्रि परमा एवं हिन्दू नव वर्ष के अवसर पर प्रथम बार देश के सुप्रसिद्ध देवी भजन गायक लखबीर सिंह लक्खा मां बड़ी देवी मंदिर के निर्माण को पूरा कराने के उद्येश्य से दिनांक 29/03/2017 दिन बुधवार को तहसील ग्राउंड दमोह में देवी जागरण हेतु आप सब के बीच पधार रहे हैं । इस कार्यक्रम को भव्यता प्रदान करने के लिए शहर को भगवा रंग के ध्वज,झंडियों,पंपलेटों,एवं होर्डिंग से सजाया जा रहा है । इस कार्यक्रम की मुख्य विशेषता यह है कि यह संपूर्ण कार्यक्रम एक विशेष आयोजन समिति द्वारा किया जा रहा है एवं एकत्रित होने वाला संपूर्ण दान मंदिर निर्माण के कार्य में अर्पित किया जाएगा । एवं लक्खा जी का यह कार्यक्रम समस्त भक्तगणो के लिए निःशुल्क है। इस कार्यक्रम में महिलाओं एवं परिवार के सदस्यों के बैठने के साथ.साथ सुरक्षा एवं यातायात व्यवस्था का संपूर्ण ध्यान रखा गया है एव प्रोग्राम को देखने के लिए अलग अलग स्थानों पर एल.ई.डी. की व्यवस्था भी की गई है । आयोजन समिति के सदस्यों द्वारा लोगों से से अधिक से अधिक संख्या में पहुॅंचने एवं बड़ी देवी मंदिर के निर्माण में अधिक से अधिक दान देने की अपील भी की गई है।

BY: Anurag Gautam, Damoh


UP Govt likely waive off 100% Farmer loans in Bundelkhand

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UP Govt likely waive off 100% Farmer loans in Bundelkhand

The BJP government is likely to give 100% loan waiver to farmers of Bundelkhand region who have been facing drought-like situation for the past several years. In the other regions, the party is likely to assess the need of farmers before extending the benefit as per its election manifesto for UP elections.

"We are committed to fulfil the promise of writing off crop loan of farmers that we made in our manifesto. It will happen soon," newly appointed finance minister Rajesh Agarwal told TOI.

"All farmers irrespective of their land holdings would get the benefit of the government's

Talking to TOI soon after chairing a high-level meeting of finance department to discuss the modalities so that maximum number of farmers could be cover under the government's loan-waiver scheme, Agarwal declared that all farmers of Bundelkhand whether big, small or marginal would get the benefit under the scheme which would be announced soon.

In reply to a question, the finance minister said that the government was considering all options of mopping up money for this waiver scheme -- borrowings from the market, loan from the Government of India and pooling in money from the state's revenues.

"Bundelkhand farmers have suffered a lot in the last season due to the inclement weather. Therefore, the BJP government is committed to their welfare," he said. At present, there are 2.3 crore farmers out of which 2.15 crore are small and marginal.

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Courtesy: Times of India

बजरंग धाम खैजरा, दमोह में हनुमान जन्मोत्सव

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बजरंग धाम खैजरा, दमोह में हनुमान जन्मोत्सव

 
दमोह नगर के सिद्ध क्षेत्र बजरंग धाम खैजरा कंुवरपुर में हनुमान जन्मोत्सव का 159 वां जन्मोत्वस कार्यक्रम 11 अप्रैल दिन मंगलवार को प्रतिवर्ष के अनुसार मनाया जायेगा।
 
जिसमें सुबह 8 बजे से सुन्दर काण्ड पाठ 10 बजे से हवन यज्ञ प्रारंभ होगा जो शाम 6 बजे तक चलेगा दिन में 6ः30 बजे से भव्य भंडारे एवं प्रसाद विरतण होगा
 
आप सभी धर्मप्रेमी बंधु सादर आमंत्रित हैं।
 
इस अवसर पर आकाशवाणी एवं टीव्ही कलाकारों द्वारा भजन संगीत का कार्यक्रम चलता रहेगा।
 
विशेष में सिद्ध क्षेत्र श्री बजरंग धाम खैजरा वाले हनुमान महाराज का प्रकट्य सन् 1858 में हनुमान जन्मोत्सव के दिन स्वंय ही भू गर्म से हुआ जिन्हे स्वंय भू मनोकामना सिद्ध विग्रह कहा जाता हैं।
 
जिनके दर्शन का हनुमान जन्मोत्सव के दिन बड़ा विशेष महत्व होता हैं। अतः आप सभी भक्तों से विन्रम निवेदन हैं कि आपस सभी राम भक्त दर्शन लाभ लेकर जीवन धन्य करें।
 
संयोजक मंहत स्वामी प्रहलाद दास महाराज राष्ट्रीय महामंत्री राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण न्यास अयोध्या आयोजक सिद्ध बजरंग धाम सेवा समिति दमोह ने सभी से अधिक से अधिक संख्या में धर्मलाभ अर्जित करने की अपील की हैं। 
 
By: Anurag Gautam

(Article) अस्तित्व खोता जा रहा है संडे

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अस्तित्व खोता जा रहा है संडे

 

संडे का जन्म 18 वी शताब्दी के अंत का माना जाता है। अंग्रेज  गुलाम भारत के मजदूरों से हफ्ते के *सातों दिन* काम लेते थे और इतनी मेहनत करवाते थे कि वह घर जाते, खाना खाते और सो जाते थे । *वर्ष के लगभग 365 दिन इन मजदूरों की किस्मत जैसे लिख सी गई थी* कि इनका काम मजदूरी करना और खाना खाना था। इन्हें एक दिन का आराम मिले और वह दिन अपने परिवार,रिश्ते,नातेदारों के साथ बिता सकें यह उनकी एक बड़ी आवश्यकता थी। साथ ही उस दिन आराम करके वे बाकी दिनों की थकान भी दूर हो सकें। 

हफ्ते के किसी *एक दिन छुट्टी* की मांग को लेकर नारायण मेघाजी लोखंडे द्वारा अंग्रेजों के लिये इस आशय का प्रस्ताव भेजा । इसके साथ ही मजदूरों ने लोखंडे जी के साथ मिलकर छोटे मोटे आन्दोलन शुरु किये ।शुरुआत में तो यह आंदोलन अपना असर नहीं छोड़ सका ।लेकिंन धीरे धीरे एक दिन छुट्टी की मांग को लेकर आंदोलन तेज हुए और कई वर्षों तक लगातार आंदोलन चले।माना जाता है कि 1890 में *अंग्रेजों ने सप्ताह में एक दिन छुट्टी के प्रस्ताव को मंजूरी दी।*

और पहली बार दस जून को रविवार की छुट्टी घोषित हुई और यहीं से भारत में संडे को अवकाश दिन माना जाता है ।संडे यानि रविवार का काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी में  एक अलग सा महत्व हो गया। अंग्रेजों की गुलामी में काम करने वाले मजदूर हफ्ते में एक दिन की छुट्टी पाकर एक दिन के लिये अपने आप को अंग्रेजो से स्वतंत्र सा मानकर इस दिन खुद को अपनी सीमाओं में रहकर कुछ भी करने के लिये स्वतंत्र थे।  इस दिन ये मजदूर मजदूर न होकर किसी के पति ,किसी की पत्नी ,माँ ,बाप,बेटा,बेटी,दादा,दादी,चाचा,चाची आदि होते थे । इस दिन उंगलियां मिलकर मुट्ठी का रूप ले लेती थीं।यह दिन अब एक ख़ास दिन हो गया था ।इस दिन ज्यादा से ज्यादा समय मजदूर अपने परिवार को देते थे, अपने परिवार के साथ रहते थे आपस में एक दुसरे का सुख दुख बांटते थे । यहीं से रिश्तेदारों में एकजुटता भी आने लगी थी। जहां लोग वर्षो अपने रिश्तेदारों से नहीं मिल पाते थे रविवार की छुट्टी से ये सब होने लगा । वहीं इसमें बचे कुछ समय में मुहल्ले या गांव के लोग आपस में मिलने लगे ,इकट्ठे होने लगे। लोगों के बीच प्रेम बढ़ने लगा । इसके साथ ही गुपचुप गुपचुप इसी बहाने अंग्रेजों से मुक्त होने की योजनाऐं भी बनने लगी । लोग मिलने लगे और धीरे धीरे सप्ताह के सातों दिनों में रविवार का कद बढ़ गया ।रविवार अपने चरम पर आ गया था ।धीरे धीरे लोगों ने इसे अपनी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बना लिया ।

 21 वीं सदी में टेक्नॉलाजी की दुनिया शुरू हुई। टेक्नोलॉजी से फेसबुक,व्हाट्सएप्प, इंस्ट्राग्राम,टिवटर जैसी एप्लिकेशन उपलब्ध कराई ।यह वह समय था जहाँ समाज में व्याप्त भौतिक वस्तुओं का तो विकास होने लगा लेकिन समाज को बनाने वाले लोगों पर भी इसका असर देखा जाने लगा । फेसबुक,व्हाट्सएप्प, इंस्ट्राग्राम,टिवटर का उपयोग समय की बचत करके समाज को आगे ले जाना था लेकिन टेक्नोलॉजी के आने से लोगो को अपनी वुद्धि का उपयोग काम हो गया जिससे लोगो में तनाव खत्म होने लगा ।साथ ही समय की बचत भी होने लगी ।लेकिन 21वी सदी के शुरुवाती दशक में फेसबुक ,व्हाट्सअप ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी ।और लगातार इनका विकास हुआ । नये नये फीचर्स आये और बच्चों के लेकर वुजुर्ग तक अब इसमें अपना काम छोड़कर इसमें समय दे रहे है । सदी में यह दांव उलटा पड़ने लगा । अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। लोग पूरी तरह से फेसबुक,व्हाट्सएप्प, इंस्ट्राग्राम,टिवटर पर अपना समय दे रहे है। अन्य टेक्नोलॉजी से  होने वाले कार्य भी अब पूरी तरह से उसी पर निर्भर हो गए है , अगर इलेक्ट्रॉनिक चीज में थोड़ी भी प्रॉब्लम आ जाये तो बड़े से बड़ा काम भी रुका रहेगा। और किसी को थोड़ा भी समय मिला तो वह सोसल मिडिया पर चला जाता है । यहीं से कार्य का भार बढ़ने लगा ... इसकी भरपाई करने के लिये लोगों ने रविवार को भी कार्य करना शुरू कर दिया। देखा जा रहा है कि जितना अधिक कार्य का जिम्मा होगा वह अपने दिमाग को फ्री करने के लिये उतना अधिक सोसल मिडिया पर देगा ,इससे समय की बर्बादी के साथ साथ छुट्टी का पता नही चलता की यह यह समय घर पर देना था कि ऑफिस में । और अगर कोई रविवार को जैसे तैसे कर के घर पर रुक जाए तो वह अपना 100% योगदान सोसल मिडिया पर देने की कोशिस करता है।अब लोगो के लिये रविवार सोमवार से कोई फर्क नही पढता है ।

*आज की स्थिति में अब रविवार भी 'सोमवार' है काम ,ऑफिस,बॉस,बीबी,बच्चे बस ये जिंदगी है।दोस्त से दिल की बात का इजहार नहीं हो पाता। पहले वाला वो रविवार अब नही आता।*

 टेक्नोलॉजी की इस दुनिया में पैसे कमाने के चक्कर में कई क्षेत्र ऐसे भी है जहां पर कई प्रकार के कार्य रविवार को ही  होते है । इस दुनिया में समय ने तो अपनी रफ़्तार पकड़ ली लेकिन समाज इसमें अपना चैन ,नींद, आराम, घर,परिवार ,रिश्तेदार सब कुछ खोता सा जा रहा है ।अब रविवार वो रविवार नहीं रहा जिसका पहले सभी के लिये इन्तजार रहता था । अब *डॉक्टर,वकील,पुलिस ,पत्रकारिता* आदि जैसे ऐसे क्षेत्र है जहाँ कभी कोई रविवार नहीं सब दिन वर्किंग डे हैं। मैं उन मालिकों और अधिकारियों का धन्यवाद करता हूँ जो आज भी रविवार को सन्डे नही बल्कि रविवार के रूप में मानते है और अपनी कंपनियों कार्यालयों की छुट्टी मनाते हैं । देखना होगा की रविवार अपने आप को बचाने के लिये कब तक संघर्ष करता है और अपने अस्तित्व को बचाये रखता है।

 

By: Anurag Gautam, Damoh

 

 

बुंदेलखंड में जल कुंड और जल धारा से प्यास बुझाने को मजबूर लोग

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Bundelkhand-water-crisis-1.jpg (768×576)वो 2013 का साल था , मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका भी चुनावी रंग में रंगा हुआ था | इस  चुनाव के प्रचार के दौरान  मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह  जगह जगह  मंच से  लोगों को और  महिलाओं को विकाश के सपने दिखा  रहे थे | उन्ही स्वप्नों में उन्होंने बुंदेलखंड की महिलाओ को एक सपना जल का भी दिखाया था | " अब हमारी माताओ और बहनो को पानी के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा , अब उन्हें दूर हेंड पम्प या कुए  तक पानी भरने नहीं जाना पडेगा , अब ऐसी व्यवस्था होगी की टोंटी खोली और पानी हाजिर " | उनकी यह बात महिलाओं को खूब भाई और दिल खोल कर महिलाओं ने कमल का बटन दबाया और कमल मध्य प्रदेश और बुंदेलखंड  में फिर खिला दिया | तीन वर्ष पांच माह बीत जाने के बाद भी  बुंदेलखंड के लोग शिवराज के सपने को याद कर स्वप्न लोक की सैर कर लेते हैं | क्योंकि उनके जीवन में तो आज भी पानी की त्रासदी भोगने की विवशता है |

मध्य प्रदेश के  बुंदेलखंड के हालात स्वयं अपनी कहानी बयां कर रहे हैं की प्रदेश के मुखिया के मुख से निकली बात का कितना असर हुआ है |  पिछले दिनों अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था जिसमे सागर और पन्ना जिले की बंद नल जल योजनाओ के संचालन और संधारण के लिए निविदा प्रकाशित हुई थी | ९ मई तक आन लाइन टेंडर जमा करना था | पन्ना जिले के पांच विकाश खण्डों की ८५ बंद नल जल योजनाए और सागर जिले की तीन विकाश खंडो की 57 नल जल योजनाओ के लिए टेंडर आमंत्रित किये गए हैं | अब आप कल्पना कीजिये मध्य प्रदेश की सरकार और उसकी लोकस्वास्थ्य मंत्री पेयजल के संकट से निपटने के लिए कितनी संजीदा हैं | यह हालात उस इलाके के हैं जहां की जल समस्याओं को लेकर देश के तमाम समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में जनवरी माह से ही ख़बरें आने लगी थी | एम् पी के बुंदेलखंड इलाके के सागर संभाग के जिलों की हालत तो ये है की टोंटी से पानी तो दूर की बात है हेंड पम्पों से भी पानी नहीं मिल रहा है | महिलाये और बच्चे भी सुबह से शाम तक पानी की जुगाड़ में घूमते रहते हैं | छतरपुर ,पन्ना ,टीकमगढ़ और दमोह ,सागर जिला के अनेकों गाँव के लोग  दुर्गम जल श्रोतों से पानी लाने को मजबूर हैं |  
 

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दमोह जिला में जबेरा जनपद क्षेत्र के   बनवार - घटेरा  इलाके में एक स्थान है  सिद्ध धाम , इस धाम की गुफा के अंदर पाषाण शिलाओं के बीच पानी का एक कुंड बना है | लोगों की मान्यता है की इस कुंड में कभी पानी कम नहीं होता है | यहां आस पास के गाँव के लोग और श्रद्धालु अपनी प्यास बुझाते हैं | जब की आस पास के कई किमी इलाके में पानी का कोई और श्रोत  नहीं है | कुंड की ख़ास बात ये है की इस कुंड से सिर्फ पवित्र हाथों से ही पानी निकाला जा सकता है , अपवित्र हाथ या अशुद्ध पात्र के जल  स्पर्श होने पर जल सूख जाता है | इस कारण लोग नारियल के पात्र से अपने जल के बर्तन भरते हैं | लोगों की ये भी मान्यता है की जब अपवित्रता के कारण जल सूख जाता है तो लोग इस स्थान की पवित्रता बनाये रखने की ना सिर्फ शपथ लेते हैं बल्कि क्षमा याचना भी करते हैं | जिसके बाद यहां जल धारा पुनः प्रगट होती है | 
 
असल में इस जनपद क्षेत्र के अधिकांश गाँव पानी के लिए परेशान रहते हैं | पर यह भी प्रकृति का  एक  वरदान है की यहां सिद्ध धाम के अलावा चुड़का सिद्ध धाम भी जंगल में है ,इसके  आस पास भी पानी का कोई श्रोत नहीं है किन्तु जल धारा चट्टानों के बीच  प्रवाहित होती रहती है | इस जनपद क्षेत्र के दर्जनों आदिवासी गाँव के लिए प्राकृतिक जल श्रोत ही उनके जीवन का सहारा है| 
 
 
जिले के नरसिंहगढ़ से  सिद्ध धाम पहाड़ी पर पत्थरों के बीच से पानी की धारा बहती रहती है | इसी के नजदीक एक  छोटा सा कुंड बना है जिसे लोग तुळु की झिरिया भी कहते हैं | हमेशा पानी से भरा रहने वाला  यह कुंड लोगों के लिए एक बड़ा सहारा है | इसी के समीप पंचायत द्वारा खुदवाया गया कुआ अब गाँव भर के लोगों की प्यास बुझा रहा है |  
 
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बटियागढ़ विकाश खंड अंतर्गत आदिवासी ग्राम पंचायत शहजादपुरा के गीदन गाँव की 400 लोगों की आबादी बून्द बून्द पानी के लिए परेशान है | गाँव में लगे पांच से ज्यादा हेंड पम्पों ने जबाब दे दिया है | गाँव वालों को ५०० फिट नीचे उतरकर ३ किमी दूर जंगल में नाले के पास से पानी लाना पड़ता है| आदिवासी गाँव जलना के हेंड पम्पों ने भी जबाब दे दिया है | इस गाँव का भी सहारा जंगल में पत्थरों के बीच बने  कुंड से पानी लाना पड़ता है | इस छोटे से कुंड तक पहुँचने के लिए  गाँव वालों को 40 -50 फिट नीचे उतरकर दो किमी तक का सफर तय करना पड़ता है|                                             

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जब हेंड पम्प जबाब दे देते हैं , नदी नाले और कुँए सूख जाते हैं तब बुंदेलखंड की इन पाषाण शिलाओं से बहती जल धारा कई गाँवों की प्यास बुझा देते हैं | छतरपुर जिले में ही पठा गाँव  के आदिवासी पहाड़ से नीचे उतारकर पत्थरों के बीच से बहती जल धारा से अपनी प्यास बुझाते थे | इस गाँव में ऊपर तक चढ़ पहली बार कलेक्टर रमेश भंडारी  पहुंचे थे , गाँव की चढ़ाई और खड़े पहाड़ पर लोगों को पानी ले जाते देख उनकी संवेदनाये भी जाग्रत हो गई | उनके आदेश पर गाँव में पम्प से पानी पहुंचने  लगा है | पम्प से पानी स्थाई तौर पर गाँव के लोगों को मिलता रहे वे यही कामना करते हैं | बक्स्वाहा विकाश खंड का मल्हार गाँव  की कहानी भी कुछ कुछ पाठापुर से मिलती जुलती है फर्क इतना है की पाठा गाँव में खड़े पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है और इस गाँव में गाँव वालों ने सीडी नुमा जुगत बना ली है | यहाँ प्रशासन ने कुछ साल पहले नल जल योजना बनाई थी पर वह भी बेहतर जल श्रोत के अभाव में उपयोगी नहीं रही |          
 
दरअसल पानी के नाम पर पैसा भी बह रहा है ,प्रचार भी खूब हो रहा है , पर नहीं हो पा रहे हैं तो सिर्फ सार्थक प्रयास | 
 
BY: रवीन्द्र व्यास 

बुंदेलखंड में गिरता जल स्तर (Depleting Water Level In Bundelkhand)

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मध्य प्रदेश का यह बुंदेलखंड इलाका भी  भू -जल  दोहन में अग्रणी रहा है | हालात ये बने की ग्राउंड वाटर के मामले में यह  इलाका  भी डार्क जोन में पहुँचने का ख़तरा मंडराने लगा है  | पर यहां के हालात अजीब हैं  बुंदेलखंड के इन जिलों में एक ओर जहां जल स्तर में गिरावट ने स्थितियों को और चिंताजनक बनाया है वहीँ सरकार के प्रयासों पर यहां के अधियकारियों ने जम कर पलीता लगाया है |  सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज और मुख्यमंत्री नल जल योजना के माध्यम से  गाँव में नल जल योजनाए शुरू कराई थी |  पर गाँव की इन योजनाओं के सुचारु संचालन में ना अधिकारियों की रूचि थी और ना ही गाँव के सरपंचों की | गाँव के सरपंच इन योजनाओ में घटिया सामग्री को जिम्मेदार मानते हैं | इन हालातों में बुंदेलखंड के सागर संभाग की आधी से ज्यादा नल जल योजनाए ठप्प पड़ी हैं | केंद्र सरकार ने जरूर गिरते जल स्तर के सुधार के लिए 231 करोड़ रु की धन राशि उपलब्ध कराई है | 
 पिछली बार टीकमगढ़ जिले के निवाड़ी ब्लॉक को छोड़ कर बुंदेलखंड में जम कर वर्षा हुई थी | वर्षा से तमाम जल श्रोत लबालब भर गए थे , इसके बावजूद बुंदेलखंड में जल स्तर का गिरना  एक गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है | असल में प्रशासन के प्रयास कागजी और सतही ज्यादा नजर आते हैं ,| जिला के  कलेक्टरो  के तमाम निर्देशों के बावजूद सम्बंधित विभागों ने स्टॉप डेम पर गेट लगवाने की जरुरत नहीं समझी , और ना ही अन्य तरीको से स्टॉप डेमो पर पानी रोकने का प्रयास किया | नतीजतन बुंदेलखंड के छोटे नालों , नदियों  से पानी अविरल बहता रहा , जिसका परिणाम ये हुआ की जो स्टॉप डेम जल स्तर बढ़ाने में सहायक हो सकते थे वे बेकार साबित हुए | नतीजे में  सागर संभाग में छतरपुर और टीकमगढ़ जिले में जल स्तर में सर्वाधिक गिरावट आई है |  बुंदेलखंड के अन्य जिलों में जहां 5 से 10 फीट  की जलस्तर में  गिरावट आई है वहीँ  छतरपुर और टीकमगढ़ जिले में यह गिरावट 10 से 22 मीटर  की आई है |  
 

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सूर्य देव  की कृपा  से तपते बुंदेलखंड  में  बचा खुचा जल भी दिनों दिन गायब होता रहा | सागर  संभाग के छतरपुर जिले में जल स्तर को लेकर सबसे ज्यादा चिंताजनक हालत बने | छतरपुर जिले के 20 फीसदी हेंड पम्प , 50 फीसदी बोरवेल , 65 फीसदी जलाशय और 30 फीसदी कुओं ने जबाब दे दिया | इसी तरह  दमोह जिले में 10 फीसदी हेंड पम्प , 30 फीसदी  बोरवेल, 60 फीसदी जलाशय और 46 फीसदी कुए,  पन्ना जिले के 11 फीसदी हेंड पम्प ,   5 0 -50  फीसदी बोरवेल वा  जलाशय , 14  फीसदी कुँए  , टीकमगढ़ जिले के 9 फीसदी हेण्डपम्प , 40 फीसदी बोरवेल , 48 फीसदी जलाशय ,25 फीसदी कुँए ,  और  सागर जिले में 10 फीसदी हेंड पम्प 30 फीसदी बोरवेल , 40 फीसदी जलाशय  और 30 फीसदी कुओं का जल स्तर जबाब दे चुका है | इन जिलों में इन पर आश्रित आबादी  जल की  भीषण त्रासदी भोगने को मजबूर है | सबसे चिंताजनक बात यही है की पर्याप्त वर्षा होने के बावजूद प्रशासनिक और जन लापरवाही के कारण वर्षा जल का बेहतर प्रबंधन करने में हम असफल रहे | जिसके चलते वर्षा जल बहता रहा और हम सब भू - जल दोहन में जुटे  रहे जिसके चलते इन जिलों के जल स्तर में व्यापक गिरावट दर्ज की गई |    
 
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जल संकट से जूझते टीकमगढ़ जिले के निवाड़ी ब्लाक में  लोग 300 से 500 रु में पानी का टेंकर खरीदने को मजबूर हैं | यहां दो तीन दिनों में मात्र 20 मिनट के लिए पानी प्रदाय किया जाता है | निवाड़ी ब्लाक की इस  समस्या को देख कर समाजवादी पार्टी ने अपना राजनैतिक लाभ तलाश लिया है | पार्टी नेताओं ने  7 टेंकरो को निवाड़ी की जनता की सेवा में लगा दिया है | टीकमगढ़ जिले की 353 नल जल योजनाओ में से 215 नल जल योजनाए बंद पड़ी हैं |  दमोह जिले की 347  में से 121  नल जल योजनाये बंद पड़ी हैं | यह जिला मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया का इलाका है , इस जिले में अधिकाँश वनांचल की आबादी दुर्गम पहाड़ों ,पठारों की जल धाराओं और जल कुंडो पर निर्भर है | मध्य प्रदेश शासन की लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री  कुसुम मेहदेले के जिले में भी नल जल योजनाओ की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है | जिले की 339 नल जल योजनाओ में से दो सौ से ज्यादा बंद बताई जा रही हैं | हालांकि जिले की 87 नल जल योजनाओं को संचालित और संधारण करने के लिए टेंडर हो चुके हैं | छतरपुर जिले के बक्स्वाहा क़स्बे में रोजाना 20 हजार रु से ज्यादा का पानी बिकता है | पानी बेचने वालों में यहां के अधिकांशतः वे लोग हैं जो अपने आपको समाज सेवी कहलाने में गर्व अनुभव करते हैं | ऐसे लोग १७ टेंकरो के माध्यम से रोजाना पानी बेंचते हैं | जिले की 385 नल जल योजनाओं में से मात्र 195 नल जल योजनाए ही चालू बताई जा रही हैं |                                              

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 सागर संभागीय मुख्यालय होने के बावजूद जल त्रासदी से जूझ रहा है | इस जिले की 664 नल जल योजनाओ में से 250 से ज्यादा नल जल योजनाए बंद पड़ी हैं|  गिरते जल स्तर के कारण जिले में 119 नल जल योजनाओ के जल श्रोत ही सूख गए हैं , वहीँ  1600 हेंड पम्प ने पानी देना बंद कर दिया है | 10 बिजली कनेक्शन के कारण , 42 पम्प खराब होने के कारण वा 39 योजनाए पाइप लाइन की खराबी के कारण 10 योजनाए चलने काबिल ही नहीं मानी गई हे और 30 नल जल योजनाए ऐसी हैं जो सरपंच साहब की लापरवाही के कारण बंद पड़ी हैं | मतलब साफ़ है की 121 नल जल योजनाए ऐसी हैं जिन्हे थोड़े से प्रयास से शुरू किया जा सकता है , पर यह करे कौन |  प्रशासन ने ४०  पंचायतों को नल जल योजनाए चालू करने लिए 67 लाख रु दिए हैं , मतलब हर पंचायत १ लाख 67 हजार 5 सौ रु |  इस राशि का कितना सदुपयोग हुआ और कितना दुरूपयोग यह जानने का समय किसी के पास  नहीं है | जब संभागीय मुख्यालय का यह आलम है तो संभाग  जिलों के हालात को समझा जा सकता है |                  
                                             
जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने नेशनल ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट स्कीम के तहत सवा तीन सौ करोड़ की राशि स्वीकृत की है | इस योजना के तहत सागर संभाग के उन 9 विकाश खंडो में जलस्तर बढ़ाने का काम होगा जहां जल स्तर अत्याधिक तेजी से नीचे पहुंच गया है | सागर संभाग के सागर ,छतरपुर जिला के छतरपुर , राजनगर ,नौगांव  दमोह जिला के ,पथरिया ,टीकमगढ़ जिले के  बल्देवगढ़ ,निवाड़ी ,पलेरा , और पन्ना जिले के अजयगढ़ विकाश खंड में भू जल स्तर बढ़ाने के लिए पांच विभाग काम करेंगे | जल संसाधन ,ग्रामीण विकाश ,कृषि विभाग , लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी ,और भू -जल सर्वेक्षण विभाग   तालाबों , स्टॉप डेम , नाला , बावड़ियों ,कुओं का निर्माण और जीर्णोद्धार का काम करेंगे | इस कार्य पर लगभग 231 करोड़ रु की राशि व्यय की जायगी , शेष 95 -96 करोड़ रु  बुंदेलखंड के अन्य इलाकों में खर्च किये जाएंगे | केंद्र  सरकार मानती है की इससे ना सिर्फ भू -जल स्तर बढ़ेगा बल्कि इससे जल संकट से भी निजात मिलेगी | पर देखना यही है की सरकार के लोग इस धन राशि का कैसा उपयोग करते हैं अथवा इसका भी उपयोग पूर्व की योजनाओ की तरह ही होता है , जिसके बन्दर बाँट में सरकार के तंत्र से लेकर सरकार के दल के लोग भी सम्मलित रहते थे ? 
 
BY: रवीन्द्र व्यास 

झाँसी की बेटी ने महिला लोको पायलट बनकर लहराया परचम (Jhansi Women Becomes Loco Pilot)

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South Central Railway  के विजयवाड़ा मंडल में महिला लोको पायलट ने लहराया परचम.

इनके बारे में कहा जाता है की ।

जब वो ट्रेक पर चलती है
तो दुनिया की सोच बदलती है

इनके इस जज्बे को मेरा एक सलाम ।

ये झाँसी के नगरा की रहने वाली महिला सहायक लोको पायलट है जो आज आंध्र प्रदेश में लोको पायलट को टक्कर दे रही है और इन्होने ट्रेन वर्क करके ये दिक दिया की महिला किसी से पीछे नही है।


क्या ये सम्मान की हकदार नही है?

 

BY: Pavan Verma

Patanjali will invest 500cr in Jhansi Food Park

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Baba Ramdev's Patanjali to invest Rs 500 cr in Bundelkhand food park


patanjali food park img

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Yoga guru Baba Ramdev promoted Patanjali Group is planning to invest about Rs 500 crore in its proposed food park in Jhansi district of Bundelkhand. 

Patanjali Group, which is primarily engaged in manufacturing and marketing of organic food and consumer goods, is currently working towards acquiring land for the project. 

“We are concentrating on land acquisition in Jhansi district, which is the main town in Bundelkhand region of Uttar Pradesh,” Patanjali Food & Herbal Park CEO Ravindra Kumar Chaudhary told Business Standard in Lucknow.
 
He informed the project would require 50-100 acres to set up the food park, which is proposed to be up and running by 2020. “The project would provide direct employment to about 500 people and generate thousands more in indirect job opportunities in the region.”
 
The park would mianly be using fresh farm produce from Bundelkhand in food processing, with a view to spurring economic growth in the region, he added.
 
Chaudhary was in town to participate in a road show, which is a prelude to the ‘World Food India 2017’ being organised by the union food processing industries ministry in consort with Confederation of Indian Industry (CII) in New Delhi during 3-5 November, 2017. Union minister of state (food processing) Sadhvi Niranjan Jyoti also lauded Patanjali for its proposed project and exhorted other companies to come forward in this regard.

Read More.....

 

Courtesy: Business Standard


Rajkiya Engineering College, Banda : FACULTY JOBS

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Advt No. : 01/Recruitment/Banda/2017Dated : 12-05-2017

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1. On-Line  applications are  invited  in  the   prescribed   format for  appointment   at teaching positions of Professors, Associate Professors and Assistant Professors in the Department of Electrical Engineering, Mechanical Engineering, Information Technology and  Applied Sciences  & Humanities Department  (Physics,  Mathematics, Chemistry, English, Management and Electronics   Engineering) and appointments at various Administrative/Non-Teaching  and  Teaching support positions  available at this Institute.

2. All posts carry allowances  and other benefits  as approved by the Govt. of U.P. from time  to  time. Higher candidates pay  may  be  considered  for  highly  qualified   &  experienced.

3.  The on-line application  can be submitted  through  our website  www.braecit.ac.in from 14 May  2017  to 05 June 2017  (Midnight).  After entering the required data at  On Line  Recruitment System,  the  candidate may download hard  copy of completed application form. Each candidate is required to register  with his  valid Email id and mobile number  before filling application form.

4. The completed application  form  (print/hard copy)  along with all required supporting documents (self attested hard copies) and requisite application fee  in form of demand draft  should be sent through Registered/Speed  Post only to the Director,  Rajkiya Engineering  College, Banda-Chitrakoot  Road, Atarra,  Banda-210201(U.P.)  so as to reach latest by  June 11, 2017 upto 5 p.m.

5. Those candidates who have already applied for above vacant positions against our Previous advertisements No. 01/Faculty/Banda/2016 and 02/Non-Teaching/Banda/2016 Dated: 05-11-2016 need not apply again. However, if any Such candidate has acquired additional qualification/publications etc. may submit a fresh online application without any fee.

6. A candidate applying for two or more than two vacant position must send separate application along-with requisite application fee.

7. All candidates applying for faculty positions ( Professor, Associate Professor, Assistant Professor) must enclose a demand draft of Rs. 1200/- (Rs. 800/- for SC/ST candidates) as an application fee drawn in favor of "Director, Rajkiya Engineering College, Banda" (U.P.) payable at Atarra or Banda.

8.The hard copy of application generated through online recruitment system must be signed by candidate. A completed application in all respect along-with necessary documents (self attested photocopies) and a demand draft must be kept in envelope by clearly writing advertisement number, name of post and department on top of envelope. Theapplication completed in all respect must be sent by registered/speed post to the  Director, Rajkiya Engineering College, Atarra, Banda-210201 (U.P.) so as to reach us latest by June 11, 2017 upto 5 p.m.

9. Details of Vacant Faculty Positions :

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10. Educational Qualifications-As per AICTE norms

Please visit AICTE website www.aicte-india.org for educational qualification and experience for faculty positions.

11. Other important Terms and Conditions

1. Guidelines for filling up Performance Based Appraisal System (PBAS) form for the calculation of Academic Performance Indicators (Research and Academic Contributions) along with format of Application Form (Faculty Positions) is available on our website.

2. Essential/Desirable Qualifications and Experience on the last date of application are applicable as per AICTE norms given on the website. www.aicte-india.org

3. Age limit shall be considered as per Government of Uttar Pradesh rule.

4. Number and nature of vacancies may be changed. No claim arising out of the change in nature and/or number of posts advertised shall be admissible.

5. The Institute reserves the right not to fill any or all the advertised posts.

6. The employed candidates must send their applications through proper channel. However, an advance copy may be sent and NOC must be produced at the time of interview.

7. Candidates applying for multiple posts should send separate application for each post. No TA/DA shall be provided to the candidates for attending the interview.

8. Candidates should essentially bring the original documents in support of their claim in application form and as prescribed in interview letter, failing which they shall not be considered for interview.

9. The qualification and experience prescribed are the minimum and mere possession of the same shall not entitle a candidate to be called for the interview.

10. The application form, PBAS pro-forma and other details can be downloaded from the Institute website.

11. Duly completed PBAS pro-forma containing API assessment should be sent along-with the application. The horizontal reservation for female candidates, dependent of freedom fighters and Ex-servicemen will be applicable as per State Government Rules.

12. Candidates not possessing the prescribed qualification and experience on the last date of application shall not be considered in any case.

13. A screening board shall scrutinize all the applications for recommending the candidates to be called for interview. No representation from those, not being recommended and not Called for the interview will be entertained at any stage.

14. The application form must be supported by self attested copies of mark sheets/certificates/degrees/caste certificate/age certificate/experience certificate/no objection certificate/ list of titles, books, research papers, articles, publications etc. as mentioned in application form. A passport size 4 attested photograph should be affixed on the application form in the space provided.

15. Incomplete applications or applications received after the last date shall not be entertained.

16. Candidates belonging to the Schedule Cast (SC)/ Schedule Tribe (ST)/ Other Backward Class (OBC) Categories of Uttar Pradesh are only eligible for reservation in respective category. Such candidates shall have to produce the category certificate as proof of being from respective category. Candidates from OBC category shall have to produce OBC category certificate issued on a date not earlier than 6 months at the time of interview. Candidates failing to produce the valid category certificate as prescribed by U.P. Govt. shall not be allowed to appear in interview and Institute will not be responsible for the consequences arising thereof.

17. The completed application forms along with prescribed fee must reach to the Director, Rajkiya Engineering College, Atarra, Banda (U.P.) Pin-210201 through Registered/Speed Post only, latest by 11 June 2017 upto 05.00 pm failing which the applications will not be considered.

18. All appointments made against these posts shall be governed by the rules and regulations as prescribed by the Institute

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Apply Online

DAMOH : Railway Time Table

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Train Time Table

Updated on 04-02-2017

TRAINS PASSING THROUGH DISTRICT DAMOH (M.P.)

TOWARDS BINA

Train No.

Arrival

Departure

Train Name

Days

12186

00:18

00:20

REWA-HABIBGANJ (BHOPAL) : REWANCHAL EXPRESS

DAILY

18477

00:28

00:30

PURI-HARIDWAR : UTKAL EXPRESS (VIA MALKHEDI)

DAILY

11271

01:40

01:45

ITARSI BHOPAL : VINDHYACHAL EXPRESS

DAILY

11072

02:05

02:10

VARANASI-LOKMANYA TILAK : KAMAYANI EXPRESS

DAILY

14710

02:28

02:30

PURI-BIKANER EXPRESS

THU

18213

02:28

02:30

DURG-JAIPUR  EXPRESS

MON

18573

02:28

02:30

VISHAKAPATNAM-BHAGAT KI KOTHI EXPRESS (VIA MALKHEDI)

FRI

18507

02:28

02:30

VISHAKAPATNAM–AMRITSAR : HIRAKUD EXPRESS (VIA MALKHEDI)

WED, SAT, SUN

18207

02:36

02:38

DURG-AJMER EXPRESS

TUE

19422

03:10

03:12

PATNA-AHMEDABAD EXPRESS 

WED

11703

03:46

03:48

REWA - INDORE : INTERCITY EXPRESS

MON,WED,FRI

22162

--

05:00

DAMOH-BHOPAL : RAJYARANI EXPRESS

DAILY

51886

--

05:45

DAMOH-BINA PASSENGER

DAILY

11701

08:08

08:10

JABALPUR-INDORE : INTERCITY EXPRESS  (VIA MALKHEDI)

MON, THU, SAT

11449

09:43

09:45

JABALPUR- JAMMU TABI EXPRESS (VIA MALKHEDI)

TUE

18236

09:48

09:50

BILASPUR-BHOPAL EXPRESS CUM PASSENGER

DAILY

13025

13:08

13:10

HOWRAH-BHOPAL EXPRESS

TUE

19607

13:08

13:10

KOLKATA-AJMER EXPRESS (VIA MALKHEDI)

FRI

18009

13:08

13:10

SANTRAGACHI-AJMER EXPRESS

SAT

19414

13:08

13:10

KOLKATA-AHMEDABAD EXPRESS (VIA BHOPAL-RATLAM)

SUN

11466

13:18

13:20

JABALPUR- SOMNATH EXPRESS

MON, SAT

22912

15:00

15:05

HOWRAH-INDORE : SHIPRA EXPRESS

TUE, FRI, SUN

19659

15:48

15:50

SHALIMAR- UDAIPUR EXPRESS (VIA MALKHEDI)

MON

22830

15:48

15:50

SHALIMAR-BHUJ EXPRESS

SUN

51614

17:18

17:20

KATNI-KOTA PASSENGER 

DAILY

22181

18:03

18:05

JABALPUR-NIZAMUDDIN EXPRESS (VIA MALKHEDI)

DAILY

18215

19:28

19:30

DURG- JAMMU TAWI EXPRESS (VIA MALKHEDI)

WED

51604

19:53

19:55

KATNI-BINA PASSENGER

DAILY

12121

22:08

22:10

JABALPUR-NIZAMUDDIN : M.P.SAMPARK KRANTI EXPRESS (MALKHEDI)

WED, FRI, SUN

51602

22:55

23:00

KATNI- BINA PASSENGER      

DAILY

12181

23:22

23:25

JABALPUR-AJMER : DAYODAYA EXPRESS  (VIA MALKHEDI)

DAILY

 
 

TOWARDS KATNI

 

Train No.

Arrival

Departure

Train Name

Days

11272

00:10

00:20

BHOPAL- ITARSI : VINDHYACHAL EXPRESS

DAILY

18478

00:53

00:55

HARIDWAR-PURI : UTKAL EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

DAILY

12185

02:50

02:52

HABIBGANJ(BHOPAL)- REWA : REWANCHAL EXPRESS

DAILY

11450

02:20

02:25

JAMMU TABI -JABALPUR EXPRESS

FRI

12122

03:53

03:55

NIZAMUDDIN-JABALPUR M.P.SAMPARK KRANTI EXPRESS

TUE, FRI, SUN

22182

04:50

04:52

NIZAMUDDIN -JABALPUR EXPRESS

DAILY

12182

05:16

05:18

AJMER- JABALPUR : DAYODAYA EXPRESS

DAILY

11704

07:16

07:18

INDORE-REWA EXP : INTERCITY

TUE, THU, SAT

18216

07:39

07:41

JAMMU TAWI-DURG EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

SAT

11071

07:57

07:59

LOKMANYA TILAK -VARANASI : KAMAYANI EXPRESS

DAILY

51613

08:13

08:15

KOTA-KATNI PASSENGER

DAILY

22911

08:57

09:00

INDORE-HOWRAH : SHIPRA EXPRESS

WED, FRI, SUN

18208

10:28

10:30

AJMER-DURG  EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

WED

18214

10:29

10:31

JAIPUR-DURG  EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

TUE

18574

10:29

10:31

BHAGAT KI KOTHI- VISHAKAPATNAM EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

SUN

51601

11:40

11:45

BINA-KATNI PASSENGER                                  

DAILY

18010

12:13

12:15

AJMER- SANTRAGACHI EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

MON

19608

12:13

12:15

AJMER-KOLKATA EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

TUE

13026

12:13

12:15

BHOPAL- HOWRAH EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

WED

19413

12:13

12:15

AHEMDABAD- KOLKATA EXPRESS  (VIA KATNI MURWARA)

THURSDAY

19660

12:13

12:15

UDAIPUR- SHALIMAR EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

SAT

14709

12:36

12:38

BIKANER-PURI EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

MON

11465

13:45

13:50

SOMNATH-JABALPUR EXPRESS

SUN, TUE

22829

13:58

14:00

BHUJ-SHALIMAR EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

WED

19421

14:03

14:05

AHMEDABAD-PATNA EXPRESS

MON

11702

15:18

15:20

INDORE-JABALPUR : INTERCITY

SUN, TUE, FRI

18235

15:30

15:35

BHOPAL-BILASPUR EXPRESS CUM PASSENGER (VIA KATNI MURWARA)

DAILY

51603

17:50

17:55

BINA-KATNI PASSENGER

DAILY

18508

19:48

19:50

AMRITSAR-VISHAKAPATNAM : HIRAKUD EXPRESS (VIA KATNI MURWARA)

MON, THUR, SUN

51885

22:20

--

BINA- DAMOH PASSENGER

DAILY

22161

22:45

--

BHOPAL-DAMOH : RAJYARANI EXPRESS

DAILY

 

Courtesy :  Indian Railway

(Article) Soil Health Card – A tool for Agri revolution by Nirendra Dev

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Soil Health Card – A tool for Agri revolution

Nirendra Dev*

 

Agriculture since ages is the mainstay of the Indian population. The story of Indian agriculture has been a spectacular one, with a global impact for its multi- functional  success  in  generating  employment,  livelihood,  food,  nutritional  and ecological security. Agriculture and allied activities contribute about 30 per cent to the gross  domestic product of India. The green revolution had heralded the first round  of  changes.  India  is  the  second  largest  producer  of  wheat,  rice,  sugar, groundnut as also in production of cash crops like coffee, coconut and tea.

India is now eyeing second Green Revolution in eastern India. The need for enhanced investment in agriculture with twin focus on higher quality productivity and welfare of farmers is rightly emphasized from  time to time by the Prime Minister Narendra Modi.

In the  entire  scenario,  importantly the Narendra  Modi  government  has  laid emphasis  on  the  awareness  campaign  and  enhanced  agri-knowledge  for  the farming community. But besides the measures to improve minimum support price and assistance like improved irrigation and rural electrification, the incumbent NDA regime has laid emphasis on the Soil Health Card Scheme.

Launched by the central government in February 2015, the scheme is tailor- made to issue ‘Soil card’ to farmers which will carry crop-wise recommendations of nutrients and fertilizers required for the individual farms. This is aimed to help farmers to improve productivity through judicious use of inputs.

In the words of the union Agriculture Minister Radha Mohan Singh, this path- breaking initiative would create a golden opportunity for the farmers to improve the productivity of their crops and also go for diversification. This will certainly contribute significantly to ensuring food security of the country.

Awareness of soil health position and the role of manures would help in higher production of foodgrains in eastern India too and this would help tackle the decline in production in central and peninsular India. The growth in foodgrains, rice and wheat, from eastern India would provide an opportunity to procure and create

foodgrain reserves locally. This would reduce the agricultural pressure on Punjab and Haryana as well.

 

Essentially, the Soil Health Card scheme is modeled on a successful programme launched by Prime Minister Modi during his tenure as Chief Minister of Gujarat.

In fact from 2003-04 itself, Gujarat has been the first state to introduce Soil Health cards, according to government sources, to initiate the scientific measures for Soil Health care. In Gujarat, over 100 soil laboratories  were set up and the result of scheme was found quite satisfactory. To start with, the agriculture income of Gujarat from Rs 14000 crore in 2000-01 had gone up to staggeringly high Rs

80,000 crore in 2010-11.

In July 2015, the union Agriculture Minister Radha Mohan Singh said that for the first time, a massive agricultural population of 14 crore card holdings will be covered once in a cycle of 3 years to promote soil  management practices and restore soil health.

To state a truism, this is a timely intervention as aggressive farming coupled with absence of any concrete step to bring new lands under cultivation has already affected yields and deprived farmlands of valuable  nutrients.  Experts and agri scientists have often said that a likely famine and drought stare various parts of India.

Thus it goes without saying that if necessary corrective steps are not taken, there could be food shortage in next 10 years time span.

Experts also talk about the importance of genetic food cultivation calling for lot more variety in the land. The  Agriculture ministry maintains that the emphasis should be to develop more and more pulses and green vegetables as this can bring in inherent resilience in the land. According to renowned expert and the ‘father of Green Revolution’, M S Swaminathan, there is need to opt for wide range of crops cultivation.  The  awareness  of  soil  health  conditions  would  only  make  these operations easier and more result oriented. The studies of soil across the states also show that there’s need to promote alternate crops like pulses, sunflower, bajra, or fodder and vegetables.

Thus we realize that the Soil Health Card mechanism definitely aims to help herald  some  essential  revolutionary  changes  and  salutary  effect  in  country’s agricultural scene. There are actually many  path-breaking initiatives associated

 

with  the  scheme.  Under  this,  the  government  can  help  farmers  adopt  crop diversification. Farmers would understand the fertility factor of the land better and can be attracted towards value added newer crops. This would help reduction in risk in farming and also the cost of overall cultivation process would get reduced.

 

Some states are already issuing Soil Health Cards but, it was found that, there was no uniform norm for sampling, testing and distribution of Soil Health Cards across the states. Taking a holistic view on these, the central government has thus rightly taken measures like launching of a Soil Health Card portal. This would be useful for registration of soil samples, recording test results of soil samples and generation of Soil Health Card (SHC) along with Fertilizer Recommendations.

 

“This is  a  single,  generic,  uniform,  web  based  software  accessed  at  the link www.soilhealth.dac.gov.in,”  the  Agriculture  Minister  Radha  Mohan  Singh said on the completion of one-year of office of the Modi government in May 2015.

 

The official sources in the Agriculture ministry say that the Soil Health Card portal aims to generate and issue Soil Health Cards based on either Soil Test-Crop Response (STCR)formulae developed by ICAR or General Fertilizer Recommendations provided by state Governments.

The scheme has been approved for implementation during 12th Plan with an outlay of Rs.568.54 crore.  For the current year (2015-16) an allocation of Rs.96.46 crore – only for the central government share-has been made.  The scheme is to be otherwise implemented on 50:50 sharing pattern between Government of India and state Governments.

In order to improve quality of soil and ultimately for better nutrient values and higher yields, experts say while at present, general fertilizer recommendations are followed by farmers for primary nutrients, the secondary and micro nutrients are often overlooked. “We have often come across deficiency of nutrients like Sulphur, Zinc and Boron. This has become a limiting factor in increasing food productivity. The Soil Health Card scheme will address these,” says Agriculture Radha Mohan Singh.

The government is effectively marching in quite ambitiously for a grand success of the Soil Health Card  scheme and proposes to ensure that all farmers in the country have their respective Soil Health Cards by the year 2017. In the first year of NDA regime 2014-15, a sum of Rs 27 crore was sanctioned and in 2015-16, there is an allocation of Rs 100 crore to all the states to prepare soil health cards.

 

* Nirendra Dev is a Delhi based journalist

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 Courtesy: Employment News

केन बेतवा नदियों के घटजोड़ में एक विशाल जंगल खत्म हो जायेगा

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* बुन्देलखण्ड क्षेत्र के यूपी.एमपी में प्रस्तावित केन.बेतवा नदी लिंक प्राकृतिक आपदा हैBundelkhand-water-crisis-1.jpg (768×576)

* केंद्र सरकार ने फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी से वन्यभूमि अधिग्रहण करने की एनओसी प्राप्त की
* पर्यावरण मंत्रालय ने अभी मामले को उलझा रखा है उधर सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में टाइगर बफर जोन में बांध निर्माण की अनुमति देगी
 
25 अगस्त 2005 से प्रस्तावित केन .बेतवा नदी गठजोड़ मुद्दे पर केंद्र और दोनों राज्य सरकारे अभी तक स्थानीय आदिवासी बाशिंदों के साथ सहमती नही बना पाई हैण् 8500 आबादी वाले आदिवासी डूब क्षेत्र के दस गाँव में अपने हिसाब से मुंह माँगा मुआवजा चाहते है। जबकि केंद्र सरकार मध्यप्रदेश पुनर्वास स्कीम के तहत बीपीएल आदिवासी विस्थापन के आंकलन पर मुआवजा देने की बात कर रही है। बांध के केंद्र बिंदु ग्राम दोधन ;पन्ना टाइगर्सएतहसील बिजावरएजिला छतरपुर द्धएपिल्कोहा 50 लाख रूपये प्रति परिवार आर्थिक मदद चाहते है जबकि खरयानीएकूपीएमैनारी आदि 30 लाख रूपये की बात कह रहे है। सरकार न तो इतना मुआवजा देगी और न सहमती बन पायेगी। हाल .फिलहाल इस कार्यकाल में ये बांध बनता नही दिख रहा हैण्बीते 31 सितम्बर 2015 को केन्द्रीय जलमंत्री उमा भारती अवश्य अपने कैबनेट के साथ जंगल में बांध स्थल दौधन ग्राम में लाल पत्थर लगवाकर शिलान्यास कर आई है। बुंदेलखंड के लगातार पड़े तीन साल के सूखे ने केन नदी में गंगऊ डैम में भी पानी शेष नही छोड़ा है। बांध पर्यावरण प्रभाव आंकलन के अनुसारए 6 हजार हेक्टेयर में लगे लगभग 7 लाख पेड़ काटे जाएंगे। पर्यावरण मंत्रालय ने अभी मामले को उलझा रखा है उधर सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में टाइगर बफर जोन में बांध निर्माण की अनुमति देगीण् जंगल के आदिवासी कहते है उन्हें जंगल से प्यार हैए वे लोग जंगल की रक्षा करते हैं। उनका मानना है कि इस योजना से जंगल को नुकसान होगा। वे अपने पन्ना टाइगर्स के रहवास को छोड़ना नही चाहते मगर वीरान होते जंगल और खतम होते वन्य जीवो के प्रवास के बीच सबको अपने .अपने हिस्से की कुरबानी करनी ही होगी क्योकि केंद्र सरकार को केन की हत्या चाहिए। बुंदेलखंड के हमीरपुर और झाँसी के रहवासी केन के पानी को बेतवा में डालने का समर्थन करके अलगाववाद की मानसिकता से ग्रस्त है। नेता चाहते भी यही है कि आवाम आपस में एकजुट न होने पाए। उन्हें बाँदा के बाशिंदों का सूखा नही दिखता है ए न आदिवासी विस्थापन दिखता हैए न पन्ना नेशनल पार्क के उजाड़ने का दर्पण एन वन्यजीवो का पलायन निज स्वार्थ में सियासी बाँध है ये और बुंदेलखंड के ईको सिस्टम से मजाक भी। पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपने कार्यकाल में इस बांध को एनओसी नही दी थी तब उन्होंने पन्ना टाइगर्स के बड़े हिस्से को बांध एरिया में जाने पर सवाल किया था। सरकार ने जंगल में रहने वाले आदिवासियों को विकास का थोथा सब्जबाग दिखलाकर उन्हें भी मोबाइलएजींस और कंक्रीट के गलियारे में भटकने को रास्ता दिखला दिया है। देश की और बुंदेलखंड की प्रत्येक नदियाँ नैसर्गिक रूप से आपस में जुडी है फिर ये प्रकृति से खिलवाड़ क्यों घ् मानवीय अतिक्रमण क्यों घ् विकास के लिए जंगल के बाहर की जमीन क्या कम है घ् या धरती में अब सिर्फ आदमी ही रहना चाहता है घ्
 
Bundelkhand-water-crisis-1.jpg (768×576)
इस परियोजना से उजड़ जाएंगे कई गांव.
इस परियोजना के विरुद्ध उठ रहे विरोध के स्वरों के बीच बुन्देलखण्डण्इन संवाददाता ने नदी गठजोड़ मुद्दे पर गंभीरता से अध्ययन किया हैण् आंकलन के मुताबिक केंद्र सरकार बुंदेलखंड के गांवों और जंगलों को उजाड़ कर खेत सींचने की तैयारी कर रही हैए जिसके सफल होने की उम्मीद कम है। परियोजना में न सिर्फ पन्ना टाइगर नेशनल पार्क का 6 हजार 258 हेक्टेयर वन्य इलाका इस योजना में अधिग्रहित कर लिया जाएगाएबल्कि कई गांव भी उजड़ जाएंगे। नेशनल पार्क में कुल 24 बाघ हैं। पर्यावरण प्रभाव आंकलन के रिपोर्ट के मुताबिकए परियोजना के तहत आने वाले इलाके में जीव.जंतुओं की रिहाइश नहीं हैए लेकिन संवाददाता के अनुसार देश में बाघ बचाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैंए जबकि निश्चित रूप से बाघों का रिहाइशी इलाका प्रभावित होने के साथ ही दुनिया का बड़ा गिद्ध प्रजनन इलाका भी इस परियोजना के भेंट चढ़ेगा। सूचनाधिकार में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय वर्ष 2011 में कह चुका है कि बांध क्षेत्र के गाँव विस्थापित किये जा चुके है मगर असल में आज भी ये सभी गाँव जस की तस आबाद हैण्आदिवासी न जंगल छोड़ना चाहते है बिना उचित मुआवजे के और न बाँदा के लोग ये बांध के समर्थन में हैण्केन नदी के पानी को बेतवा में डालकर सियासत महज बुन्देली जनता को आपस में पानी की जंग के लिए मजबूर कर देगीण्ग्यारह साल में सरकार और आदिवासी के बीच नही बन पाई सहमती।
कांग्रेस और भाजपा केंद्र सरकार के साए में पिछले ग्यारह साल से लटका है केन .बेतवा नदी गठजोड़ उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के जिस इलाके को पानी से तरबतर कर देने का दंभ भर रहा है यह गठजोड़ जरा देखे केन नदी की तलहटी में बसे बांध के केंद्र बिंदु ;ग्रेटर गंगऊ डैमएग्राम दौधनएतहसील बिजावरद्ध जहाँ बाँध स्थल प्रस्तावित है उस गाँव में ही आज पेयजल का संकट हैण्इस पन्ना टाइगर्स डूब क्षेत्र के अन्दर आने वाले 6 गाँव के बीच दो कुयें है जिनमे पानी है। यहाँ आदिवासी रहवासी करीब 5 हजार से ऊपर कोंदर और गौड़ बसते हैण्इस जंगल में ही एक गाँव है पाठापुरा जहाँ तीन किलोमीटर दुर्गम घाटी से सुबह चार बजे नीचे आकर आदिवासी लड़कियां वापसी दोपहर बारह बजे तक पानी भरती है। वे स्कूल इसलिए नही जा पाती क्योकि उन्हें घर का पानी भरना होता है। आप विस्वास न करेंगे जिस घाटी में हम कैमरा लेकर न चढ़ पाए और गिरने का भय हो वहां ये लड़कियां कठपुतली की तरह तेज रफ्तार से ये काम बखूबी कर लेती है लेकिन इनका हुनर इनकी बेबसी की देन है जो उनको मजबूरी ने सिखलाया है। बिजावर के साथी अमित की माने तो ये बेटियां अपना दिन और रात पानी की दहशत में काट रही है। इन्हे ये डर लगता है कि डेरा में कोई बेटी न जन्मे बुंदेलखंड के लगातार पड़ रहे सूखे ने केन नदी का पानी बरियार पुर डैम और रनगवां के साथ गंगऊ में भी खतम कर दिया है। ग्राम दौधन का गंगऊ डैम साल 2015 में सूखा है और उससे जुड़ने वाले अन्य बांधो में भी पानी नही था। 24 मई 2017 को बांध क्षेत्र गंगऊ डैम पानी में नहीं है। विस्थापित होने वाले एमपी के छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के गाँव मैनारीए कूपीए खरयानीए पलकोहाए दौधनए वसुधाए भोरखुहाए घुघरीए शाहपुराए सुकवाहा आदिवासी गाँव हैण् वही सरकार यह दावा कर रही है कि बाँध से 221 किण्मीण्लम्बी मुख्य नहर उत्तर प्रदेश के बरुआ सागर में जाकर मिलेगी इस नहर से 1074 एमण्सीण्एमण् पानी प्रति वर्ष भेजा जाएगा एजिसमेसे 659 एमण्सीण्एमण् पानी बेतवा नदी में पहुंचेगा।
ढोंडन बाँध के अलावा तीन और बाँध भी मध्य प्रदेश कि जमीन पर बेतवा नदी पर बनेंगे। रायसेनएविदिशा जिले में बनने वाले मकोडिया बाँध से 5685 हेक्टेयर क्षेत्र मेंए बरारी बेराजसे 2500 हेण्केसरी बेराज से 2880 हेण् क्षेत्र में सिंचाई होगी लिंक नहर से मार्गों में 60294 हेण् क्षेत्र सिंचित होगा एइसमे मध्यप्रदेश के 46599 हेण् उत्तर प्रदेश के 13695 हेण् क्षेत्र में सिचाई होगी। ढोंडन बाँध से छतरपुर और पन्ना जिले कि 3ण्23 लाख हेण्जमीन सिंचित होने का दावा भी किया जा रहा है ।
पानी की जंग के लिए तैयार हो रहे है बुंदेले. 
 
Bundelkhand-water-crisis-1.jpg (768×576)
24 मई को बांध क्षेत्र में दिल्ली से आये स्वामी आनंद स्वरुपए लखनऊ के आशीष तिवारीएअंशुमान दुबे ने बुन्देलखण्डण्इन  टीम के साथ यहाँ का भ्रमण किया हैण् आये हुए तीन साथी कहते है गत गर्मी की तरह आज भी यहाँ पानी का आकाल है ऐसा तब है जब बीते साल बारिश सही हुई हैण् क्या ऐसे में ये लिंक अपने डीपीआर रिपोर्ट पर ही सवाल नही खड़ा करता है कि उपरी हिस्से में बह रही पहाड़ी नदी केन बड़ी नदी बेतवा को पानी कैसे दे पायेगी घ् दो नदियों का नेचर अलग है और फिर हर नदी आपस में पहले से जुड़ी हैण्आज भी बरियारपुरएरनगवां बांध सूखे है क्या इस बांध परियोजना की डीपीआर बुन्देलखण्ड के पारिस्थितिकी तंत्र का इसका स्थलीय अध्ययन किया गया है घ् इस बात पर भोपाल के सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे इस बांध के बन जाने से बाघों के विस्थापन से चिंतित नजर आते हैण्बकौल अजय मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज ने पन्ना टाईगर रिजर्व के 640 हेण् इलाके को डूबाने वाली और बाघों के लिये घातक केन.बेतवा लिंक परियोजना को अनुमति देकर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय वन्य प्राणी बोर्ड को भेजा। वन अधिकार अधिनियम मान्यता कानून 2006 का कोई उपयोग नहीं कर रहा। इस पूरे प्रोजेक्ट में न आदिवासी किसानो को प्लानिंग में शामिल किया गया जिनके लिए ये स्कीम हैएन किसानो से पूछा गयाएन पर्यावरण कार्यकर्ता की मंशा को ध्यान में रखा गया है। केन्द्रीय जल मंत्री उमा भारती के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल ये लिंक फ़िलहाल तो महज वोट बैंक की खेती को काटने के लिए मोदी सरकार में 18 हजार करोड़ रूपये की होली जलाने का खाका लगता है फिर रुपया भी तो विश्व बैंक के कर्जे का कौन सा किसी राजनीतिक पार्टी की जेब से लगने जा रहा हैण् क्या इतने बड़े पर्यावरणीय हस्तक्षेप की जगह बुन्देलखण्ड को ठोस रोजगार का तोहफा नही दिया जा सकता था जिसकी यूपी.एमपी दोनों को दरकार है


BY: आशीष सागर

(Result) U.P. Board Class XII (12th) "Intermediate" Results 2017

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